कहीं ऐसा न हो कि दामन जला लो,
हमारे आँसुओं पे ख़ाक डालो.
मनाना ही ज़रूरी है तो फिर तुम,
हमें सबसे खफा होकर मना लो।
हमारे आँसुओं पे ख़ाक डालो.
मनाना ही ज़रूरी है तो फिर तुम,
हमें सबसे खफा होकर मना लो।
बहुत मायूस बैठा हूँ मैं तुमसे,
कभी आकर मुझे हैरत मैं डालो.
बहुत रोई हुई लगती हैं आँखें,
मेरी खातिर ज़रा काजल लगालो.
12 Comments:
बहुत रोई हुई लगती हैं आँखें,
मेरी खातिर ज़रा काजल लगालो।
मार्मिक रचना,सुन्दर।
बढिया भाव, मगर चार लाइने और लिख लेते तो पूरी नज्म बन जाती !
khubsoorat ehasaaso ke khubsoorat bhaw...........atisundar
बहुत रोई हुई लगती हैं आँखें,
मेरी खातिर ज़रा काजल लगालो.
Vaah ravi ji....... khoobsoorat bol mikssle hain......seedha dil mein utar gaye
बहुत बढिया व सुन्दर रचना है।बधाई।
बहुत रोई हुई लगती हैं आँखें,
मेरी खातिर ज़रा काजल लगालो।
अंतिम पंक्ति सुन्दर..अति सुन्दर..
khoobsurat ahsaas aur ati khoobsoorat ending..wahh
जगजीत सिंह के स्वर में और भी बेहतर है यह गजल। फिर से कुछ हिस्सा पढ़वाने के लिए आभार। वैसे किसके लिए लगाई है यहाँ?
बहुत सुंदर परन्तु मार्मिक रचना
क्या खूब लिखा है
रवि जी,
कैसे लिखते हैं आप इतना सुन्दर काजल लगालो [कहीं नज़र न लगे]
awesome ................... simply superb
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