क्या कहूँ मैं क्या नही
वो मेरा हुआ नही
ज़िन्दगी जीया करो
यह कोई बला नही
दिल में है लाख लाख पर
लब पर कोई सदा नही
सब की मैं हुई मगर
अक्स भी मेरा नही
की है उस ने दिल्लगी
इश्क तो किया नही
मर्ज़ ला-इलाज यह
दर्द की दवा नही
पत्थर पिघल गए
कुछ असर उनपर हुआ नही
दिन वही है रात भी
पर अब वो शमां नही
जो मिला नसीब से
अब कोई गिला नही
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दोस्ती में शब्दों की अहमियत नही होती,
दिल के जज्बात की आवाज नही होती।
आँखे बयां कर देती है दिल की दास्ताँ,
दोस्ती कभी लफ्जों की मोहताज नही होती।
इन दिनों बाहर का तापमान दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। ऐसे में गर्मी से जुड़ी बीमारियां होना एक आम समस्या हो गई है। गर्मी के मौसम में स्वस्थ रहने के लिए यह आवश्यक है कि प्रातःकाल घूमने जाएँ । गर्मी के दिनों में स्वास्थ्य बिगड़ने में देर नहीं लगती है। सूर्योदय से पहले उठकर शुद्ध वायु के सेवन के लिए घूमना अत्यंत आवश्यक है।

* गर्मी में दोपहर को घर से बाहर जाने के पहले एक गिलास ठंडा पानी अवश्य पीना चाहिए तथा एक प्याज जेब में रखना चाहिए। इससे लू का प्रभाव नहीं होता।

* तेज धूप में जाना हो तो सिर पर टोपी, हेलमेट या फेल्टहेट लगाकर जाएँ, ताकि सिर पर धूप की सीधी किरणें न पड़ें।

* दिन में एक या दो बार नीबू-पानी-शकर डालकर पीना चाहिए। इसके अतिरिक्त दही, छाछ या मीठे शर्बत का सेवन करना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो एक गिलास पानी में 1-2 चम्मच ग्लूकोज घोलकर पीना चाहिए। इससे शरीर में शीतलता व तरावट बनी रहती है।

* धूप में या तेज गर्मी में घूमते हुए ठंडा पानी या पेय न पिएँ। घर पहुँचकर भी तुरंत पानी न पिएँ। जब पसीना सूख जाए तथा शरीर ठंडा हो जाए तब पानी पीना चाहिए।

* गर्मी के दिनों में हल्का भोजन करना चाहिए। बासी भोजन तथा तेज मिर्च मसाले वाले, तले हुए नमकीन, बेसन के बने पदार्थों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। खट्टा व बासी दही नहीं खाना चाहिए। घर में ही जमा हुआ दही खाना चाहिए।

* गर्मी के दिनों में देर तक भूखे रहना उचित नहीं है। इस मौसम में तरबूज, संतरे, मौसंबी, केला, हरी ककड़ी आदि का उपयोग करना चाहिए।

* शाम का भोजन भारी, गरिष्ठ व तला हुआ नहीं होना चाहिए। सोने से एक घंटा पहले भोजन करना चाहिए। भोजन में आम के पने का सेवन अवश्य करना चाहिए।

* इस ऋतु में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। गर्मियों में कई बीमारियां हो सकती है जैसे – दस्त, बहुत देर भूखे रहने पर पेट में गैस बनना, या ‘विषाक्त भोजन’ के शिकार होना। गर्मियों की इन बीमारियों से बचने के कुछ नुस्खे –
- गर्मी के दिनों हमेशा पानी साथ रखें।
- ज्यादा देर पेट खाली न रखें, थोड़ा-थोड़ा खाते रहें।
- ज्यादा चाय-कॉफी न ले, दिन में एक या दो कप लें।
- गर्मी में शरीर को ठंडा रखने के लिए बेल फल का शरबत लें।
- जौ से बनी सारी चीजें शरीर को ठंडा रखने में मदद करती है।
- ‘रिफाइंड’ खानों से दूर रहें।
- एक साथ ज्यादा खाना न खाएं।
- नींबू पानी, सत्तू, लस्सी, शिंकजी लें।
- फ्रीज का पानी न पिएं।

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खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था,
दहकती आग थी तन्हाई थी फ़साना था।
ग़मों ने बाँट लिया मुझे यूँ आपस में,
कि जैसे मैं कोई लूटा हुआ खजाना था।
ये क्या, चंद क़दमों पर ही थी मंजिल कि बैठ गए,
तुम्हे तो साथ मेरा दूर तक निभाना था।
मुझे जो मेरे लहू में डुबो के गुज़रा है,
वो कोई गैर नही यार, एक पुराना था।
ख़ुद अपने हाथ से उसको काट दिया,
कि जिस दरख्त के टहनी पर मेरा आशियाना था।

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वो कोई और ही था, जिसे तुमसे वफ़ा की उम्मीद थी,
हमें तो बस ये देखना है, कि तुम बेवफा कब तक हो।


जो किया है इकरार क्या समझूं मैं इसे,
समझना भी चाहूँ तो कैसे समझू इसे।
अब तक मोहब्बत ने हमें दूर से तरसाया है,
अफसाना समझू की कहूँ मैं हकीकत इसे।

लिख तो दिया है तुमने कागज़ पर दिल की बात को,
इकरार से पहले जाना तो होता मेरे बारे में।

दिल की बात है या फिर कहें महज़ कलाम इसे,
कैसे पा सकते है हम इश्क वाले की हकीकत को
या खुदा, तू ही बता और क्या लिख भेजूं मैं उसे।

दोस्त क्या खूब वफाओं का सिला देते हैं।
हर नए मोड़ पे एक दर्द नया देते हैं।
तुमसे तो खैर घड़ी भर का ताल्लुक रहा,
लोग सदियों की रफाकात भुला देते हैं।


कैसे मुमकिन है कि धुंआ न हो और दिल भी जले,
चोट पड़ती है तो पत्थर भी सदा देते हैं।
कौन होता है मुसीबत में किसी का ए दोस्त,
आग लगती है तो पत्ते भी हवा ही देते हैं।


जिन पे होता है दिल को भरोसा,
वक्त पड़ने पे वही लोग धोखा भी देते हैं।

दोस्त क्या खूब वफाओं का सिला देते हैं।

हर नए मोड़ पे एक दर्द नया देते हैं।
एक तीन साल का बालक मास्टर राज के नन्हें- नन्हें हाथों से कोरे कागज़ पर उकेरे गए बचपने से बालचित्रों को देखकर आप को क्या महसूस होता है? बच्चे का मन एक सादे कागज़ की तरह ही कोरा होता है। उसके द्वारा बनाए गए हर चित्र एक अलग ही कहानी कहते हैं। कल मैंने जब इन चित्रों को देखा तो एक पल के लिए मुझे मेरा बचपन याद आ गया। वैसे तो देखने में ये चित्र कुछ ख़ास नही मालूम पड़ते हों, लेकिन मास्टर राज की आँखों से देखने पर ये चित्र भी कुछ बोलते हुए से जान पड़ते हैं।

मास्टर राज एक चित्र की और इशारा करते हुए कहता है कि यह मेरी बहन साक्षी है जो अकेली है और मुझे अपने साथ खेलने के लिए बुला रही है। साक्षी इस समय राज के साथ नही रहती है। वह दो महीने से अपनी नानी के घर रह रही है। अब राज के साथ खेलने वाला कोई नही। इसलिए अब उसका मन नही लगता।

एक दूसरे चित्र में वह बताता है कि यह एक माली है जो एक हाथ से टब से पानी निकालकर दूसरे हाथ से गर्मी और धूप के कारण सूखते हुए पौधों को पानी दे रहा है ताकि उन्हें कुछ राहत महसूस हो। एक जगह वह कहता है कि मुझे बहूत भूख लगी है और मै कूकर में खाना पका रहा हूँ और साक्षी मेरी हेल्प कर रही है।

एक कोने में ख़ुद के द्वारा बनाए हुए चित्र को दिखाकर मास्टर राज कहते हैं कि यह एक आर्मी है जो विलन के जहाज पर बम फेक रहा है। अन्यत्र एक छोटा बच्चा बनाता है जो हाथ में बन्दूक लिए हुए है, पूछने पर कि यह कौन है… वह कहता है, "यह मै ही हूँ"।




सोये हुए अरमान जगा रहा है आज,
यह कौन सा राग सदा दे रहा है आज।
मेरी साँसों में यह किसकी खुशबू है आज,
यह कौन है जिसने मुझे जगाया है आज।


मेरी पलकों की राहों पे जगमगाता हुआ,
यह कौन है जो बाहें फैला के बुला रहा है आज।
कोई मेरे लब पे मुस्कान बनके खिल रहा है आज,
यह कौन है जो मुझीको मुझसे चुरा रहा है आज।


यह कौन है ? कौन है ?
जिसको मेरी नज़र तलाशती है आज?


मोहब्बत नासमझ होती है, समझाना ज़रूरी है,
जो दिल में है उसे आंखों से कहलवाना ज़रूरी है।
उसूलों पर जो आँच आए तो टकराना ज़रूरी है,
जो जिंदा है तो फ़िर जिंदा नज़र आना भी ज़रूरी है।


बहुत बेबाक आँखों में ताल्लुक टिक नहीं सकता
मोहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है।
सलीका ही नही शायद उसे महसूस करने का,
जो कहते है गर खुदा है तो नज़र आना भी ज़रूरी है।

हर महफिल में तेरे आने का इंतज़ार करते हैं।
एक बार आ जाए तू खुदा से फरियाद करते हैं।
तेरे दीदार को तरस गई है यह आँखें मेरी,
अब तो हर मंज़र में हम ,तुझे ही ढूंडा करते हैं।


तेरी चाहतों ने उस मोड़ पर ला खड़ा किया है मुझे,
की तेरी याद में हम जीते है और न मारा करते हैं।
मिल कर तुमसे एक बात और कहनी है दिल की,
कि सनम, हम तो सिर्फ़ तुमसे प्यार करते हैं।
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साथ नही रहने से रिश्ते नही टूटा करते,
वक्त की धुंध से लम्हे नही टूटा करते।
लोग कहते हैं मेरा सपना टूट गया,
टूटी नींद है सपने नही टूटा करते।

ये दर्द मिट गया तो फिर?
ये ज़ख्म सिल गया तो फिर?
बिछड़ कर सोचता हूँ मैं,
वो फिर से मिल गया तो फिर?
मैं तितलियों के शहर में,
रहूँ तो मुझ को फिकर है
वो फूल जो खिला नही,
वो फूल खिल गया तो फिर?
तुझे भी कुछ नही मिला,
मुझे भी कुछ नही मिला,
तमाम उमर के लिए,
ये दर्द मिल गया तो फिर?
मैं इसलिए तो आज तक,
सवाल भी न कर सका,
अगर मेरे सवाल का,
जवाब मिल गया तो फिर?


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बहुत उदास है कोई तेरे जाने से,


हो सके तो लौट के आ किसी बहने से।


तू लाख खफा सही मगर एक बार तो देख,


कोई टूट सा गया है तेरे रूठ जाने से॥


देश में पानी की उपलब्धता की खराब होती स्थिति गम्भीर चिंता का विषय बनी हुई है. जैसे जैसे गर्मी बढाती जा रही है, वैसे वैसे पानी की समस्या भी बढाती जा रही है. एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2020 तक पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति एक हजार क्यूबिक मीटर से भी कम रह जाएगी। पानी की कीमत का अंदाजा नहीं लगा पा रहे भारत के लोगों ने अगर पानी का मोल जल्द ही नहीं समझा तो वर्ष 2020 तक देश में जल की समस्या विकराल रूप ले सकती है। तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़े जाने की आशंकाओं के बीच भारत में जलस्रोतों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है नतीजतन कई राज्य पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। पानी के इस्तेमाल के प्रति लोगों की लापरवाही अगर बरकरार रही तो भविष्य में इसके गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।देश में 85 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल खेती के लिए, 10 फीसदी जल का प्रयोग उद्योगों में तथा पाँच प्रतिशत पानी घरेलू कामों में इस्तेमाल किया जाता है। विश्व बैंक के एक अध्ययन में कहा गया है कि 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले 27 एशियाई शहरों में चेन्नई और दिल्ली पानी की उपलब्धता के मामले में सबसे खराब स्थिति वाले महानगर हैं। इस फेहरिस्त में मुम्बई दूसरे स्थान पर जबकि कोलकाता चौथी पायदान पर है।

पानी की समस्या तो वाराणसी में हर जगह पर है लेकिन सबसे ज्यादा पानी की समस्या वाराणसी के पक्के महल्लों और गरीब बस्तियों में होती है, जिसकी ओर किसी का ध्यान नहीं होता है । उन पक्के महल्लों और गरीब बस्तियों में पानी के पाईप तो हर जगह पर हैं पर पानी कहीं-कहीं आता है । जिनके घरों में पानी नहीं आता वह दूसरों के घर से पानी भरते हैं । परंतु कुछ लोग जिनके घरों में पानी आता है वह लोग अपना पानी भरने के बाद भी दूसरों को पानी भरने नहीं देना चाहते हैं। पीने के पानी के लिए लोग दूर-दूर तक जाते हैं । पानी आते ही लोग इस तरह घर से पानी भरने के लिए भागते हैं कि कोई भयानक आदमखोर जानवर आ गया हो । इसका सबसे बुरा असर पड़ता है पढ़ने वाले विधार्थियों पर। पानी के अनियमित समय और गंदे पानी की आपूर्ति के कारण कई बार उन्हें अपनी पढा़ई से उठना पड़ता है ।
प्रदेश में हर वर्ष हो रही कम वर्षा की वजह से संरक्षित वन क्षेत्रों में भी पानी की समस्या गहराने लगी है। कई जगह पानी के स्रोत सूख चुके हैं। पानी की तलाश में वन्य प्राणी कई बार सड़कों व गांवों में पहुंच जाते हैं, जिससे उनके साथ दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं।

