टूटा जो आ के लब पे, तेरा नाम ही तो है,
दिल में बस एक ख्वाहिश-ऐ-नाकाम ही तो है।


पहला क़दम ही आखिरी है, उठ सके अगर,
मंजिल यकीन-ऐ-इश्क की एक गाम ही तो है।


रहने दो वापसी के लिए रास्ता खुला,
वो बद नही है, एक ज़रा बदनाम ही तो है।


साबित करेगा क्या कोई हम पर जफा का जुर्म,
एक रोज़ ढल ही जायेगा, इल्जाम ही तो है।

0 Comments: