तू कर दे एक इशारा मेरा पता बता दे…
कहने को तो जिन्दगी हमे भी मिली है,,
पर तू जीने की एक वजह बता दे…
तेरे दिल में अब भी मेरा आशियाना बसता है,,,
लब्जो से न सही आंखों से ही जता दे….
तू कर दे एक इशारा मेरा पता बता दे,,,

सितारों की महफिल सजी थी हर तरफ़
फिर भी रौशनी को तरस गए थे हम
महताब जो बन गए आप जिंदगी के
अब अंधेरों का हमसे नाता कैसा

खुदा से जो मांगी हमने दुआएं
कबूल किया उन्होंने हमारी मोहब्बत को
ज़माना हमे अब भुला दे भी तो क्या
हमे अब ज़माने से शिकवा कैसा।

4 Comments:

MANVINDER BHIMBER said...

खुदा से जो मांगी हमने दुआएं
कबूल किया उन्होंने हमारी मोहब्बत को
ज़माना हमे अब भुला दे भी तो क्या
हमे अब ज़माने से शिकवा कैसा।
khoobsurat

अनिल कान्त said...

वाह क्या खूब कहा
हमे अब ज़माने से शिकवा कैसा...

Mithilesh dubey said...

खुदा से जो मांगी हमने दुआएं
कबूल किया उन्होंने हमारी मोहब्बत को
ज़माना हमे अब भुला दे भी तो क्या
हमे अब ज़माने से शिकवा कैसा।

वाह

दिगम्बर नासवा said...

खुदा से जो मांगी हमने दुआएं
कबूल किया उन्होंने हमारी मोहब्बत को
ज़माना हमे अब भुला दे भी तो क्या
हमे अब ज़माने से शिकवा कैसा।

SACH MEIN AGAR KHUDA YA MAHBOOB, JO BHI HAI, HAMAARI DUAAYEN MAN LE TO KISI SE BHI KYA SHIKAAYAT.......