प्यासे को पानी पिलाना लोक-जीवन में बड़ा पुण्य माना जाता है। जल-संग्रहण ही प्रकारांतर से जल-दान होगा। हमारे घर के आस-पास और घर पर बरसने वाला पानी व्यर्थ न बहे, इसकी एक-एक बूंद बचाने का हमें प्रयास करना होगा। हम जल के इस भाव को सुरक्षित रखने का प्रयास करके ही जल को सर्वसुलभ बना सकते हैं। इस सम्बन्ध में जन जागृती करना जरूरी है ।


ज़िन्दगी का सहारा गया,
दिल तो बेमौत मारा गया।
अब निगाहों से क्या काम लूं
मेरी आँखों का तारा गया।


रात भर शमा कि ज्योत पर,
नाम तेरा पुकारा गया।
लज्ज़त-ए-ज़ख्म-ए-उल्फत न पूछ,
उनके दर पर दोबारा गया।


इश्क का राज़ मुझ पर खुला,
आज से जब गुज़ारा गया।
जब भी खून की ज़रुरत पड़ी,
दिल चमन में हमारा गया।


जैसे मुझ पर हो ईशान कोई,
कब्र में यूँ उतारा गया।
बज्म-ए-रिन्दाँ क्यूँ सजे,
मैकदे का सितारा गया।
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अभी सोचा ही था ढूँढू उफाक के पार का रास्ता,
तो दिल बोला मेरा सोचो कब का लापता हूँ मैं।
हवा बोली समुंदर से, तेरा भी कोई बिछड़ा हैं,
कहा उसने, जा जा के साहिल पे उसी को ढूंढता हूँ मैं।


पाकिस्तान में पश्चिमोत्तर प्रांत की स्वात घाटी में काबिज तालिबान ने बुनेर से हटने की बजाए सूफी संत पीर बाबा की मजार सहित कई नए इलाकों पर कब्जा करके अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। सुरक्षाबल तालिबान की इस कार्रवाई का कोई प्रतिरोध नहीं कर रहे हैं। स्थानीय लोगों के हवाले से पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ ने कहा है कि तालिबान आतंकवादियों ने शुक्रवार को इलाके के कई प्रभावशाली कबायली नेताओं के घरों पर कब्जा कर लिया है और जिला मुख्यालय डग्गर की ओर जाने वाली मुख्य सड़क और कई अन्य इलाकों में गश्त कर रहे हैं।


तालिबान ने गुरूवार को बुनेर पर कब्जा छोड़ने की घोषणा की थी। लेकिन इस पर अमल करने के बजाए उसने आसपास के नए क्षेत्रों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है। तालिबान का विरोध कर रहे कबायली नेताओं के घरों पर कब्जा किया जा चुका है। तालिबानियों ने जुमे की नमाज से पहले इलाके में टेलीविजन, ऑडियो और वीडियो कैसेट बेचने वाली दुकानों को आग के हवाले कर दिया। पीर बाबा की मजार को बंद कर दिया गया है और उनके अनुयायियों को वहां जाने से रोका जा रहा है।पुलिस और सुरक्षा बल तालिबान की इस कार्रवाई का कोई प्रतिरोध नहीं कर पा रहे हैं। अधिकारियों ने तालिबान की कार्रवाई में कोई हस्तक्षेप नहीं करने को कहा है। उनके पास अत्याधुनिक हथियार हैं।

यह सब अमेरिका की आतंकवाद के प्रति दोहरी नीति का ही परिणाम है. अब वह समय आ गया है जब पाकिस्तान को अपने गिरहबान में झाँकने की ज़रुरत है. अमेरिका को आतंकवाद के प्रति वैश्विक मानक बनाने होंगे. शांति पसंद जनतांत्रिक देशो को मिलकर इस महासमस्या का निदान ढूंढ़ना होगा. वो भी अतिशीघ्र, नहीं तो पूरी मानव जाति के वर्तमान सभ्यता के औचित्य पर प्रश्नचिह्न लग जायेगा.

