पा के जिसे पा लिया दुनिया मैंने
पर क्यूं ये सवाल उठा है ?
क्या धडकनों में आज भी मै हूँ
या दिल किसी और के नाम कर दिया।

एक सवाल ने मुझे हैरान कर दिया
एक सवाल ने मुझे ख्वाब से जगा दिया
क्या तनहा ही बेहतर थी ज़िन्दगी मेरी?
जाने किस उलझन में मुझे डाल दिया।

वो शख्स जो मिला था राह में
वो अक्श था आईने में मेरा
पा के अनजान रुसवाई से मुझको
हकीकत से मुझे मिलवा
दिया।

गुज़र रहा था कल राह से मै
एक शख्स ने अचानक रोक दिया
जाने ऐसी क्या बात कही उसने
हैरत में मुझे डाल दिया


कौन था और क्या कह गया
शायद मुझको मुझसे मिलवा दिया
थे हज़ार मतलब उसकी बात के
ज़र्रा भर तो मुझे समझा दिया

है रफ़्तार ज़रूरी ज़िन्दगी में
अगर राह से जो नज़रे हटा दिया
टुकड़े टुकड़े कर देगी
एक ठोकर ने जो तुमको गिरा दिया

छोड़ा था जिसे दुनिया की भीड़ में
उसको भी मुझसे मिलवा दिया
मै तो ख्वाब संजोके बैठा था
हकीकत से मेरा सामना करा दिया

ऑंखें तो प्यार में दिलकी जुबान होती है..
सची चाहत तो सदा बेजुबान होती है..
प्यार मई दर्द भी मिले तो क्या घबराना..
सुना है दर्द से चाहत और जवान होती है..

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मुद्दत हो गई उन तान्हायिओं को गुज़रे,
फ़िर अब भी इन आँखों में वो खामोशी क्यूं है
तोड़ दिया यकीन मोहब्बत से जिसने मेरा
वो शख्श अब भी प्यार के काबिल क्यूं है…

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फ़िर करने लगा हिसाब ज़िन्दगी का
ये भी एक जरिया है तुम्हे याद करने का
यादों की ख़ाक में ढूंढ रहा था एक हँसी
आँख से भी जो टपका तो एक कतरा दर्द का।
एक रात
अनमनी सी
मचलती रही
जुल्फों की छाँव में

कहने को
क्या हुआ,
तन-मन को
जब छुआ !

एक बात
अजनबी से
हवा हो गई
पनघट की ठांव में !
० राकेश 'सोहम'


तुमसे होकर इस कदर रूबरू निकले।


आज तेरे दर से बड़े बे-अबरू निकले।


पानी मे चाँद नज़र आया रात इतना करीब।


जब छूना चाहा, तब बहुत दूर निकले।


जिसने कत्ल कर दिया हमारी हर आरज़ू का।


वही हमारे बयान पर बेक़सूर निकले।


हमने तो लिख दिया अपना हाल-ए-दिल।


उम्मीद है तुमसे, कोई दुआ जरूर निकले।


अस्तित्व के नाकाम होते संघर्ष में
जिंदगी भी कर्वेटेही बदलती रही
फूल काँटों में भी मुस्कुराता रहा
जिंदगी सेज पर भी सिसकती रही
पत्थरों के शहर में दम घुटता ही रहा
जिंदगी भी बेबस तमाशा ही देखती रही
समय की तेज़ आंच में मैं भी पिघलता रहा
और जिंदगी भी हाथों से फिसलती ही रही
मैं फ़िर भी चिरागे तमन्ना जलाता ही रहा
जिंदगी भी चिरागे तमन्ना बुझातीही रही
यूँ कशमकश का दौर तो चलता ही रहा
मैं जिंदगी को तो जिंदगी मुझे आजमाती रही।
तू कर दे एक इशारा मेरा पता बता दे…
कहने को तो जिन्दगी हमे भी मिली है,,
पर तू जीने की एक वजह बता दे…
तेरे दिल में अब भी मेरा आशियाना बसता है,,,
लब्जो से न सही आंखों से ही जता दे….
तू कर दे एक इशारा मेरा पता बता दे,,,

सितारों की महफिल सजी थी हर तरफ़
फिर भी रौशनी को तरस गए थे हम
महताब जो बन गए आप जिंदगी के
अब अंधेरों का हमसे नाता कैसा

खुदा से जो मांगी हमने दुआएं
कबूल किया उन्होंने हमारी मोहब्बत को
ज़माना हमे अब भुला दे भी तो क्या
हमे अब ज़माने से शिकवा कैसा।

सकून मिला मुझे आकर तेरी बाहो मे
मंज़िल मुझे मिली आकर तेरी राहो मे
मै तन्हा था ज़िन्दगी के काफिले मे
मुझे पुकारा है आज तुम्हारी सदाओ ने
देखा मैने जब तुमको, बस देखता ही रह गया
पानी पे जैसे चाँद हो ठहरा!
आंखो का काज़ल रात बन बह गया!
डूब गये हम के उभर नही पाये
तेरी झील सी गहरी निगाहो मे!
पता नही था इस कद्र हम भी कही खो जायेंगे
ज़रा ज़रा कतरा कतरा इस इश्क मे बहते जायेंगे!
क्या खो देंग़े और क्या पायेंगे!
प्यार क्या है जाना हमने
आकर तेरी बाहों में!

