पूछा किसी ने हाल किसी का तो वो रो दिए,
पानी में अक्श चाँद का देखा तो वो रो दिए।
नगमा किसी ने साज़ पर छेड़ा तो वो रो दिए,
घुंचा किसी ने शाख से तोडा तो वो रो दिए।
उड़ता हुआ गुबार सरेराह देख कर,
अंजाम हमने इश्क का सोचा तो वो रो दिए।
बादल फिजा में आप की तस्वीर बन गए,
साया कोई ख़याल से गुज़रा तो वो रो दिए।
रंग-ऐ-शफक से आग शागोफों में लग गई,


सागर हमारे आँखों से छलका तो वो रोदिये। ।

एक दुबली-पतली पर पैनी और तेज़ी भरी काया के 29 वर्षीय राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के कमांडो सुनील कुमार यादव का यह कहना है, “जब ताज होटल के कमरों में घुसकर हम वहाँ फंसे लोगों को विश्वास दिलाते थे कि अब वो सुरक्षित हैं तो उनकी आंखों में हमारी छवि किसी भगवान से कम नहीं नज़र आती थी। ये गर्व के क्षण थे, इन्हें कभी भुला नहीं सकते हम..."

सुनील कुमार यादव एनएसजी के कमांडो हैं. उन्हें ताज में चरमपंथियों से मुठभेड़ के दौरान तीन गोलियाँ लगी थीं. लेकिन मुंबई के बाम्बे अस्पताल में भर्ती सुनील की आंखों में दर्द की एक लकीर तक नहीं है. सुनील बताते हैं कि मिशन पर जाने से पहले फ़ोन, घर-परिवार, आगे-पीछे के सवाल, पहचान और बाकी तमाम बातें भूल जाते हैं। याद रहता है तो सिर्फ़ मिशन. सुनील बताते हैं कि हम आदेश मिलते ही रात को दिल्ली से रवाना हुए. मुंबई हवाई अड्डे से सीधे सचिवालय के पास पहुँचे और फिर टीम बना दी गईं.

इसके बाद 27 तारीख सुबह ताज में सबसे पहले अंदर जाने वाले कमांडो दस्ते में मैं था। हमने छठी मंज़िल से अपना काम शुरू किया. वहाँ से लोगों को निकालते और चरमपंथियों से मोर्चा लेते हुए हम नीचे की तरफ़ आ रहे थे. तीसरी मंज़िल तक पहुंचने में रात होने लगी थी. हम लोग रात के चश्मों के सहारे सब कुछ देख पा रहे थे. पूरी इमारत में घुंआ भरा हुआ था. एक-एक कमरे की तलाशी का काम चल रहा था. कमरों के अंदर फंसे लोग घबराए हुए थे कि बाहर कहीं चरमपंथी न हों. हम लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण यह था कि कहीं चरमपंथी भी लोगों को बंधक बनाकर कमरे में मौजूद न हों. लोग पुलिस-पुलिस की आवाज़ पर भी कमरे नहीं खोल रहे थे. इस दौरान हमारा साथ दे रहे थे होटल के कुछ कर्मचारी. विदेशी भाषाओं में बात करके वे फंसे हुए लोगों को समझा रहे थे, ताले खोलने में हमारी मदद कर रहे थे.

"हम जैसे ही कमरों में जबरन दाख़िल होते थे, लोग डर के मारे सांसें रोककर खड़े हो जाते थे। जैसे ही उन्हें समझ आता था कि हम उन्हें बचाने आए हैं, वे रोने लगते थे, बदहवास हो जाते थे, हमसे गले मिलने लगते थे. मैंने इन लोगों की आंखों में अपने प्रति एक भगवान के आ जाने जैसा भाव देखा है. यही बात हमें ताकत दे रही थी. इस ऑपरेशन की यह सबसे पहली याद रहेगी मेरे ज़हन में. चरमपंथियों से मोर्चा लेते हुए जब मैं ताज की तीसरी मंज़िल पर पहुँचा तो वहाँ किसी तरह से एक कमरे में खुद को छिपाकर बैठी एक अधेड़ उम्र की विदेशी महिला को बाहर निकाला. इस महिला को कवर करता हुआ मैं अगले कमरे की ओर बढ़ा. दरवाज़ा खोलते ही गोलियों की तड़तड़ाहट हुई. कमरे में एक चरमपंथी घात लगाए बैठा था. होटल कर्मचारी घायल हो गया. मैंने जवाबी गोलीबारी की पर अब मेरे लिए पहले इन दोनों लोगों की जान बचाना ज़्यादा बड़ी प्राथमिकता थी. अब तक दरवाज़ा बंद हो गया था पर गोलियाँ दरवाज़े के पार आ रही थीं. मैंने दोनों लोगों को खींचकर गोलियों के दायरे से बाहर किया. अब तक तीन गोलियाँ मेरे पीछे धंस चुकी थीं."