(सृंखला - "एक कहानी " के अंतर्गत प्रेम चंद की कहानी...)
विधवा हो जाने के बाद बूटी का स्वभाव बहुत कटु हो गया था। जब बहुत जी जलता तो अपने मृत पति को कोसती-आप तो सिधार गए, मेरे लिए यह जंजाल छोड़ गए । जब इतनी जल्दी जाना था, तो ब्याह न जाने किसलिए किया । घर में भूनी भॉँग नहीं, चले थे ब्याह करने ! वह चाहती तो दूसररी सगाई कर लेती । अहीरों में इसका रिवाज है । देखने-सुनने में भी बुरी न थी । दो-एक आदमी तैयार भी थे, लेकिन बूटी पतिव्रता कहलाने के मोह को न छोड़ सकी । और यह सारा क्रोध उतरता था, बड़े लड़के मोहन पर, जो अब सोलह साल का था । सोहन अभी छोटा था और मैना लड़की थी । ये दोनों अभी किसी लायक न थे । अगर यह तीनों न होते, तो बूटी को क्यों इतना कष्ट होता । जिसका थोड़ा-सा काम कर देती, वही रोटी-कपड़ा दे देता। जब चाहती किसी के सिर बैठ जाती । अब अगर वह कहीं बैठ जाए, तो लोग यही कहेंगे कि तीन-तीन बच्चों के होते इसे यह क्या सूझी ।
मोहन भरसक उसका भार हल्का करने की चेष्टा करता । गायों-भैसों की सानी-पानी, दुहना- मथना यह सब कर लेता, लेकिन बूटी का मुँह सीधा न होता था । वह रोज एक-न-एक खुचड़ निकालती रहती और मोहन ने भी उसकी घुड़कियों की परवाह करना छोड़ दिया था । पति उसके सिर गृहस्थी का यह भार पटककर क्यों चला गया, उसे यही गिला था । बेचारी का सर्वनाश ही कर दिया । न खाने का सुख मिला, न पहनने-ओढ़ने का, न और किसी बात का। इस घर में क्या आयी, मानो भट्टी में पड़ गई । उसकी वैधव्य-साधना और अतृप्त भोग-लालसा में सदैव द्वन्द्व-सा मचा रहता था और उसकी जलन में उसके हृदय की सारी मृदुता जलकर भस्म हो गई थी । पति के पीछे और कुछ नहीं तो बूटी के पास चार-पॉँच सौ के गहने थे, लेकिन एक-एक करके सब उसके हाथ से निकल गए ।
उसी मुहल्ले में उसकी बिरादरी में, कितनी ही औरतें थीं, जो उससे जेठी होने पर भी गहने झमकाकर, आँखों में काजल लगाकर, माँग में सेंदुर की मोटी-सी रेखा डालकर मानो उसे जलाया करती थीं, इसलिए अब उनमें से कोई विधवा हो जाती, तो बूटी को खुशी होती और यह सारी जलन वह लड़कों पर निकालती, विशेषकर मोहन पर। वह शायद सारे संसार की स्त्रियों को अपने ही रूप में देखना चाहती थी। कुत्सा में उसे विशेष आनंद मिलता था । उसकी वंचित लालसा, जल न पाकर ओस चाट लेने में ही संतुष्ट होती थी; फिर यह कैसे संभव था कि वह मोहन के विषय में कुछ सुने और पेट में डाल ले । ज्योंही मोहन संध्या समय दूध बेचकर घर आया बूटी ने कहा-देखती हूँ, तू अब साँड़ बनने पर उतारू हो गया है ।
मोहन ने प्रश्न के भाव से देखा-कैसा साँड़! बात क्या है ?
‘तू रूपिया से छिप-छिपकर नहीं हँसता-बोलता? उस पर कहता है कैसा साँड़? तुझे लाज नहीं आती? घर में पैसे-पैसे की तंगी है और वहाँ उसके लिए पान लाये जाते हैं, कपड़े रँगाए जाते है।’
मोहन ने विद्रोह का भाव धारण किया—अगर उसने मुझसे चार पैसे के पान माँगे तो क्या करता ? कहता कि पैसे दे, तो लाऊँगा ? अपनी धोती रँगने को दी, उससे रँगाई मांगता ?
‘मुहल्ले में एक तू ही धन्नासेठ है! और किसी से उसने क्यों न कहा?’
‘यह वह जाने, मैं क्या बताऊँ ।’
‘तुझे अब छैला बनने की सूझती है । घर में भी कभी एक पैसे का पान लाया?’
‘यहाँ पान किसके लिए लाता ?’
‘क्या तेरे लिखे घर में सब मर गए ?’
‘मैं न जानता था, तुम पान खाना चाहती हो।’
‘संसार में एक रुपिया ही पान खाने जोग है ?’
‘शौक-सिंगार की भी तो उमिर होती है ।’
बूटी जल उठी । उसे बुढ़िया कह देना उसकी सारी साधना पर पानी फेर देना था । बुढ़ापे में उन साधनों का महत्त्व ही क्या ? जिस त्याग-कल्पना के बल पर वह स्त्रियों के सामने सिर उठाकर चलती थी, उस पर इतना कुठाराघात ! इन्हीं लड़कों के पीछे उसने अपनी जवानी धूल में मिला दी । उसके आदमी को मरे आज पाँच साल हुए । तब उसकी चढ़ती जवानी थी । तीन बच्चे भगवान् ने उसके गले मढ़ दिए, नहीं अभी वह है कै दिन की । चाहती तो आज वह भी ओठ लाल किए, पाँव में महावर लगाए, अनवट-बिछुए पहने मटकती फिरती । यह सब कुछ उसने इन लड़कों के कारण त्याग दिया और आज मोहन उसे बुढ़िया कहता है! रुपिया उसके सामने खड़ी कर दी जाए, तो चुहिया-सी लगे । फिर भी वह जवान है, आैर बूटी बुढ़िया है!
बोली-हाँ और क्या । मेरे लिए तो अब फटे चीथड़े पहनने के दिन हैं । जब तेरा बाप मरा तो मैं रुपिया से दो ही चार साल बड़ी थी । उस वक्त कोई घर लेती तो, तुम लोगों का कहीं पता न लगता । गली-गली भीख माँगते फिरते । लेकिन मैं कह देती हूँ, अगर तू फिर उससे बोला तो या तो तू ही घर में रहेगा या मैं ही रहूँगी ।
मोहन ने डरते-डरते कहा—मैं उसे बात दे चुका हूँ अम्मा!
‘कैसी बात ?’
‘सगाई की।’
‘अगर रुपिया मेरे घर में आयी तो झाडू मारकर निकाल दूँगी । यह सब उसकी माँ की माया है । वह कुटनी मेरे लड़के को मुझसे छीने लेती है। राँड़ से इतना भी नहीं देखा जाता । चाहती है कि उसे सौत बनाकर छाती पर बैठा दे।’
मोहन ने व्यथित कंठ में कहा,अम्माँ, ईश्वर के लिए चुप रहो । क्यों अपना पानी आप खो रही हो । मैंने तो समझा था, चार दिन में मैना अपने घर चली जाएगी, तुम अकेली पड़ जाओगी । इसलिए उसे लाने की बात सोच रहा था । अगर तुम्हें बुरा लगता है तो जाने दो ।
‘तू आज से यहीं आँगन में सोया कर।’
‘और गायें-भैंसें बाहर पड़ी रहेंगी ?’
‘पड़ी रहने दे, कोई डाका नहीं पड़ा जाता।’
‘मुझ पर तुझे इतना सन्देह है ?’
‘हाँ !’
‘तो मैं यहाँ न सोऊँगा।’
‘तो निकल जा घर से।’
‘हाँ, तेरी यही इच्छा है तो निकल जाऊँगा।’
मैना ने भोजन पकाया । मोहन ने कहा-मुझे भूख नहीं है! बूटी उसे मनाने न आयी । मोहन का युवक-हृदय माता के इस कठोर शासन को किसी तरह स्वीकार नहीं कर सकता। उसका घर है, ले ले। अपने लिए वह कोई दूसरा ठिकाना ढूँढ़ निकालेगा। रुपिया ने उसके रूखे जीवन में एक स्निग्धता भर ही दी थी । जब वह एक अव्यक्त कामना से चंचल हो रहा था, जीवन कुछ सूना-सूना लगता था, रुपिया ने नव वसंत की भाँति आकर उसे पल्लवित कर दिया । मोहन को जीवन में एक मीठा स्वाद मिलने लगा। कोई काम करना होता, पर ध्यान रुपिया की ओर लगा रहता। सोचता, उसे क्या, दे दे कि वह प्रसन्न हो जाए! अब वह कौन मुँह लेकर उसके पास जाए ? क्या उससे कहे कि अम्माँ ने मुझे तुझसे मिलने को मना किया है? अभी कल ही तो बरगद के नीचे दोनों में केसी-कैसी बातें हुई थीं । मोहन ने कहा था, रूपा तुम इतनी सुन्दर हो, तुम्हारे सौ गाहक निकल आएँगे। मेरे घर में तुम्हारे लिए क्या रखा है ? इस पर रुपिया ने जो जवाब दिया था, वह तो संगीत की तरह अब भी उसके प्राण में बसा हुआ था-मैं तो तुमको चाहती हूँ मोहन, अकेले तुमको । परगने के चौधरी हो जाव, तब भी मोहन हो; मजूरी करो, तब भी मोहन हो । उसी रुपिया से आज वह जाकर कहे-मुझे अब तुमसे कोई सरोकार नहीं है!
नहीं, यह नहीं हो सकता । उसे घर की परवाह नहीं है । वह रुपिनया के साथ माँ से अलग रहेगा । इस जगह न सही, किसी दूसरे मुहल्ले में सही। इस वक्त भी रुपिया उसकी राह देख रही होगी । कैसे अच्छे बीड़े लगाती है। कहीं अम्मां सुन पावें कि वह रात को रुपिया के द्वार पर गया था, तो परान ही दे दें। दे दें परान! अपने भाग तो नहीं बखानतीं कि ऐसी देवी बहू मिली जाती है। न जाने क्यों रुपिया से इतना चिढ़ती है। वह जरा पान खा लेती है, जरा साड़ी रँगकर पहनती है। बस, यही तो।
चूड़ियों की झंकार सुनाई दी। रुपिया आ रही है! हा; वही है।
रुपिया उसके सिरहाने आकर बोली-सो गए क्या मोहन ? घड़ी-भर से तुम्हारी राह देख रही हूँ। आये क्यों नहीं ?
मोहन नींद का मक्कर किए पड़ा रहा।
रुपिया ने उसका सिर हिलाकर फिर कहा-क्या सो गए मोहन ?
उन कोमाल उंगलियों के स्पर्श में क्या सिद्घि थी, कौन जाने । मोहन की सारी आत्मा उन्मत्त हो उठी। उसके प्राण मानो बाहर निकलकर रुपिया के चरणों में समर्पित हो जाने के लिए उछल पड़े। देवी वरदान के लिए सामने खड़ी है। सारा विश्व जैसे नाच रहा है। उसे मालूम हुआ जैसे उसका शरीर लुप्त हो गया है, केवल वह एक मधुर स्वर की भाँति विश्व की गोद में चिपटा हुआ उसके साथ नृत्य कर रहा है ।
रुपिया ने कहा-अभी से सो गए क्या जी ?
मोहन बोला-हाँ, जरा नींद आ गई थी रूपा। तुम इस वक्त क्या करने आयीं? कहीं अम्मा देख लें, तो मुझे मार ही डालें।
‘तुम आज आये क्यों नहीं?’
‘आज अम्माँ से लड़ाई हो गई।’
‘क्या कहती थीं?’
‘कहती थीं, रुपिया से बोलेगा तो मैं परान दे दूँगी।’
‘तुमने पूछा नहीं, रुपिया से क्यों चिढ़ती हो ?’
‘अब उनकी बात क्या कहूँ रूपा? वह किसी का खाना-पहनना नहीं देख सकतीं। अब मुझे तुमसे दूर रहना पड़ेगा।’
मेरा जी तो न मानेगा।’
‘ऐसी बात करोगी, तो मैं तुम्हें लेकर भाग जाऊँगा।’
‘तुम मेरे पास एक बार रोज आया करो। बस, और मैं कुछ नहीं चाहती।’
‘और अम्माँ जो बिगड़ेंगी।’
‘तो मैं समझ गई। तुम मुझे प्यार नहीं करते।
‘मेरा बस होता, तो तुमको अपने परान में रख लेता।’
इसी समय घर के किवाड़ खटके । रुपिया भाग गई।
मोहन दूसरे दिन सोकर उठा तो उसके हृदय में आनंद का सागर-सा भरा हुआ था। वह सोहन को बराबर डाँटता रहता था। सोहन आलसी था। घर के काम-धंधे में जी न लगाता था । मोहन को देखते ही वह साबुन छिपाकर भाग जाने का अवसर खोजने लगा।
मोहन ने मुस्कराकर कहा-धोती बहुत मैली हो गई है सोहन ? धोबी को क्यों नहीं देते?
सोहन को इन शब्दों में स्नेह की गंध आई।
‘धोबिन पैसे माँगती है।’
‘तो पैसे अम्माँ से क्यों नहीं माँग लेते ?’
‘अम्माँ कौन पैसे दिये देती है ?’
‘तो मुझसे ले लो!’
यह कहकर उसने एक इकन्नी उसकी ओर फेंक दी। सोहन प्रसन्न हो गया। भाई और माता दोनों ही उसे धिक्कारते रहते थे। बहुत दिनों बाद आज उसे स्नेह की मधुरता का स्वाद मिला। इकन्नी उठा ली और धोती को वहीं छोड़कर गाय को खोलकर ले चल।
मोहन ने कहा-रहने दो, मैं इसे लिये जाता हूँ।
सोहन ने पगहिया मोहन को देकर फिर पूछा-तुम्हारे लिए चिलम रख लाऊँ ?