मैं आड़ीतिरछी जड़ें भर रह गया हूँ
कहीं कोई फूल खिलता नही
कहीं कोई सुगंध भी उठतीनही
दीमक लगे तने सा भुरभुराने लगा हूँ
तेज़ हवाओं के वेग से पत्ते पत्ते सा झरने लगा हूँ
प्राण रिक्त है आशा कोई जगती नही
कौन सींचे जड़ों को बागबाँ ही आता नही
उन्मुक्त एरावतोंका झुंड मंडरा रहा है पास ही
किससेकरे गुहार आनंद
नाखुदा कोई नज़र आता नही।

आपसे कभी मिल न पाये हम
फिर बिछड़ने का डर कैसा
मेरी हर धड़कन में आप हो शामिल
फिर आपकी जुदाई का ग़म कैसा

दीदार-ऐ-यार की खातिर जी रहे हैं हम
उनकी तलाश हैं अब हर तरफ़
उम्र-ऐ-तमाम किसीके नाम कर दिया हमने
अब मौत के भी आने का डर कैसा

आपकी याद यूँ जिंदगी को महका दे
बहार बनकर फिजा में रंग भर दे
संवारा है मुझे आपने इस कदर
कि मेरे ख़्वाबों में भी अब पतझर कैसा...?
प्राय ऐसा पाया गया है की अधिकतर व्यक्ति भोजन के बाद नींद , खुमारी , आलस्य आदि से ग्रसित हो जाते हैं। इनमे आश्चर्य जनक रूप से युवा वर्ग भी समान रूप से प्रभावित होता पाया है। जबकि युवावस्था में ऐसा नही होना चाहिए , क्योंकि ऐसा माना जाता है की इस उम्र में उनकी पाचन शक्ति और अन्य शारीरिक क्रियाँए -प्रतिक्रियाएँ अच्छी होती हैं। और वेसे भी भोजन के बाद तो स्फूर्ति और शक्ति आनी चाहिए, क्योंकि शक्ति उत्पन्न करने का स्त्रोत भीतर गया। पर होता इसके विपरीत है। ऐसा क्यो होता है और इस से बचने का क्या तरीका ह आएये इस पर एक नज़र डालें।

