खुदा ने सपने में कहा...
अपने ग़मों की यूं नुमाइश न कर,
अपने नसीब की यूं आज़माइश न कर.
जो तेरा है तेरे दर पर खुद आएगा,
रोज़-रोज़ उसे पाने की ख्वाहिश न कर.

नाराज़गी खामोशियों से हो जाए बात से पहले,
अंधेरे के तलबगार हो क्यूँ रात से पहले
दिल के हाल को तुम उस सुकून-ऐ-दिल से भी छुपाये रखना,
खुल के रो लेना मगर मुलाकात से पहले ।
मैं किस शहर-ऐ-सितम में अब रुसवा नही हूँ ,
न-आशना किस कदर थे हम हालात से पहले।

जुदाई, तड़प, आंसू, शिकवे सभी जलवे मोहब्बत के,
अंजाम तुम रखना जेहन में शुरुवात से पहले।
और फ़िर इस अदा पे भी तो मर मिटे मुझ जैसे,
वो जुर्म कबूल कर गए मेरी तहकीकात से पहले।
कुबूलियत में रुकावट ये कतरे ही न साबित हो,
निकले लब से कोई दुआ तो इस बरसात से पहले।
और यह कि वो झूठ बोलने का हूनर जानते ही नही है,
उन आँखों को पढ़ अपने सवालात से पहले॥

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सच्ची है मेरी दोस्ती आजमा के देख लो,
करके यकीं मुझपे मेरे पास आके देख लो।
बदलता नही कभी सोना अपना रंग,
जितनी बार दिल चाहे आग लगा कर देख लो॥
सांझ ढले
मेरे मन के सूने आंगन में,
तेरी यादें कभी
अंगारों सी दहकती हैं,
तो कभी शीतल फुहारों सी
बरसती हैं,
कभी फूलों सी
खिलखिलाती हैं
तो कभी काँटों सी
गड़ती हैं
अज़ीज़ बहुत हैं मुझे यादें तेरी,
कभी तनहा नही छोड़ती हैं,
गम, आंसू, आहें, तड़प, उदासी
ढेरों खिलोनों से बहलाती हैं
मरने नही देती
फ़िर फ़िर
मेरे जीने का सामाँ कर जाती हैं।

रूठने की अदा हम को भी आती है मगर
काश कोई होता हमें भी मनाने वाला
किसी के प्यार में गहरी चोट खाई है
वफ़ा से पहले ही बे-वाफी पी है
लोग तो दुआ मांगते हैं मरने की
पर हमने उस की यादों में जीने की कसम खाई है
दुश्मनों में भी दोस्त मिला करते हैं
कांटो में भी फूल खिला करते हैं
हम को कांटा समझ के छोड़ न देना
कांटे ही फूलों की हिफाज़त किया करते हैं