जीवन में आज पहली बार सोहन ने भाई के प्रति ऐसा सद्भाव प्रकट किया था। इसमें क्या रहस्य है, यह मोहन की समझ में नहीं आया। बोला-आग हो तो रख आओ।
मैना सिर के बाल खेले आँगन में बैठी घरौंदा बना रही थी। मोहन को देखते ही उसने घरौंदा बिगाड़ दिया और अंचल से बाल छिपाकर रसोईधर में बरतन उठाने चली।
मोहन ने पूछा-क्या खेल रही थी मैना ?
मैना डरी हुई बोली-कुछ नहीं तो।
‘तू तो बहुत अच्छे घरौंदे बनाती है। जरा बना, देखूँ।’
मैना का रुआंसा चेहरा खिल उठा। प्रेम के शब्द में कितना जादू है! मुँह से निकलते ही जैसे सुगंध फैल गई। जिसने सुना, उसका हृदय खिल उठा। जहाँ भय था, वहाँ विश्वास चमक उठा। जहाँ कटुता थी, वहाँ अपनापा छलक पड़ा। चारों ओर चेतनता दौड़ गई। कहीं आलस्य नहीं, कहीं खिन्नता नहीं। मोहन का हृदय आज प्रेम से भरा हुआ है। उसमें सुगंध का विकर्षण हो रहा है।
मैना घरौंदा बनाने बैठ गई ।
मोहन ने उसके उलझे हुए बालों को सुलझाते हुए कहा-तेरी गुड़िया का ब्याह कब होगा मैना, नेवता दे, कुछ मिठाई खाने को मिले।
मैना का मन आकाश में उड़ने लगा। जब भैया पानी माँगे, तो वह लोटे को राख से खूब चमाचम करके पानी ले जाएगी।
‘अम्माँ पैसे नहीं देतीं। गुड्डा तो ठीक हो गया है। टीका कैसे भेजूँ?’
‘कितने पैसे लेगी ?’
‘एक पैसे के बतासे लूँगी और एक पैसे का रंग। जोड़े तो रँगे जाएँगे कि नहीं?’
‘तो दो पैसे में तेरा काम चल जाएगा?’
‘हाँ, दो पैसे दे दो भैया, तो मेरी गुड़िया का ब्याह धूमधाम से हो जाए।’
मोहन ने दो पैसे हाथ में लेकर मैना को दिखाए। मैना लपकी, मोहन ने हाथ ऊपर उठाया, मैना ने हाथ पकड़कर नीचे खींचना शुरू किया। मोहन ने उसे गोद में उठा लिया। मैना ने पैसे ले लिये और नीचे उतरकर नाचने लगी। फिर अपनी सहेलियों को विवाह का नेवता देने के लिए भागी।
उसी वक्त बूटी गोबर का झाँवा लिये आ पहुंची। मोहन को खड़े देखकर कठोर स्वर में बोली- अभी तक मटरगस्ती ही हो रही है। भैंस कब दुही जाएगी?
आज बूटी को मोहन ने विद्रोह-भरा जवाब न दिया। जैसे उसके मन में माधुर्य का कोई सोता- सा खुल गया हो। माता को गोबर का बोझ लिये देखकर उसने झाँवा उसके सिर से उतार लिया।
बूटी ने कहा-रहने दे, रहने दे, जाकर भैंस दुह, मैं तो गोबर लिये जाती हूँ।
‘तुम इतना भारी बोझ क्यों उठा लेती हो, मुझे क्यों नहीं बुजला लेतीं?’
माता का हृदय वात्सल्य से गदगद हो उठा।
‘तू जा अपना काम देखं मेरे पीछे क्यों पड़ता है!’
‘गोबर निकालने का काम मेरा है।’
‘और दूध कौन दुहेगा ?’
‘वह भी मैं करूँगा !’
‘तू इतना बड़ा जोधा है कि सारे काम कर लेगा !’
‘जितना कहता हूँ, उतना कर लूँगा।’
‘तो मैं क्या करूँगी ?’
‘तुम लड़कों से काम लो, जो तुम्हारा धर्म है।’
‘मेरी सुनता है कोई?’
आज मोहन बाजार से दूध पहुँचाकर लौटा, तो पान, कत्था, सुपारी, एक छोटा-सा पानदान और थोड़ी-सी मिठाई लाया। बूटी बिगड़कर बोली-आज पैसे कहीं फालतू मिल गए थे क्या ? इस तरह उड़ावेगा तो कै दिन निबाह होगा?
‘मैंने तो एक पैसा भी नहीं उड़ाया अम्माँ। पहले मैं समझता था, तुम पान खातीं ही नहीं।
‘तो अब मैं पान खाऊँगी !’
‘हाँ, और क्या! जिसके दो-दो जवान बेटे हों, क्या वह इतना शौक भी न करे ?’बूटी के सूखे कठोर हृदय में कहीं से कुछ हरियाली निकल आई, एक नन्ही-सी कोंपल थी; उसके
अंदर कितना रस था। उसने मैना और सोहन को एक-एक मिठाई दे दी और एक मोहन को देने लगी।
‘मिठाई तो लड़कों के लिए लाया था अम्माँ।’
‘और तू तो बूढ़ा हो गया, क्यों ?’
‘इन लड़कों क सामने तो बूढ़ा ही हूँ।’
‘लेकिन मेरे सामने तो लड़का ही है।’
मोहन ने मिठाई ले ली । मैना ने मिठाई पाते ही गप से मुँह में डाल ली थी। वह केवल मिठाई का स्वाद जीभ पर छोड़कर कब की गायब हो चुकी थी। मोहन को ललचाई आँखों से देखने लगी। मोहन ने आधा लड्डू तोड़कर मैना को दे दिया। एक मिठाई दोने में बची थी। बूटी ने उसे मोहन की तरफ बढ़ाकर कहा-लाया भी तो इतनी-सी मिठाई। यह ले ले।
मोहन ने आधी मिठाई मुँह में डालकर कहा-वह तुम्हारा हिस्सा है अम्मा।
‘तुम्हें खाते देखकर मुझे जो आनंद मिलता है। उसमें मिठास से ज्यादा स्वाद है।’
उसने आधी मिठाई सोहन और आधी मोहन को दे दी; फिर पानदान खोलकर देखने लगी। आज जीवन में पहली बार उसे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। धन्य भाग कि पति के राज में जिस विभूति के लिए तरसती रही, वह लड़के के राज में मिली। पानदान में कई कुल्हियाँ हैं। और देखो, दो छोटी- छोटी चिमचियाँ भी हैं; ऊपर कड़ा लगा हुआ है, जहाँ चाहो, लटकाकर ले जाओ। ऊपर की तश्तरी में पान रखे जाएँगे।
ज्यों ही मोहन बाहर चला गया, उसने पानदान को माँज-धोकर उसमें चूना, कत्था भरा, सुपारी काटी, पान को भिगोकर तश्तरी में रखा । तब एक बीड़ा लगाकर खाया। उस बीड़े के रस ने जैसे उसके वैधव्य की कटुता को स्निग्ध कर दिया। मन की प्रसन्नता व्यवहार में उदारता बन जाती है। अब वह घर में नहीं बैठ सकती। उसका मन इतना गहरा नहीं कि इतनी बड़ी विभूति उसमें जाकर गुम हो जाए। एक पुराना आईना पड़ा हुआ था। उसने उसमें मुँह देखा। ओठों पर लाली है। मुँह लाल करने के लिए उसने थोड़े ही पान खाया है।
धनिया ने आकर कहा-काकी, तनिक रस्सी दे दो, मेरी रस्सी टूट गई है।
कल बूटी ने साफ कह दिया होता, मेरी रस्सी गाँव-भर के लिए नहीं है। रस्सी टूट गई है तो बनवा लो। आज उसने धनिया को रस्सी निकालकर प्रसन्न मुख से दे दी और सद्भाव से पूछा-लड़के के दस्त बंद हुए कि नहीं धनिया ?
धनिया ने उदास मन से कहा-नहीं काकी, आज तो दिन-भर दस्त आए। जाने दाँत आ रहे हैं।
‘पानी भर ले तो चल जरा देखूँ, दाँत ही हैं कि कुछ और फसाद है। किसी की नजर-वजर तो नहीं लगी ?’
‘अब क्या जाने काकी, कौन जाने किसी की आँख फूटी हो?’
‘चोंचाल लड़कों को नजर का बड़ा डर रहता है।’
‘जिसने चुमकारकर बुलाया, झट उसकी गोद में चला जाता है। ऐसा हँसता है कि तुमसे क्या कहूँ!’
‘कभी-कभी माँ की नजर भी लग जाया करती है।’
‘ऐ नौज काकी, भला कोई अपने लड़के को नजर लगाएगा!’
‘यही तो तू समझती नहीं। नजर आप ही लग जाती है।’
धनिया पानी लेकर आयी, तो बूटी उसके साथ बच्चे को देखने चली।
‘तू अकेली है। आजकल घर के काम-धंधे में बड़ा अंडस होता होगा।’
‘नहीं काकी, रुपिया आ जाती है, घर का कुछ काम कर देती है, नहीं अकेले तो मेरी मरन हो जाती।’ बूटी को आश्चर्य हुआ। रुपिया को उसने केवल तितली समझ रखा था। ‘रुपिया!’
‘हाँ काकी, बेचारी बड़ी सीधी है। झाडू लगा देती है, चौका-बरतन कर देती है, लड़के को सँभालती है। गाढ़े समय कौन, किसी की बात पूछता है काकी !’
‘उसे तो अपने मिस्सी-काजल से छुट्टी न मिलती होगी।’
‘यह तो अपनी-अपनी रुचि है काकी! मुझे तो इस मिस्सी-काजल वाली ने जितना सहारा दिया, उतना किसी भक्तिन ने न दिया। बेचारी रात-भर जागती रही। मैंने कुछ दे तो नहीं दिया। हाँ, जब तक जीऊँगी, उसका जस गाऊँगी।’
‘तू उसके गुन अभी नहीं जानती धनिया । पान के लिए पैसे कहाँ से आते हैं ? किनारदार साड़ियाँ कहाँ से आती हैं ?’
‘मैं इन बातो में नहीं पड़ती काकी! फिर शौक-सिंगार करने को किसका जी नहीं चाहता ? खाने-पहनने की यही तो उमिर है।’
धनिया ने बच्चे को खटोले पर सुला दिया। बूटी ने बच्चे के सिर पर हाथ रखा, पेट में धीरे- धीरे उँगली गड़ाकर देखा। नाभी पर हींग का लेप करने को कहा। रुपिया बेनिया लाकर उसे झलने लगी।
बूटी ने कहा-ला बेनिया मुझे दे दे।
‘मैं डुला दूँगी तो क्या छोटी हो जाऊँगी ?’
‘तू दिन-भर यहाँ काम-धंधा करती है। थक गई होगी।’
‘तुम इतनी भलीमानस हो, और यहाँ लोग कहते थे, वह बिना गाली के बात नहीं करती। मारे डर के तुम्हारे पास न आयी।’
बूटी मुस्कारायी।
‘लोग झूठ तो नहीं कहते।’
‘मैं आँखों की देखी मानूँ कि कानों की सुनी ?’ कह तो दी होगी। दूसरी लड़की होती, तो मेरी ओर से मुंह फेर लेती। मुझे जलाती, मुझसे ऐंठती। इसे तो जैसे कुछ मालूम ही न हो। हो सकता हे कि मोहन ने इससे कुछ कहा ही न हो। हाँ, यही बात है।
आज रुपिया बूटी को बड़ी सुन्दर लगी। ठीक तो है, अभी शौक-सिंगार न करेगी तो कब करेगी? शौक-सिंगार इसलिए बुरा लगता है कि ऐसे आदमी अपने भोग-विलास में मस्त रहते हैं। किसी के घर में आग लग जाए, उनसे मतलब नहीं। उनका काम तो खाली दूसरों को रिझाना है। जैसे अपने रूप की दूकान सजाए, राह-चलतों को बुलाती हों कि जरा इस दूकान की सैर भी करते जाइए। ऐसे उपकारी प्राणियों का सिंगार बुरा नहीं लगता। नहीं, बल्कि और अच्छा लगता है। इससे मालूम होता है कि इसका रूप जितना सुन्दर है, उतना ही मन भी सुन्दर है; फिर कौन नहीं चाहता कि लोग उनके रूप की बखान करें। किसे दूसरों की आँखों में छुप जाने की लालसा नहीं होती ? बूटी का यौवन कब का विदा हो चुका; फिर भी यह लालसा उसे बनी हुई है। कोई उसे रस-भरी आँखों से देख लेता है, तो उसका मन कितना प्रसन्न हो जाता है। जमीन पर पाँव नहीं पड़ते। फिर रूपा तो अभी जवान है।
उस दिन से रूपा प्राय: दो-एक बार नित्य बूटी के घर आती। बूटी ने मोहन से आग्रह करके उसके लिए अच्छी-सी साड़ी मँगवा दी। अगर रूपा कभी बिना काजल लगाए या बेरंगी साड़ी पहने आ जाती, तो बूटी कहती-बहू-बेटियों को यह जोगिया भेस अच्छा नहीं लगता। यह भेस तो हम जैसी बूढ़ियों के लिए है।
रूपा ने एक दिन कहा-तुम बूढ़ी काहे से हो गई अम्माँ! लोगों को इशारा मिल जाए, तो भौंरों की तरह तुम्हारे द्वार पर धरना देने लगें।
बूटी ने मीठे तिरस्कार से कहा-चल, मैं तेरी माँ की सौत बनकर जाऊँगी ?
‘अम्माँ तो बूढ़ी हो गई।’
‘तो क्या तेरे दादा अभी जवान बैठे हैं?’
‘हाँ ऐसा, बड़ी अच्छी मिट्टी है उनकी।’
बूटी ने उसकी ओर रस-भरी आँखों से ददेखकर पूछा-अच्छा बता, मोहन से तेरा ब्याह कर दूँ ?
रूपा लजा गई। मुख पर गुलाब की आभा दौड़ गई।
आज मोहन दूध बेचकर लौटा तो बूटी ने कहा-कुछ रुपये-पैसे जुटा, मैं रूपा से तेरी बातचीत कर रही हूँ।


