आंखों में आंसू
दिल में आहें
कांपती है रूह
सर्द हैं निगाहें
किसको जा के दर्द सुनाएं
रुष्ट हुई सब अभिव्यन्जनाएं
रिश्तों के उपवन
सूखते जाएँ
फूल प्यार के
खिलने न पायें
कैसे जीवन को महकाएं
धूमिल हुई सब अभिलाषाएं
मन की व्यथाएं
बढती ही जाएँ
पत्थर दिल लोग
पिघल न पायें
किसको अपना मीत बनाएं
शून्य हुई सब संवेदनाएं

5 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

शून्य हुई सब संवेदनाएं

दिल को choone wali कविता.............

रंजना said...

Bahut hi sundar bhavpoorn rachna...

vandana gupta said...

kya khoob likha hai.....bahut badhiya

neeraj1950 said...

अद्भुत रचना...लिखते रहें...
नीरज

Anonymous said...

bahut achchha laga - bhawpurn rachana