इसे कहते हैं...रीयल जिंदगी का हीरो. ये हैं सचमुच में देश के स्टार। परन्तु दुर्भाग्य से इन सितारों को सरकार और जनता वह सम्मान और स्थान भी नही देती जो फिल्मी और क्रिकेट के सितारों को अनायास ही मिलता है।

साभार- बी.बी.सी.


टूटा जो आ के लब पे, तेरा नाम ही तो है,
दिल में बस एक ख्वाहिश-ऐ-नाकाम ही तो है।


पहला क़दम ही आखिरी है, उठ सके अगर,
मंजिल यकीन-ऐ-इश्क की एक गाम ही तो है।


रहने दो वापसी के लिए रास्ता खुला,
वो बद नही है, एक ज़रा बदनाम ही तो है।


साबित करेगा क्या कोई हम पर जफा का जुर्म,
एक रोज़ ढल ही जायेगा, इल्जाम ही तो है।



उन्होंने देखा और आँसू गिर पड़े,


भारी बरसात में जैसे फूल बिखर पड़े।


उन्हों ने कह दिया अलविदा...


और कहकर ख़ुद ही रो पड़े।



साथ रहते-रहते यूँ ही वक्त गुज़र जायेगा,


बाद कौन किसे याद आएगा।


जी लो ये पल जब साथ है,


कल क्या पता वक्त किसे कहाँ ले जायेगा।



हम याद रहें तो ठीक, वरना भुला देना।


हुई हो कोई खता हमसे, तो सजा देना।


वैसे तो हम हैं खाली कागज़ की तरह,


लिखा जाए तो ठीक, वरना ज़ला देना।





अपनी आंखों की अश्कों से,


तुम्हारी आंखों में बहार लिखूँ।


कि अपने ग़मों की स्याही से,


तुम्हारे होठों पे मुस्कान लिखूँ।


क्या लिखूँ ऐ दोस्त तू ही बता,


अपने मोहब्बत-ऐ-ज़ज़बात से,


तेरी ज़िन्दगी में प्यार लिखूँ।



मन में सबके अरमान नही होता,


हर कोई दिल का मेहमान नही होता।


पर जो दिल में एक बार समा जाए,


उसे भूल जाना आसान नही होता।



छुप-छुप के तनहा रो लेंगे,


अब दिल का दर्द किसी न बोलेंगे।


नींद आती नही है रातों को अब,


जब आएगी मौत तो जी भर के सो लेंगे।




हमेशा मुस्कुरा के आंसूओं को छुपाया,
गम को छुपाने का यही रास्ता नज़र आया।

किस- किस को बताते बहते अश्कों का सबब,
कि दर्द-ऐ-दिल दिल में किस ने जगाया।

महफिलों में कहीं भी मज़ा न रहा,
रखा दिल पे पत्थर तो ख़ुद को सजाया।

बात बे बात अपनी आहें दबा कर,
यारों के दरमियाँ किस कदर मुस्कुराया।

न थी चाह कभी मुझे मंकाशी की,
जाम-ऐ-वफ़ा किसी भी वफ़ा ने पिलाया।

क्या मुक़दर से शिकवा करते रहें,
जो किस्मत में था वोही कुछ तो पाया।

यह किस मोड़ पे आ गई हैं उमीदें,
के साया-ऐ-मंजिल नज़र में न आया।

अपनों ने पलट के देखा तक नहीं,
गैरों ने आकर गले से लगाया।

अच्छा हुआ कि राज़ खुल ही गया,
दिल-ऐ-नादान पे खंजर किस ने चलाया।

शब्-ओ-रोज़ चाहत का सिला ये है शाकी,
दिल के टुकड़े हुए, और वो चुनने न आया।



अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर पे हम हैं,
रुख हवाओं का जिधर, उधर के हम हैं,
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है,
अपने ही घर में किसी दुसरे घर के हम हैं।


वक्त के साथ है मिटटी का सफर सदियों तक,
किसको मालूम कहाँ के हम किधर के हैं,
चलते रहते हैं की चलना है मुसाफिर का नसीब,
सोचते रहते हैं किस राहेगुज़र के हम हैं.