शाम से ही बुझा सा रहता है,
दिल है गोया चिराग मुफलिस का।
शब् भर था इंतज़ार कि फूटेगी रौशनी,
जगे तो रौशनी को अंधेरे निगल गए।
दिन तो कट जाता है हंगामों में,
रात आती है तो बस आके ठहर जाती है।
नींद तो खैर इन आँखों के मुक़द्दर में नही,
मौत भी क्या जाने कहाँ जा के मर जाती है।
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इससे बड़ा सबर का सबूत मैं तुझे क्या देता,
तू मुझ से लिपट कर रोती रही वो भी किसी और के लिए।

हमारे देश में लोकतंत्र है और हमें सरकार व जनप्रतिनिधि चुनने का अधिकार। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? क्या हम लोकतंत्र के प्रति अपने अधिकारों व क‌र्त्तव्य को लेकर सजग हैं? यह एक बड़ा सवाल है। लोकतंत्र में किसी भी देश को सरकार व जनप्रतिनिधि वैसे ही मिलते हैं, जैसा उसका समाज होता है। वर्तमान में देश की जो राजनीतिक हालत है, उसके लिए केवल राजनीतिक दल व राजनेता ही दोषी नहीं हैं। कहीं न कहीं हम सभी जिम्मेदार हैं, क्योंकि उन्हें सत्ता में पहुंचाने का काम तो हम ही करते हैं, कभी वोट डालकर कभी उदासीन रह कर। जो वोट नहीं करते उनका मानना है कि सरकार चाहे किसी भी दल की बने उनकी स्थिति में विशेष बदलाव आने वाला नहीं है। चुनाव के प्रति जनता की उदासीनता लोकतंत्र के लिए शुभलक्षण नहीं है।