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नाराज़गी खामोशियों से हो जाए बात से पहले पहले
अंधेरे के तलबगार हो क्यूँ रात से पहले पहले
दिल के हाल को तुम उस सुकून-ऐ-दिल से भी छुपाये रखना
खुल के रो लेना मगर मुलाकात से पहले पहले
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति को भावनात्मक सुरक्षा, संबल स्नेह और खूबसूरती की नैसर्गिक भूख होती है। यह निर्विवाद सत्य है की इन सब के बिना व्यक्ति खुशी खुशी सुखपूर्वक जीवन नही व्यतीत कर सकता। और यह भी सत्य है की ये सब एक साथ एक अच्छे और सुव्यवस्थित घर में ही मिलते हैं। ऐसा घर माँ ही बनाती है। माँ की उपस्थिति ही घर को जीवंत और प्रकाशवान बनाती है। बिना माँ के घर ऐसा है मानो बिना मूर्ति के कोई मन्दिर। यह माँ ही है जो घर को अच्छा और प्यारा बनाती है।
माँ से ही घर की गुणवत्ता , गरिमा और मूल्य बनते और प्रसारित होते हैं। माँ से ही घर मैं एक भावनात्मक और स्नेहात्मक वातावरण निर्मित होता है जहाँ ममत्व की अखंड धारा सतत प्रवाहित रहती है। जिसकी वजह से लोग कहीं भी हों आख़िर घर आकर ही चैन और आराम पाते हैं। यह महसूस किया जा सकता है, इसे शब्दों में व्याख्यायित नही किया जा सकता है।
घर को घर बनाने में माँ का योगदान सर्वोत्तम , अपूर्व और अनूठा है। माँ ही पृथ्वी पर घर रुपी स्वर्ग निर्मित करती है। वह श्रेष्ठ, नीतिवान और उच्चतम मूल्यों की वाहक होती है। अपने विशिष्ठ गुणों के कारण ही माँ का घर में सर्वोच्च स्थान है। माँ का प्यार ही प्यार का शुद्धतम रूप है। उसके हृदय मे प्रेम की अजस्त्र धारा सदा प्रवाहित होती रहती है।
क्या कभी हमने सोचा है भोर से लेकर रात्री तक बिना किसी लालसा के वह कैसे काम कर पाती है.उसे अपने काम को पूरा करने की चिंता रहती है। अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए वह अक्सर छोटी मोटी बिमारियों की परवाह नही करती। ठंडा सर्द मौसम हो या तन झुलसाती गर्मी॥ वह अपने काम से अवकाश नही लेती। मुहं अंधेरे उठकर झाडू पोंछा साफ़ सफाई तो करती है साथ ही समय पर भोजन बनाती है ताकि परिवार का कोई भी सदस्य बिना खाना खाए अपने काम पर जाए। इस स्वप्रेरित दायित्व बोध के चलते वह घर को कुशलता पूर्वक संचालित करती है। माँ के त्याग और समर्पण की बराबरी कोई नही कर सकता। उसका जीवन सदैव दूसरों के लिए होता है। यदि घर में परिवार का कोई सदस्य बीमार पड़ जाए तो माँ से अच्छी परिचारिका कोई नही होती। वह धैर्य पूर्वक सेवा सुश्रुषा में लगी रहती है। वह स्वयं भूखी रह जाती है किंतु अपने बच्चों को कभी भूखा नही सोने देती । एक यहूदी उक्ति है "खुदा ने पूरा संसार रचा , वह ख़ुद पूरी दुनिया की देखभाल नही कर सकता था , इसलिए उसने माँ की रचना की। '
सामान्यत लोग दूसरों की छोटी छोटी असफलताओं और कमियों पर भड़क उठते हैं। और अपना धैर्य खो बैठते हैं। किंतु माँ अपने बच्चों की कमियों को धैर्य पूर्वक सहती है। और सुधारने का प्रयास करती है। वह कभी नाराज नही होती कठिन दिनों में भी वह सहनशील बनी रहती है।
माँ निश्छल प्यार की जिवंत मूर्ती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की वह घर में अपने योगदान का कभी भूलकर भी गर्व नही करती। आख़िर माँ की निश्छल और निस्वार्थ क्या कहेंगे ?

अपनी आँखों के बगीचे में बसा लो मुझको
बिखर न जाऊँ कहीं आकर संभालो मुझको
ये मेरा प्यार है रोशन चिराग की तरह
तुम अपने चाँद से माथे पे सजा लो इसको
मैं तेरे इश्क में अब ख़ाक न हो जाऊँ कहीं
मुझे संभालो अपने हाथों में उठा लो मुझको
तुम अब मेरे सब्र का इम्तिहान मत लेना
तड़प रहा हूँ, तुम अब अपना बनालो मुझको
मेरी टूटती सांसों की कसम है तुझको
आखिरी दम पे हूँ,सीने से लगा लो मुझको
मेहरबानी से ज़रा एक नेक काम कर लो
अपने जिगर में मेरा कोई मकाम कर लो
मेरे अनमोल दिल को तुम अपना गुलाम कर लो
वरना बाज़ार में इस को नीलाम कर लो
अपनी रेशमी चुनरी को मेरे नाम कर लो
नहीं तो मेरे कफ़न का ही इन्तेजाम कर लो
सोहबत की एक शब् भर का निजाम कर लो
अधूरी कुछ रघ्बतों को तमाम कर लो
प्रीत के पाक नाम का एहतराम कर लो
इज़हार-ऐ-मुहबत अब तो खुले आम कर लो
सताने के इल्जाम में बाद-नाम कर लो
और सज़ा दे के मेरा जीना हराम कर लो
ढली शाम ?अमानुष?, अब सलाम कर लो
जा के नींद के आगोश में आराम कर लो

जो हमें है पसंद,
वो करते हैं पसंद किसी और को।
उन पर ही हमारी नज़र,
वो देखते हैं किसी और को ।
दिल लगाया ही था उनसे,
और टूट भी गया ।
हमें पता न चला,
क्यूं खुदा रूठ गया ।
अब सोच सोच कर ये बात,
दिल जलता रहता है ।
फिर भी उन्हीं को चाहने की खता,