भीगी हुई आँखों का ऐ मंज़र न मिलेगा
घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा

फिर याद बहुत आएगी जुल्फों कि घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा

आँसू को कभी ओस का कतरा न समझाना
ऐसा तुम्हें चाहत का समंदर न मिलेगा

इस ख्वाब के माहौल में बे-ख्वाब हैं आँखें
बाज़ार में ऐसा कोई जेवर न मिलेगा


ये सोच लो अब आखिरी साया हैं मोहब्बत
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा।


यौन शोषण- ऐसा विषय जिसके बारे में लोग अक्सर चर्चा करने से कतराते हैं और कुछ के लिए यह एक भयानक मुद्दा है। यौन शोषण के शिकार ऐसे लोग जिनकी धार्मिक आस्था काफी गहरी होती है वे शोषण करने वाले के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते हैं। कई महिलाओं का मानना है कि यौन हिंसा का प्रतिरोध वे इसी कारण नहीं कर पाईं क्योंकि उनका धर्म ऐसा करने से मना करता है।


इस साल केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि देश भर के 30 राज्यों के 5-18 आयु वर्ग के लगभग 50 फीसदी बच्चों का स्कूल में यौन शोषण होता है। 53 प्रतिशत ने माना कि स्कूल या अन्य जगहों पर उनके साथ यौन शोषण हुआ है। महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा देश भर में 12,447 बच्चों पर कराए गए एक सर्वेक्षण में 53.22 फीसदी बच्चों ने एक से ज्यादा बार यौन शोषण के शिकार होने की बात कबूली। (Source: Josh18)


आम धारणा के विपरीत भारत में उच्च और मध्यम आय वर्ग के परिवारों में बच्चों का यौन शोषण निम्न वर्ग के मुकाबले कहीं अधिक है। बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने वाली एक स्वंयसेवी संस्था की संयोजक ने बताया कि उच्च और मध्यम आय वर्ग के परिवारों में बच्चों का यौन शोषण कहीं ज्यादा है, लेकिन लिंग भेद और सामाजिक दबाव के चलते यह मामले सामने नहीं आते।


कई लोग सोचते हैं कि शारीरिक या मानसिक शोषण आपके आसपास नहीं हो सकता। लेकिन शायद इसका शिकार आपके बगल में रहने वाली बच्ची या आपका रिश्तेदार या कोई भी हो सकता है। अब, सवाल यह उठता है कि क्या इससे बचने का कोई पुख्ता रास्ता नहीं है. इस तरह की स्थिति से कैसे लड़ा जाए।

सलाहकारों के अनुसार आपको खुद में विश्वास रहना चाहिए। आपको खुद को समझाना होगा कि इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। चीजों को बांटने से परिस्थितियां आसान बनती हैं।” यौनशोषक घर में ही मौजूद कोई व्यक्ति या परिचित भी हो सकता है। ऐसे मामलों में माता-पिता की प्रतिक्रिया बहुत महत्वपूर्ण होती है। उन्हें अपने बच्चों पर पूरी तरह विश्वास करना चाहिए और इसके बाद शोषणकर्ता से सामना करना चाहिए ताकि इस तरह की हरकतों पर तुरंत रोक लगाई जा सके।



क्यूँ बात हमारी नही मानते
क्यूँ दिल हमारा दुखाते हो
ये कोमल कोमल जज्बे मेरे
क्यूँ इन को सुलाते हो।

आँखों में रहती है नमी मेरे
क्यूँ इनसे आंखें चुराते हो
क्या रखा है बातों में मेरी
क्यूँ इन पे दिल लुटाते हो।

