हमेशा मुस्कुरा के आंसूओं को छुपाया,
गम को छुपाने का यही रास्ता नज़र आया।
किस- किस को बताते बहते अश्कों का सबब,
कि दर्द-ऐ-दिल दिल में किस ने जगाया।
महफिलों में कहीं भी मज़ा न रहा,
रखा दिल पे पत्थर तो ख़ुद को सजाया।
बात बे बात अपनी आहें दबा कर,
यारों के दरमियाँ किस कदर मुस्कुराया।
न थी चाह कभी मुझे मंकाशी की,
जाम-ऐ-वफ़ा किसी भी वफ़ा ने पिलाया।
क्या मुक़दर से शिकवा करते रहें,
जो किस्मत में था वोही कुछ तो पाया।
यह किस मोड़ पे आ गई हैं उमीदें,
के साया-ऐ-मंजिल नज़र में न आया।
अपनों ने पलट के देखा तक नहीं,
गैरों ने आकर गले से लगाया।
अच्छा हुआ कि राज़ खुल ही गया,
दिल-ऐ-नादान पे खंजर किस ने चलाया।
शब्-ओ-रोज़ चाहत का सिला ये है शाकी,
दिल के टुकड़े हुए, और वो चुनने न आया।
अगर आप मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान, तो जानें कैसे
मिलेगा आराम
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मौजूदा भागमभाग वाली जिंदगी में पता नहीं कब शरीर के किसी भाग का दर्द हमारी
दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है, इसका हमें पता भी नहीं चलता। सुबह उठने के बाद
अक्सर...
5 years ago
1 Comments:
बहुत-बहुत शुर्किया एक उम्दा रचना पढाने के लिए. मज़ा आ गया यारा. जारी रहें.
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