प्राय ऐसा पाया गया है की अधिकतर व्यक्ति भोजन के बाद नींद , खुमारी , आलस्य आदि से ग्रसित हो जाते हैं। इनमे आश्चर्य जनक रूप से युवा वर्ग भी समान रूप से प्रभावित होता पाया है। जबकि युवावस्था में ऐसा नही होना चाहिए , क्योंकि ऐसा माना जाता है की इस उम्र में उनकी पाचन शक्ति और अन्य शारीरिक क्रियाँए -प्रतिक्रियाएँ अच्छी होती हैं। और वेसे भी भोजन के बाद तो स्फूर्ति और शक्ति आनी चाहिए, क्योंकि शक्ति उत्पन्न करने का स्त्रोत भीतर गया। पर होता इसके विपरीत है। ऐसा क्यो होता है और इस से बचने का क्या तरीका ह आएये इस पर एक नज़र डालें।

जगत में प्रसन्न और प्रफुल्लित रहने के लिए स्वास्थय की सर्वोपरि भूमिका है, जिसमे मन की भी भूमिका अधिक है। जेसा भोजन होगा वेसी ही मन की अवस्था होती। और जिसका मन प्रफुल्लित है वह कम ही बीमार पड़ता है। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी बनी रहती है। शरीर में जो भी कंपन है वो मन के कंपन से पैदा होते हैं। मन का कंपन जितना कमओ होगा, शरीरउतना ही थिर और स्वस्थ होगा। जो शरीर में घटित होगा उसका परिणामे मन में प्रतिध्वनित होता है। और जो मन में घटित होता है उसका परिणाम शरीर परdआता है अगर शरीर बीमार है तो मन भी ज्यादा स्वस्थ और प्रसन्न नही रहo सकता। और अगर मन बीमारa है तो शरीर भी रुग्ण और निस्तेज दिखाई देता है। किंतु यह शाश्वत सत्य है की जो व्यक्ति मन को स्वस्थ्य रखने का उपाय समझo लेते हैं, वे शरीर के तल पर बेहतर स्वस्थ पाते हैं । क्योंकि कहा गया है की "जेसा खावे अन्न , वेसा होवे मन। " इसलिए व्यक्ति को अपने आहार में विवेकपूर्णग होना जरुरी है। ज्यादातर व्यक्ति भोजन करतेही नींद खुमारी औरo आलस्य से घिर जाते हैं। यह एकविचारणीय प्रशन है कीl ऐसा क्यो होता है ? भोजन तो शक्ति प्रदाता हा । लेकिन यहाँ ऐसा लगता है मानो भोजन उनके शरीर की शक्ति खिंच लेता है। ऐसा हैi नही , भोजन शक्ति खींचता नही बल्कि वह शक्ति देता हैha। इसलिए अगर भोजन के बाद आलस्य छाता है तो इसके लिए व्यक्ति ख़ुद ही उत्तरदायी है। अगर सम्यक भोजन होगा तो आलस्य कभी नही आएगा, बल्कि एक ताजगी , तृप्ति और स्फूर्ति महसूस होगी। अगर जरुरत से ज्यादा भोजन किया है तो सारे शरीर की शक्ति उसे पचाने में लग जाती है। और शरीर में आलस्य छा जाता है। भोजन का बाद आलस्य छाने का मतलब इतना ही है की शरीर की सारी शक्ति उसे पचाने में लग जाती है। आलस्य इस बात की सूचना है की भोजन जरुरत से ज्यदा हो गया है। वरना भोजन के बाद आलस्य नही स्फूर्ति आनी चाहिए । इसके लिए व्यक्ति ख़ुद ही विवेकशील और संकल्पशील होना होगा-की भोजन इतना ज्यदा नही किया जाना चाहिए जिससे आलस्य आता हो, पेट और शरीर भारी से लगें । हृदय विरूद्व आहार से यथा संम्भव बचना चाहिए । अर्थात जो आहार मन के अनुकूल न हो उसका सेवन करना हृदय विरूद्व होता है। आहार के पचने में मन का संम्बंध बहुत रहता है। शरीर और पाचन शक्ति ठीक हो फ़िर भी आहार मन के अनुकूल न हो तो उसका पाचन ठीक से नही होता।
भूख लगना तो स्वाभाविक है। और फ़िर जब भूख लगने पर ही भोजन किया है तो स्फूर्ति आनी चाहिए-क्योंकि शक्ति पैदा करने का स्तरोत्र भीतर गया. पर अधिकतर लोग भोजन के बाद आलस्यपूर्ण और अशक्त हो जाते हैं। जो इस बात का संकेत है की भोजन जरुरत से ज्यादा कर लिया गया हा। और अब सारी शक्ति उसे पचाने में लग जायेगी । शरीर अपनी सारी ऊर्जा खींचकर पेट में ले जाएगा और इसलिए सब तरफ़ से शक्ति क्षीण होने से आलस्य और अशक्तता चा जाती है। जिससे व्यक्ति की दिनचर्या प्रभावित होती है। अधिक मात्र में भोजन करने से अग्नाशय की क्रियाशीलता मंद पड़ जाती है। यह ठीक ऐसे है जेसे किसी ट्रक में उसकी क्षमता से ज्यादा माल लाद दिया गया हो. अग्नाशय तीन तरह से भोजन के तत्वों -प्रोटीन कार्बोह्य्द्रते और वसा पर प्रभाव डालता है। जो इंसुलिन में स्थित कोशिकाओं द्वारा कार्बोह्य्द्रत उपापचय होता है। तथा ग्लुकगोन हारमोन को रुधिर शर्करा की मातृ के अनुसार निर्वाहिका तंद्रा में पहुचाते हैं अब चूँकि अधिक मात्रा में शर्करा युक्त पदार्थ की कारन व्यक्ति के रक्त में शर्करा की मात्रा सामान्य स्तर तक पहुचने में समय लगता है जिसके परिणाम स्वरुप आलस्य और शक्तिहीनता महसूस करता है। अतः अधिक खाने की लालसा पर नियंत्रण रखना ही उचित है। भूख से एक रोटी खाना अत्यन्त फायदेमंद है। वास्तविकता तो यह है की हम खाते हैं शक्ति उससे नही मिलती बल्कि जितना पचा पाते हैं उससे मिलती है। याद रहे जो शरीर पर घतिद होता है। वह मन पर भी प्रतिबिंबित होता है। इसलिए शांत और प्रसन्न मन से भोजन करना चाहिए। चिंता करते हुए भोजन करना ऐसा है मानो शरीर को व्याधियों की और धकेलना। इससे बदहजमी असिदिटी आदि तकलीफे घेर लेती हैं। अगर मन प्रसन्न रहेगा तो शरीर ऊर्जावान रहेगा और भोजन स्फूर्तिदायक और शक्तिप्रदायक होगा। नींद खुमारी और आलस्य आदि से व्यक्ति ग्रसित नही होगा। और रोग प्रतिरोधक क्षमता बरकरार रहेगी। इसके साथ ही महत्वपूर्ण यह भी है की अपने सतगुरु प्रभु का नाम हर हाल में जपते रहें क्योंकि वास्तविक ऊर्जा का स्त्रोत्र तो भगवद भजन और नाम जप में ही है.

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