मान जाओ न बात हमारी
क्यूँ हम पे सितम ढाते हो
जो बात दिल में है तुम्हारे
वही दिल में है हमारे।

क्यूँ इन जज्बों को रुलाते हो
ये कोमल कोमल जज्बे मेरे
आख़िर क्यूँ इन को सुलाते हो।
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खुदा किसी को किसी पे फ़िदा न करे,
करे तो क़यामत तक जुदा न करे,
माना कि कोई मरता नही जुदाई में,
लेकिन जिंदा भी कहाँ रह जाता है।



आज एक प्रतिष्ठित साईट पर प्रकाशित ख़बर के माध्यम से मैंने जाना कि मुम्बई में हुए आतंकवादियों के हमले में घायल हुए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के एक अफसर को क्यों इस बात का अफसोस है कि वे गोली खाकर मर क्यों नहीं गए। एनएसजी का यह जांबाज अधिकारी २७ नवम्बर को ओबेरॉय होटल में आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए घुसा था। उसे भनक लगी थी कि 18वीं मंजिल पर एक कमरे में आतंकवादी है। एनएसजी के इस कमांडो ने दरवाजे को विस्फोट से उड़ा दिया, लेकिन जैसे ही कैप्टन एके. सिंह कमरे के भीतर घुसकर कार्रवाई करने वाले थे, आतंकवादियों ने हथगोला फेंक दिया। कैप्टन एके. सिंह के निटकवर्ती सूत्रों ने बताया कि कैप्टन उस धमाके की चपेट में आ गए और पूरे शरीर पर छर्रे लगने के कारण वे बेहोश हो गए। अधिकारी को बॉम्बे अस्पताल लाया गया जहां उनके शरीर में धंसे सभी छर्रों को निकाल दिया गया लेकिन एक छर्रा नहीं निकल पाया जो कैप्टन की बाईं आंख में चला गया था।


गौरतलब है कि मुम्बई हमले से निपटने के लिए लगाए गए एनएसजी के कमांडो में से एक अधिकारी मेजर संदीप उन्नीकृष्णन शहीद हो गए, जबकि घायल कैप्टन सिंह की अब कोई सुध लेने वाला नहीं है। मुम्बई में एनएसजी का ऑपरेशन समाप्त होने के बाद एनएसजी की टीम हर्षोल्लास से दिल्ली लौट गई और कैप्टन सिंह अस्पताल में हैं। उनकी आंख से अब भी खून बहता है। आंख इस कदर क्षतिग्रस्त हो चुकी है कि अब कोई दानादाता पुतली भी दे दे, तब भी ठीक नहीं हो सकती। कैप्टन सिंह के एक मित्र ने बताया कि यह अधिकारी बेहतर इलाज चाहता है और वह सेना में वापस जाकर सेवाएं देने का इच्छुक है। उसे तसल्ली देने के लिए एनएसजी का भी कोई अधिकारी मौजूद नहीं है।


सेना की जिस बटालियन से यह अधिकारी एनएसजी में आया था, उसके कमांडिंग ऑफिसर ने अभी तक उनसे मुलाकात तक करना जरूरी नहीं समझा। एक अधिकारी के अनुसार जब इस मामले को सेना के शीर्ष अधिकारी के संज्ञान में लाया गया तो उन्होंने कुछ मदद करने के बजाए यह हिदायतें जारी कर दीं कि सिंह मीडिया को इंटरव्यू न दें और न ही कोई बयान जारी करें।एसके. सिंह के माता-पिता को सूझ नहीं रहा है कि वे करें तो क्या करें।