समय आ गया है, जब देश के हर नागरिक को यह सोचना होगा कि आखिर क्यों उनका नुमाइंदा दागदार है? सीधी सी बात है कि किसी भी नेता के चरित्र को देख कर उसके पीछे चलने वालों के चरित्र का आकलन किया जा सकता है। तो क्या मुट्ठी भर दागदार लोग देश की सौ करोड़ आबादी के चरित्र पर धब्बा लगा रहे हैं? क्या जिस लोकतंत्र के प्रति देश का हर खासो-आम श्रद्धा का भाव रखता है वह ऐसा ही होना चाहिए? जिन्हें हम चुन कर संसद में भेजते हैं क्या वह हमारी अपेक्षा के अनुरूप देश को चला रहे हैं? यदि नहीं तो फिर निश्चित रूप से गलती है हमारे फैसलों में।

लोकसभा चुनाव में अगर आपके क्षेत्र में ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन्हें आप अपने प्रतिनिधित्व के लायक नहीं समझते हैं तो आप उसे अस्वीकार भी कर सकते हैं। निर्वाचन आयोग बकायदा प्रत्येक बूथ पर ऐसी व्यवस्था करता है कि लोग मतदान पत्र पर अंकित उम्मीदवारों को अस्वीकृत कर सकते हैं। आप उम्मीदवार को अस्वीकार कर सकते हैं। जब आप मतदान करने जाते हैं और आप कहते हैं कि इनमें से मुझे किसी को वोट नहीं देना है, ऐसा करने पर मतदान केंद्र पर तैनात अधिकारी वहां रखे एक रजिस्टर पर आपका नाम अंकित कर लेगा। मतगणना के दौरान यह स्पष्ट हो जाएगा कि आपके क्षेत्र में कितने लोगों ने मतदान करने से इंकार कर दिया, यानि उम्मीदवार उन्हें पसंद नहीं थे। निर्वाचन आयोग के नियम 49(ओ) के तहत ऐसी व्यवस्था है। पिछले कई चुनावों से ऐसी व्यवस्था है लेकिन इसका विशेष प्रचार-प्रसार नहीं हो सका है।


