खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था,
दहकती आग थी तन्हाई थी फ़साना था।
ग़मों ने बाँट लिया मुझे यूँ आपस में,
कि जैसे मैं कोई लूटा हुआ खजाना था।
ये क्या, चंद क़दमों पर ही थी मंजिल कि बैठ गए,
तुम्हे तो साथ मेरा दूर तक निभाना था।
मुझे जो मेरे लहू में डुबो के गुज़रा है,
वो कोई गैर नही यार, एक पुराना था।
ख़ुद अपने हाथ से उसको काट दिया,
कि जिस दरख्त के टहनी पर मेरा आशियाना था।

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वो कोई और ही था, जिसे तुमसे वफ़ा की उम्मीद थी,
हमें तो बस ये देखना है, कि तुम बेवफा कब तक हो।

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