एक तो पहले से ही भारतीय सेना में अब सक्षम, तेज़-तर्रार अफसरों की कमी होती जा रही है, ऊपर से अगर सरकार और सेना के उच्च अधिकारी अपने ही घायल जवानो की सुधि नही लेंगे तो फ़िर कौन देश के नाम पर अपनी जान जोखिम में डालना चाहेगा। अगर देश के अधिष्ठाताओं का यही हाल रहा तो वह दिन दूर नही जब देश के नौजवान सेना की बजाय दूसरे क्षेत्रों में जाना पसंद करेंगे। बेहतर होता कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें मिलकर ऐसे असहाय जवानों की स्वास्थ्य व सुरक्षा के लिए तत्परता दिखाएँ और कोई ऐसे कार्य दल का निर्माण करें जो इनके स्वस्थ्य सुरक्षा सम्बन्धी सामानों को त्वरित ढंग से मुहैया कराये साथ ही साथ उनके परिवारों की ज़रूरतों का भी ख़याल करे। ताकि देश के किसी सुरक्षा कर्मी के मन में यह भावना न पनपने पाये कि जिस देश को वह अपना कहता रहा है...जिसके लिए उसने अपनी जान दाव पर लगाया, उस देश कि सरकार और जनता को उसकी कोई फिक्र नही है।


तब तक प्यार से प्यार मत करो,
जब तक प्यार आपसे प्यार न करे।
अगर प्यार आपसे प्यार करे तो,
प्यार को इतना प्यार करो,
कि प्यार किसी और से प्यार न करे।

अगर हम न होते तो ग़ज़ल कौन कहता?
आपके चहरे को कमल कौन कहता?
ये तो करिश्मा है मोहब्बत का,
वरना पत्थर की दीवार को ताजमहल कौन कहता?

आँसू में ना ढूँढना हमें,
हम तुम्हे आँखों में मिल जायेंगे,
तमन्ना हो अगर मिलने की तो,
बंद आँखों से भी नज़र आएँगे.

जिस दिल ने न आई चोट कभी वो दर्द किसी का क्या जाने,
खुद शमा को मालूम नहीं, क्यूं जल जाते हैं परवाने।
मत पूछो क्या गुज़रती है जुदा जब यार होते हैं,
आँसू तीर बन के जिगर के पार होते हैं।

तेरी यादों के सिवा कोई लम्हा गुज़ारा नहीं,
एक पल नहीं जब तुम्हें मेरे दिल ने पुकारा नहीं।
तेरे बिन यूँ कट रही दरिया-ऐ-जिंदगी में,
कश्ती भी है, माझी भी है, पर किनारा नहीं।

इंसानों के कन्धों पे इंसान जा रहा हैं,
कफ़न में लिपटे कुछ अरमान जा रहा है।
जिन्हें नही मिली मोहब्बत इस दुनिया में,
मोहब्बत पाने वो कब्रिस्तान जा रहा है।

क्यों रात-दिन रोते हो उसके लिए,
जो न था तुम्हारा एक पल के लिए।
अश्कों से कहो, अब थम भी जाएँ,

मैं हूँ तुम्हारा, तुम्हे जीना है मेरे लिए।



मन दुखी है तो क्या बैठ कर रोऊँ,


दुःख का जाप करू ?


एक नुक्सान वो कर गए दूजा मै अपने आप करू ?


नही, अभी बहुत काम है मुझे !


हादसा हो गया है मेरे शहर में मेरे अपनों के साथ,


मै लुट गई हूँ एक ख़बर बनाऊं, और विरलाप करुँ?


मानस होकर वहशी सा पाप करू ?


नही अभी बहुत काम है मुझे !


घरोंदे जो टूट गए है फिर से बनाने होंगे,


दिल जो खौफज़दा हैं जिंदगी से फिर से मनाने होंगे,


तुम्हे फुर्सत है, किसी पर इल्जाम धर सको,


रैली में अपना नाम करो,


मुझे बख्सो ! अभी बहुत काम है मुझे।



...With Spl.Thanks to Anu



जिनको पकड़ा हाँथ समझकर,


वो केवल दस्ताने निकले।


आहों का अंदाज़ नया था,


लेकिन ज़ख्म पुराने निकले।



यही दुनिया-ऐ-उल्फत में हुआ करता है, होने दो।


तुम्हे हसना मुबारक हो, कोई रोता है रोने दो।


कसम ले लो जो शिकवा हो तुम्हारी बेवफाई का,


किए को अपने रोता हूँ, मुझे जी भर के रोने दो।



बहुत हसीं सही सोहबतें गुलों की मगर,


ज़िन्दगी वो है जो काँटों के दरमियाँ गुजरे।





विश्व एडस दिवस
आज (1st Dec.) पूरी दुनिया में विश्व एडस दिवस मनाया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र ने इस मौके पर देशों से अपील की है कि वे बचाव और इलाज के लिए किये गए वादों को पूरा करे. इस समय तीन करोड़ तीस लाख लोग एचआईवी पॉसिटिव हैं जिससे एड्स की बीमारी होती है.