न जाने क्यूँ ये दिल,

बार-बार करता रहता है

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दर्द काफी है बेखुदी के लिए,
मौत ज़रूरी है जिंदगी के लिए,
कौन मरता है यहाँ किसी के लिए,
किसी का कोई नही दोस्त सब कहानी है।

दीया जो कभी मन्दिर में प्रदीप्त हो

तो प्रकाश मस्जिद तक पहुंचे

शमा जो मस्जिद में हो रोशन

तो रौशनी कलीसे (मन्दिर) तक पहुंचे

आरती तो मंदिर में हो

तो टेर मस्जिद तक पहुंचे

अजान जो मस्जिद में हो

तो सदा मन्दिर तक पहुंचे

भजन जो मन्दिर में हो

तो मस्ती मस्जिद तक पहुंचे

कव्वाली जो मस्जिद में हो

तो गूंज मन्दिर तक पहुंचे

अर्केगुल जो मन्दिर में बरसे

तो मस्जिद में भक्त भी भीगे

केवडा इतर तो मस्जिद में फैलें

तो खुशबु मन्दिर में भी पहुंचे

आएतें कुरान की मस्जिद में हों

तो श्लोके गीता जो मन्दिर में हो

तो गूँज मस्जिद तक पहुंचे

ईद तो मने मस्जिदों में

इदी बटे मंदिरों में भी

दिवाली जो मने मंदिरों में

तो नूर फैले मस्जिदों में भी

ऐसे भी इबादत हो कभी

सिजदे में सिर तो मस्जिद में झुके हों

उधर दुआओं में हाथ मन्दिर में उठे हों.


एक सवाल है ज़हन में,हर वक्त रहता है,
कैसे कहू उसे मुझे जो दोस्त कहता है।
तू है मेरे लिए एक दोस्त से भी ज़्यादा,
हर दम दोस्ती निभाने का है मेरा इरादा।
कुछ बात है मेरे दिल में पर लफ्जों की कमी है,
आंखों में पढ़ के देख ले एक शरारत सी बनी है।
कोई डर सा बना है दिल में नही साथ यह जुबां,
खो न दूँ यह दोस्ती कर के हाल-ऐ-बयान॥

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मौत की आरजू भी कर देखूं ,
क्या उमीदें थी ज़िन्दगी से मुझे।
फिर किसी पर न ऐतबार आए,
यूँ उतारो न अपने जी से मुझे॥
मैं अक्सर सोचता हूँ -देह त्यागने के बाद

कैसी होगी मेरी अन्नंत की यात्रा.........

ब्रहमांड के किस ओर किस छोर पर

आत्मारूपी पंछी अपना बसेरा बसायेगा

क्या मुडकर पीछे भी देखेगा

अपने बचे हुए निशाँ को ....?

अपने अब तक के सहयोगी तन को ?

और आसपास रोते हुए स्वजन को ?

या फ़िर निर्विकार घुल जाएगा

मिश्री की सी डली सा महासागर में

और महासागर ही हो जाएगा !

या बनकर हवा सब में समा जाएगा

और कण कण को महका जाएगा

या फ़िर फैलाकर अपने पंख

विराट विशाल निस्सम आकाश में

अकेला ही अपनी यात्रा का आनंद लेगा ?

कौन बतायेगा मुझे, यह कौन मुझे बताएगा ?

ka

अमेरिका के एक शस्त्र नियंत्रण संस्थान ने उपग्रह से प्राप्त कुछ तस्वीरें जारी की हैं जिनसे पता है कि पाकिस्तान ने अपने परमाणु शस्त्र उत्पादन गतिविधियों में असामान्य ढंग से वृद्धि की है तथा वह भारत के साथ परमाणु शस्त्रों की होड़ कर रहा है। विज्ञान एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थान (आईएसआईएस) द्वारा जारी इन तस्वीरों में खुलासा हुआ है कि डेरा गाजी खान में एक रासायनिक संयंत्र का बड़े पैमाने पर विस्तार किया जा रहा है, जहां यूरेनियम हेक्सल, फ्लूराइड तथा यूरेनियम धातु तैयार की जाती है। इनका इस्तेमाल परमाणु हथियारों में किया जाता है। आईएसआईएस के विशेषज्ञों के अनुसार रावलपिंडी के निकट एक संयंत्र की तस्वीरों से पता चलता है कि पाकिस्तान ने एक नए प्लूटोनियम संयंत्र का निर्माण किया है। पाकिस्तान ने हाल के वर्षों में दो प्लूटोनियम संयंत्रों का निर्माण किया है।