जगत में प्रसन्न और प्रफुल्लित रहने के लिए स्वास्थय की सर्वोपरि भूमिका है, जिसमे मन की भी भूमिका अधिक है। जेसा भोजन होगा वेसी ही मन की अवस्था होती। और जिसका मन प्रफुल्लित है वह कम ही बीमार पड़ता है। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी बनी रहती है। शरीर में जो भी कंपन है वो मन के कंपन से पैदा होते हैं। मन का कंपन जितना कमओ होगा, शरीरउतना ही थिर और स्वस्थ होगा। जो शरीर में घटित होगा उसका परिणामे मन में प्रतिध्वनित होता है। और जो मन में घटित होता है उसका परिणाम शरीर परdआता है अगर शरीर बीमार है तो मन भी ज्यादा स्वस्थ और प्रसन्न नही रहo सकता। और अगर मन बीमारa है तो शरीर भी रुग्ण और निस्तेज दिखाई देता है। किंतु यह शाश्वत सत्य है की जो व्यक्ति मन को स्वस्थ्य रखने का उपाय समझo लेते हैं, वे शरीर के तल पर बेहतर स्वस्थ पाते हैं । क्योंकि कहा गया है की "जेसा खावे अन्न , वेसा होवे मन। " इसलिए व्यक्ति को अपने आहार में विवेकपूर्णग होना जरुरी है। ज्यादातर व्यक्ति भोजन करतेही नींद खुमारी औरo आलस्य से घिर जाते हैं। यह एकविचारणीय प्रशन है कीl ऐसा क्यो होता है ? भोजन तो शक्ति प्रदाता हा । लेकिन यहाँ ऐसा लगता है मानो भोजन उनके शरीर की शक्ति खिंच लेता है। ऐसा हैi नही , भोजन शक्ति खींचता नही बल्कि वह शक्ति देता हैha। इसलिए अगर भोजन के बाद आलस्य छाता है तो इसके लिए व्यक्ति ख़ुद ही उत्तरदायी है। अगर सम्यक भोजन होगा तो आलस्य कभी नही आएगा, बल्कि एक ताजगी , तृप्ति और स्फूर्ति महसूस होगी। अगर जरुरत से ज्यादा भोजन किया है तो सारे शरीर की शक्ति उसे पचाने में लग जाती है। और शरीर में आलस्य छा जाता है। भोजन का बाद आलस्य छाने का मतलब इतना ही है की शरीर की सारी शक्ति उसे पचाने में लग जाती है। आलस्य इस बात की सूचना है की भोजन जरुरत से ज्यदा हो गया है। वरना भोजन के बाद आलस्य नही स्फूर्ति आनी चाहिए । इसके लिए व्यक्ति ख़ुद ही विवेकशील और संकल्पशील होना होगा-की भोजन इतना ज्यदा नही किया जाना चाहिए जिससे आलस्य आता हो, पेट और शरीर भारी से लगें । हृदय विरूद्व आहार से यथा संम्भव बचना चाहिए । अर्थात जो आहार मन के अनुकूल न हो उसका सेवन करना हृदय विरूद्व होता है। आहार के पचने में मन का संम्बंध बहुत रहता है। शरीर और पाचन शक्ति ठीक हो फ़िर भी आहार मन के अनुकूल न हो तो उसका पाचन ठीक से नही होता।
भूख लगना तो स्वाभाविक है। और फ़िर जब भूख लगने पर ही भोजन किया है तो स्फूर्ति आनी चाहिए-क्योंकि शक्ति पैदा करने का स्तरोत्र भीतर गया. पर अधिकतर लोग भोजन के बाद आलस्यपूर्ण और अशक्त हो जाते हैं। जो इस बात का संकेत है की भोजन जरुरत से ज्यादा कर लिया गया हा। और अब सारी शक्ति उसे पचाने में लग जायेगी । शरीर अपनी सारी ऊर्जा खींचकर पेट में ले जाएगा और इसलिए सब तरफ़ से शक्ति क्षीण होने से आलस्य और अशक्तता चा जाती है। जिससे व्यक्ति की दिनचर्या प्रभावित होती है। अधिक मात्र में भोजन करने से अग्नाशय की क्रियाशीलता मंद पड़ जाती है। यह ठीक ऐसे है जेसे किसी ट्रक में उसकी क्षमता से ज्यादा माल लाद दिया गया हो. अग्नाशय तीन तरह से भोजन के तत्वों -प्रोटीन कार्बोह्य्द्रते और वसा पर प्रभाव डालता है। जो इंसुलिन में स्थित कोशिकाओं द्वारा कार्बोह्य्द्रत उपापचय होता है। तथा ग्लुकगोन हारमोन को रुधिर शर्करा की मातृ के अनुसार निर्वाहिका तंद्रा में पहुचाते हैं अब चूँकि अधिक मात्रा में शर्करा युक्त पदार्थ की कारन व्यक्ति के रक्त में शर्करा की मात्रा सामान्य स्तर तक पहुचने में समय लगता है जिसके परिणाम स्वरुप आलस्य और शक्तिहीनता महसूस करता है। अतः अधिक खाने की लालसा पर नियंत्रण रखना ही उचित है। भूख से एक रोटी खाना अत्यन्त फायदेमंद है। वास्तविकता तो यह है की हम खाते हैं शक्ति उससे नही मिलती बल्कि जितना पचा पाते हैं उससे मिलती है। याद रहे जो शरीर पर घतिद होता है। वह मन पर भी प्रतिबिंबित होता है। इसलिए शांत और प्रसन्न मन से भोजन करना चाहिए। चिंता करते हुए भोजन करना ऐसा है मानो शरीर को व्याधियों की और धकेलना। इससे बदहजमी असिदिटी आदि तकलीफे घेर लेती हैं। अगर मन प्रसन्न रहेगा तो शरीर ऊर्जावान रहेगा और भोजन स्फूर्तिदायक और शक्तिप्रदायक होगा। नींद खुमारी और आलस्य आदि से व्यक्ति ग्रसित नही होगा। और रोग प्रतिरोधक क्षमता बरकरार रहेगी। इसके साथ ही महत्वपूर्ण यह भी है की अपने सतगुरु प्रभु का नाम हर हाल में जपते रहें क्योंकि वास्तविक ऊर्जा का स्त्रोत्र तो भगवद भजन और नाम जप में ही है.

कहीं ऐसा न हो कि दामन जला लो,
हमारे आँसुओं पे ख़ाक डालो.
मनाना ही ज़रूरी है तो फिर तुम,
हमें सबसे खफा होकर मना लो।

बहुत मायूस बैठा हूँ मैं तुमसे,
कभी आकर मुझे हैरत मैं डालो.
बहुत रोई हुई लगती हैं आँखें,
मेरी खातिर ज़रा काजल लगालो.