Acquired Immune Deficiency Syndrome (AIDS) यानि उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण Human Immunodeficiency Virus (HIV) यानि मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमण के बाद की स्थिति है, जिसमें मानव अपने प्राकृतिक प्रतिरक्षण क्षमता खो देता है। उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण स्वयं कोई बीमारी नही है पर उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण से पीड़ित मानव शरीर संक्रामक बीमारियों, जो कि जीवाणु और विषाणु आदि से होती हैं, के प्रति अपनी प्राकृतिक प्रतिरोधी शक्ति खो बैठता है क्योंकि HIV विषाणु रक्त में उपस्थित प्रतिरोधी पदार्थ लसीका-कोशो पर आक्र्म्ण करता है। AIDS पीड़ित के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर क्षय रोग जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं। मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमण को उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण की स्थिति तक पहुंचने में ८ से १० वर्ष या इससे भी अधिक समय लग सकता है। मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु से ग्रस्त व्यक्ति अनेक वर्षों तक संलक्षणों के बिना रह सकते हैं।
उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण वर्तमान युग की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है यान के ये एक महामार है। उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के संक्रमण के तीन मुख्य कारण हैं - यौन द्वारा, रक्त द्वारा तथा माँ-शिशु संक्रमण द्वारा। राष्ट्रीय उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण नियंत्रण कार्यक्रम और संयुक्त राष्ट्रसंघ उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण दोनों ही यह मानते हैं कि भारत में ८० से ८५ प्रतिशत संक्रमण असुरक्षित विषमलिंगी/विषमलैंगिक यौन संबंधों से फैल रहा है। माना जाता है कि सबसे पहले इस रोग का विषाणु: मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु, अफ्रीका के खास प्राजाति की बंदर में पाया गया और वहीं से ये पूरी दुनिया में फैला। अभी तक इसे लाइलाज माना जाता है लेकिन दुनिया भर में इसका इलाज पर शोधकार्य चल रहे हैं। १९८१ में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण की खोज से अब तक इससे लगभग २ १/२ करोड़ लोग जान गंवा बैठे हैं।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण इन में से किसी भी कारण से फैल सकता है:
गुदा,योनिक या मौखिक मैथुन [वीर्य, योनिक द्रव्य या प्रतिवीर्यक द्रव्य द्वारा]
रक्त संक्रामण
स्तनपान कराना [माता से शीशु मे]
संदूषित अधस्तवक पिचकारीया

दुनिया भर में इस समय लगभग चार करोड़ 20 लाख लोग मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु का शिकार हैं। इनमें से दो तिहाई सहारा से लगे अफ़्रीकी देशों में रहते हैं और उस क्षेत्र में भी जिन देशों में इसका संक्रमण सबसे ज़्यादा है। वहाँ हर तीन में से एक वयस्क इसका शिकार है। दुनिया भर में लगभग 14,000 लोगों के प्रतिदिन इसका शिकार होने के साथ ही यह डर बन गया है कि ये बहुत जल्दी ही एशिया को भी पूरी तरह चपेट में ले लेगा।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण से कैसे बचें -