चुनाव के समय नेता जनता के बीच में उपलब्‍ध तो रहते हैं, परंतु चुनाव जीतने के बाद वे क्षेत्र से गायब हो जाते हैं, राजनेताओं ने जनता से, जनता द्वारा और जनता के लिए के सिद़धांत को पूरी तरह भूला दिया है, अब वे जनता से दूर होने की परंपरा अपना रहे हैं इसकी जिम्‍मेदार जनता ही है, जो ऐसे लोगों को जिता कर विधानसभा, संसद व अन्‍य स्‍‍थानीय निकायों में भेज रही हैं, जिनके पास सिर्फ बाहुबल व पैसे का जोर है, ऐसे में पैसे के बल पर जीता प्रत्‍याशी कितना जनता से जुडा रहेगा, यह एक यक्ष प्रश्‍न है, इस सवाल का हल जनता को ही खोजना होगा,ऐसे हालात से बचने के लिए जरूरी है कि हम ऐसे व्य‍ि‍क्‍त का चयन करें, जो जनता से जुड़ा हो न कि पैसे की सीढी लगाकर जीत तक पहुंचे.

हमारी राय में वोटरों को नापसंद प्रत्याशियों को ठुकराने का अधिकार बिल्कुल मिलना चाहिए। क्योंकि चाहे जो दल हो गादी प्रत्याशी उतारना उनकी मजबूरी हो गया है। चुनाव लड़ने और जीतने के लिए आज के दौर में जितने हथकंडे अपनाने पड़ते हैं उतने कोई शरीफ और ईमानदार व्यक्ति नहीं कर सकता। एसे में अगर किसी भी सीट के सभी प्रत्याशियों की सूची पर गौर फरमाये तो कोई सांपनाथ नजर आता है तो नागनाथ। इस स्थिति में वोटर के समक्ष इन्हीं में से किसी को चुनना पड़ता है। अगर प्रत्याशी नकारने का अधिकार मिल जाये तो वोटर सभी दलों को सबक तो सिखा सकता है। अगर वोटर एक बार भी अपने इस हक का इस्तेमाल कर ले तो सभी दल अपनी इस आदत में सुधार ले आयेंगे।

यह जनता का फर्ज है कि वह जो भी फैसला करे पूरे माप-तौल के बाद करे। ऐसे लोगों को चुने जो देश का हित करने वाले हों। चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल के हों और सरकार चाहे किसी भी दल की बने।

यह न समझना कि बिछडा हूँ तो भूल गया हूँ।
तेरी दोस्ती की खुशबू मेरे हाथों में आज भी है॥
मोहब्बत से बढ़ कर मुझे अकीदत है दोस्त तुमसे।
यूँ मुकाम तेरा बुलंद सब दोस्तों में आज भी है॥


तू वो है जो बरसों की तलाश का सामान है।
तुम्हे सोचना मेरी यादों में आज भी है॥
यह और बात है कि मजबूरियों ने निभाने न दी दोस्ती।
वरना शामिल सचाई मेरी वफाओं में आज भी है॥


मेरा हर शेर मेरी चाहतों की गवाही देगा।
चाहतों की खुशबू इन लफ्जों में आज भी है॥
हर लम्हा ज़िन्दगी में मोहब्बत नसीब हो तुझे।
शामिल तू मेरे दुआओं में आज भी है॥

एक अध्ययन में पाया गया है कि सिगरेट पीने से मस्तिष्क में उसी तरह के परिवर्तन होते हैं जैसा कि नशीली दवाएँ लेने पर.
अमरीकी शोधकर्ताओं ने कुछ मृत लोगों के दिमागों का तुलनात्मक अध्ययन किया. इसमें तीन तरह के लोगों के दिमाग़ को लिया गया था.
इसमें धूम्रपान करने वाले, न करने वाले और पहले कभी धूम्रपान के आदी रह चुके लोगों के मस्तिष्क शामिल थे.

'जनरल ऑफ़ न्यूरोसाइंस' में छपी इनके अध्ययन में कहा गया है कि धूम्रपान करने से मस्तिष्क में लंबे समय तक बने रहने वाले बदलाव होते हैं.
एक ब्रिटिश विशेषज्ञ ने कहा कि इन परिवर्तनों को देखकर यह भी पता लगाया जा सकता है कि धूम्रपान करने वाले के लिए इसे रोकना कठिन क्यों था और उसने फिर धूम्रपान करना क्यों शुरू किया.

'नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन ड्रग एब्यूज़' के शोधकर्ताओं ने मानव मस्तिष्क के उन ऊतकों के नमूनों को देखा जो नशे की प्रवृत्ति रोकने में प्रभावी भूमिका निभाते हैं.
ऐसे आठ लोगों के नमूने लिए गए थे जिन्होंने मरते दम तक नशा किया. आठ ऐसे लोगों के नमूने लिए गए थे जिन्होंने 25 साल तक नशा किया था और आठ लोगों के नमूने ऐसे थे जिन्होंने कभी भी नशा नहीं किया था.
इनमें से किसी की मौत नशा करने की वजह से नहीं हुई थी.
शोधकर्ताओं का कहना था कि धूम्रपान करने वालों और न करने वालों के मस्तिष्क में भी निकोटिन के प्रभाव से बड़ा बदलाव हो सकता है.

लंदन के किंग्स कॉलेज़ में 'नेशनल एडिक्शन्स सेंटर' के डॉ जॉन स्टैप्लेटन का कहना है,"यदि लंबे समय तक निकोटिन दिन में कई बार शरीर के अंदर जाए तो यह बहुत ही आश्चर्य की बात होगी कि दिमाग में बड़े परिवर्तन न दिखाई पड़ें."
उन्होंने कहा,"लेकिन अभी यह पता करना बाक़ी है कि क्या ये परिवर्तन किसी भी स्तर पर धूम्रपान की आदत पड़ने या एक बार आदत छूटने के बाद भी फ़िर से धूम्रपान के लिए ज़िम्मेदार हैं."
शोधकर्ताओं के अनुसार ये बदलाव धूम्रपान छोड़ने के लंबे समय के बाद भी दिखाई पड़ सकते हैं.

भारत जैसे देश में तो धूम्र पान पूरी तरह निषेध कर देना चाहिए. केवल वैधानिक चेतावनी छाप देने भर से सरकार और समाज अपने नैतिक कर्तव्यों से मुह नहीं मोड़ सकते. देश के युवा वर्ग को नशे से दूर रखने की ज्यादा ज़रुरत है. सरकार और समाज को अब कुछ करना चाहिए क्योकि स्वस्थ जनता ही एक स्वस्थ और शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण कर सकती है.

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With spl.thanks to BBC