ये सभी विस्तार गतिविधियां संकेत करती हैं कि पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों की विध्वंसकारी क्षमता और मारक क्षमता बढ़ाने की एक रणनीतिक योजना पर तेजी से प्रगति कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार इस विस्तार योजना के बाद पाकिस्तान छोटे और हल्के प्लूटोनियम के संलमन आधारित हथियार और परमाणु तापीय हथियार बनाने में सक्षम हो जाएगा, जिनमें प्लूटोनियम को परमाणु ट्रिगर के रुप में इस्तेमाल किया जाता है तथा कृत्रिम रुप से संवर्द्धित एवं प्राकृतिक रुप से संवर्द्धित यूरेनियम द्वितीयक स्रोत के रुप में प्रयुक्त होता है।

रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने कहा है कि पाकिस्तान के पास 60 से लेकर 100 परमाणु हथियार पहले से ही हैं, जिन्हें विमान या बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र से छोड़ा जा सकता है। यह जखीरा उसकी जरुरतों के कहीं ज्यादा है। विशेषज्ञों ने पाकिस्तान की मंशा पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा है कि डेरा गाजी खान संयंत्र में परमाणु शस्त्र उत्पादन गतिविधियां एकदम गैर-जरुरी है। पर्याप्त से अधिक परमाणु हथियार होने के बावजूद और हथियार बनाने की गतिविधियां भारत के साथ खतरनाक एवं निरर्थक होड़ के अलावा ओर कुछ नहीं है।

रिपोर्ट में पाकिस्तान के वर्तमान हालात और तालिबान एवं अल-कायदा के बढ़ती गतिविधियों का हवाला देते हुए परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर आशंकाएं व्यक्त की गई हैं तथा अमेरिका से आग्रह किया गया है कि वह पाकिस्तान को तुरंत रोके और प्लूटोनियम एवं उच्च संवर्द्धित यूरेनियम के उत्पादन पर प्रतिबंध को लेकर नई संधि की बातचीत की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए राजी करे। परमाणु हथियार कार्यक्रम पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों ने अमेरिका को चेताया है कि पाकिस्तान दुनिया में सबसे अधिक तेजी से अपने हथियार विकसित कर रहा है।

लेकिन इसके बावजूद अमेरिका पाक को आर्थिक सहायता के रूप में करोड़ों डॉलर बांट रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति की इस मामले पर चुप्पी पर कई अमेरिकी जानकारों ने सवाल उठाए हैं। आखिर यह अमेरिका की कौन सी नीति है. एक तरफ वह कुछ देशों पर परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालने से भी पीछे नहीं रहता और दूसरी तरफ पाकिस्तान जैसे आतंकवाद ग्रसित देशों को इसकी मौन स्वीकृति देता है. - यह दोहरी नीति अमेरिका के हित में है या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह पूरे विश्व और भारत जैसे शान्ति पसंद देशों को अनावश्यक युद्ध की विभीषिका में झोक सकता है.

पूरे विश्व को दृढ इच्छा शक्ति के साथ परमाणु हथियारों का निरोध व प्रतिरोध करना चाहिए. इस धरती को परमाणु शस्त्रो से मुक्त कर देने में ही सबकी भलाई है. खैर...न जाने लोग यह बात कब समझेंगे ?

With thanks to josh18


कहने को उससे मेरा कोई वास्ता नही,
ऐ दिल मगर वो शख्स मुझे भूलता नही ।
डरता हूँ आँख खोलूँ तो मंज़र बदल ना जाये,
मैं जाग तो रहा हूँ मगर जागता नही।


अशफ्तगी से उसकी उसे बेवफा ना जान,
आदत की बात और है दिल का बुरा नही ।
तनहा उदास चाँद को समझो ना बेखबर,
हर बात सुन रहा है मगर बोलता नही ।


खामोश रतजगों का धुंआ था बाहर से,
निकला कब आफताब मुझे तो पता नही।
वो आंखें झील सी गहरी तो हैं मगर,
उनमें कोई भी अक्स मेरे नाम का नही

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बनोगे दोस्त मेरे तुम भी दुश्मनों एक दिन,
मेरे हयात की आह-ओ-फुगाँ सुनो तो सही।
लबों को सी के जो बैठे है बज्म-ऐ-दुनिया में,
कभी तो उनकी खामोशियाँ सुनो तो सही ॥


इश्क करने वाले आँखों से आँखों की बात समझ लेते हैं,
सपनो मे मिल जाए तो मुलाकात समझ लेते हैं ,
रोता तो ये आसमान भी है अपनी धरती के लिए,
पर लोग उसे बरसात समझ लेते हैं।