जब तक कारगर इलाज खोजा नहीं जाता, उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण से बचना ही उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण का सर्वोत्तम उपचार है।
अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहें। एक से अधिक व्यक्ति से यौनसंबंध ना रखें।
यौन संबंध(मैथुन) के समय शिश्वावेष्टन गर्भ निरोधक् का सदैव प्रयोग करें।
यदि आप मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमित या उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण ग्रसित हैं तो अपने जीवनसाथी से इस बात का खुलासा अवश्य करें। बात छुपाये रखनें तथा इसी स्थिती में यौन संबंध जारी रखनें से आपका साथी भी संक्रमित हो सकता है और आपकी संतान पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है।
यदि आप मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमित या उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण ग्रसित हैं तो रक्तदान कभी ना करें।
रक्त ग्रहण करने से पेहले रक्त का मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु परीक्षण कराने पर ज़ोर दें।
यदि आप को मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमण होने का संदेह हो तो तुरंत अपना मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु परीक्षण करा लें। उल्लेखनीय है कि अक्सर मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु के कीटाणु, संक्रमण होने के 3 से 6 महीनों बाद भी, मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु परीक्षण द्वारा पता नहीं लगाये जा पाते। अतः तीसरे और छठे महीने के बाद मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु परीक्षण अवश्य दोहरायें।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण इन कारणों से नहीं फैलता -
मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमित या उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाने से
मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमित या उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण ग्रसित व्यक्ति के साथ रहने से या उनके साथ खाना खाने से।
एक ही बर्तन या रसोई में स्वस्थ और मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति के खाना बनाने से।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के लक्षण –

अक्सर मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु से संक्रमित लोगों में लम्बे समय तक उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के कोई लक्षण नहीं दिखते। दीर्घ समय तक ( 3, 6 महीने या अधिक ) तक मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु भी औषधिक परीक्षा में नहीं उभरते। अधिकांशतः उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के मरीज़ों को ज़ुकाम या विषाणु बुखार हो जाता है पर इससे उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण होने की पहचान नहीं होती। उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के कुछ प्रारम्भिक लक्षण हैं:
बुखार
सिरदर्द
थकान
हैजा
मतली व भोजन से अरुचि
लसीकाओं में सूजन
ध्यान रहे कि ये समस्त लक्षण साधारण बुखार या अन्य सामान्य रोगों के भी हो सकते हैं। अतः उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण की निश्चित रूप से पहचान केवल, और केवल, औषधीय परीक्षण से ही की जा सकती है व की जानी चाहिये।

प्रगत अवस्था में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के लक्षण –
तेज़ी से अत्याधिक वजन घटना
सूखी खांसी
लगातार ज्वर या रात के समय अत्यधिक/असाधारण मात्रा में पसीने छूटना
जंघाना, कक्षे और गर्दन में लम्बे समय तक सूजी हुई लसिकायें
एक हफ्ते से अधिक समय तक दस्त होना। लम्बे समय तक गंभीर हैजा।
फुफ्फुस प्रदाह
चमड़ी के नीचे, मुँह, पलकों के नीचे या नाक में लाल, भूरे, गुलाबी या बैंगनी रंग के धब्बे।
निरंतर भुलक्कड़पन, लम्बे समय तक उदासी और अन्य मानसिक रोगों के लक्षण।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण रोग का इलाज –

औषधी विज्ञान में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के इलाज पर निरंतर संशोधन जारी हैं। भारत, जापान, अमरीका, युरोपीय देश और अन्य देशों में इस के इलाज व इससे बचने के टीकों की खोज जारी है। हालांकी उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के मरीज़ों को इससे लड़ने और उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण होने के बावजूद कुछ समय तक साधारण जीवन जीने में सक्षम हैं परंतु अंत में मौत निश्चित हैं। उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण लाइलाज हैं। इसी कारण आज यह भारत में एक महामारी का रूप हासिल कर चुका है। भारत में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण रोग की चिकित्सा महंगी है, उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण की दवाईयों की कीमत आम आदमी की आर्थिक पहुँच के परे है। कुछ विरल मरीजों में सही चिकित्सा से 10-12 वर्ष तक उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के साथ जीना संभव पाया गया है, किंतु यह आम बात नही है।

सामाजिक बदलाव - एक महत्वपूर्ण पक्ष :

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण का एक बड़ा दुष्प्रभाव है कि समाज को भी संदेह और भय का रोग लग जाता है। यौन विषयों पर बात करना हमारे समाज में वर्जना का विषय रहा है। निःसंदेह शतुरमुर्ग की नाई इस संवेदनशील मसले पर रेत में सर गाड़े रख अनजान बने रहना कोई हल नहीं है। इस भयावह स्थिति से निपटने का एक महत्वपूर्ण पक्ष सामाजिक बदलाव लाना भी है।

… रवि श्रीवास्तव

from- मेरी पत्रिका
www.meripatrika.co.cc