मैं आड़ीतिरछी जड़ें भर रह गया हूँ
कहीं कोई फूल खिलता नही
कहीं कोई सुगंध भी उठतीनही
दीमक लगे तने सा भुरभुराने लगा हूँ
तेज़ हवाओं के वेग से पत्ते पत्ते सा झरने लगा हूँ
प्राण रिक्त है आशा कोई जगती नही
कौन सींचे जड़ों को बागबाँ ही आता नही
उन्मुक्त एरावतोंका झुंड मंडरा रहा है पास ही
किससेकरे गुहार आनंद
नाखुदा कोई नज़र आता नही।
अगर आप मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान, तो जानें कैसे
मिलेगा आराम
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मौजूदा भागमभाग वाली जिंदगी में पता नहीं कब शरीर के किसी भाग का दर्द हमारी
दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है, इसका हमें पता भी नहीं चलता। सुबह उठने के बाद
अक्सर...
5 years ago
2 Comments:
कहीं कोई सुगंध भी उठतीनही
दीमक लगे तने सा भुरभुराने लगा हूँ
Vaah.........kya khoob kaha hai in shabdon mein... lajawaab
bahut hi khub........badhaaee
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