कहीं ऐसा न हो कि दामन जला लो,
हमारे आँसुओं पे ख़ाक डालो.
मनाना ही ज़रूरी है तो फिर तुम,
हमें सबसे खफा होकर मना लो।

बहुत मायूस बैठा हूँ मैं तुमसे,
कभी आकर मुझे हैरत मैं डालो.
बहुत रोई हुई लगती हैं आँखें,
मेरी खातिर ज़रा काजल लगालो.

12 Comments:

Mithilesh dubey said...

बहुत रोई हुई लगती हैं आँखें,
मेरी खातिर ज़रा काजल लगालो।

मार्मिक रचना,सुन्दर।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बढिया भाव, मगर चार लाइने और लिख लेते तो पूरी नज्म बन जाती !

ओम आर्य said...

khubsoorat ehasaaso ke khubsoorat bhaw...........atisundar

दिगम्बर नासवा said...

बहुत रोई हुई लगती हैं आँखें,
मेरी खातिर ज़रा काजल लगालो.
Vaah ravi ji....... khoobsoorat bol mikssle hain......seedha dil mein utar gaye

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया व सुन्दर रचना है।बधाई।

सौरभ के.स्वतंत्र said...

बहुत रोई हुई लगती हैं आँखें,
मेरी खातिर ज़रा काजल लगालो।

अंतिम पंक्ति सुन्दर..अति सुन्दर..

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

khoobsurat ahsaas aur ati khoobsoorat ending..wahh

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

जगजीत सिंह के स्वर में और भी बेहतर है यह गजल। फिर से कुछ हिस्सा पढ़वाने के लिए आभार। वैसे किसके लिए लगाई है यहाँ?

अर्चना तिवारी said...

बहुत सुंदर परन्तु मार्मिक रचना

अनिल कान्त said...

क्या खूब लिखा है

राकेश 'सोहम' said...

रवि जी,
कैसे लिखते हैं आप इतना सुन्दर काजल लगालो [कहीं नज़र न लगे]

Unknown said...

awesome ................... simply superb