जिनको पकड़ा हाँथ समझकर,
वो केवल दस्ताने निकले।
आहों का अंदाज़ नया था,
लेकिन ज़ख्म पुराने निकले।
यही दुनिया-ऐ-उल्फत में हुआ करता है, होने दो।
तुम्हे हसना मुबारक हो, कोई रोता है रोने दो।
कसम ले लो जो शिकवा हो तुम्हारी बेवफाई का,
किए को अपने रोता हूँ, मुझे जी भर के रोने दो।
बहुत हसीं सही सोहबतें गुलों की मगर,
ज़िन्दगी वो है जो काँटों के दरमियाँ गुजरे।
1 Comments:
बहुत ही गज़ब का लिखा है. जारी रहें.
साथ ही मेरे ब्लॉग पर भी अपनी राय दें.
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अमित के. सागर
(मौजे-सागर)
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