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समझा न कोई दिल की बात को,
दर्द दुनिया ने बिना सोचे ही दे दिया ,
सह गए जो गम हम चुपके से,
तुमने हमें ही पत्थर-दिल कह दिया।

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कोई ऐसा पल नही
जब तुम याद न आए
जो अगर इरादा किया तुम्हे भुलाने का
तुम और भी याद आए
जब कोई रिश्ता ही नही होना था हमारे बीच
तो फिर क्यूँ तुम मेरी ज़िन्दगी में आए।


ऐ हज़रत दिल की ख्वाहिश जलवा न किया कर,
या अपना भी कभी चक लबादा न किया कर।
अघ्यर से रख मील-जूल तो बेशक न हमें मिल,
पर हमसे मुलाक़ात का वादा न किया कर।


बन्दों को तेरे शौक है देखें तेरा जलवा,
तू इनका खुदा है तो ये परदा न किया कर।
हो सकता है हो जाए तेरे हुस्न पे आशिक,
तू सामने आईने के चेहरा न किया कर।

सुनता है तेरी कौन यहाँ कौन तेरा है,
टूटे हुए दिल लोगों से शिकवा न किया कर।

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जिंदगी की राह में अजीब खेल बन गए,
दो कदम चल कर साथी बिछड़ गए।
देखा तो गुलाब जाने क्यों काँटो को भूल गए,
अपनी ही धुन में हम कुछ देर ग़मों को भूल गए।

शब्द कभी नही मरते,

कानों में देर तक गूँजते रहते हैं,

रुलाते कभी तो कभी हंसाते हैं,

प्रशंसा के दो शब्द गुदगुदाते हैं,

और जीवन में ऊर्जा भर देते हैं,

किंतु आलोचना के शब्द पत्थर सी चोट करते हैं,

और जीवन को निस्तेज कर देते हैं,

कहीं शब्द काँटों से गढ़ जाते हैं,

और दिल में घाव गहरा कर जाते हैं,

कहीं शब्द फूल से भी कोमल जो,

दर्द भी समेट लिया करते हैं,

विलीन हुए शब्दों की गहरी रेखा सी

मन में देर तक खिंची रहती है,

और बरसों पहले किसी की दी गाली,

रह रह कर उतेजित करती है,

वहीं अपने प्रिय के मधुर शब्दों की वाणी

कानों मैं मीठा सा रस घोल देती है,

और जीवन को तरंगित कर देती है.

गर्म 'दिन' के क्रूर बाज़ ने
झपट्टा मार कर
आख़िर दबोच ही लिया
उषा की मासूम लाली को
दिशाएं सभी जलने लगी
चारों तरफ़ हाहाकार मच उठा
हवाएं गर्म जो बहने लगीं
ज़मीं का सीना भी धधकने लगा
आग उगलते 'दिन' के विकराल पंजों से
कोई बच न सका
सुलगता सा सन्नाटा पसरा
बेबस बहुत जीवन लाचार हुआ
चिडिओं का चहकना और
गायों का रम्भाना भी बंद हुआ
गली में फेरीवालों का पुकारना और
बच्चों का कोलाहल भी बंद हुआ
सूने हुए गली मोहल्ले
या रब्ब ये कैसा 'दिन' का कहर हुआ
जीवन ज़मीं पर एकदम थम सा गया
यह देख 'संध्या' ने अपना कोमल आँचल फैलाया
सूरज को निष्ठुर 'दिन' का कहर बताया
सुनकर कारस्तानी अपने 'दिन' की
सूरज शर्म से बहुत लाल हुआ
लेकर अपने 'दिन' को साथ अपने
चुपचाप पर्वतों की ओट में जा छुपा
जीवन धरा पर आनंद से लौट आया

दुनिया से अलग हमने मयखाने का डर देखा
मयखाने का डर देखा, अल्लाह का घर देखा।
दोनों के मज़े लुटे, दोनों का असर देखा।
अल्लाह का घर देखा, मयखाने का डर देखा।
काबे में नज़र आए जो सुबह अजान देते,
मयखाने में रातो को उनका भी गुज़र देखा।
कुछ काम नही मय से गो इश्क है इस सय से,
है रिंद 'रियाज़' ऐसे दामन भी न तर देखा।
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मरना तो इस जहाँ में कोई हादसा नही,
इस दूर-ऐ-नफरत में जीना कमाल है।

लो फ़िर तुम्हारी याद आई

रात भर तारे करते रहे अठखेलियाँ

टिमटिमाते कभी जगमगाते कभी

हँसते कभी मुस्कुराते कभी

हवा संग झूमते करते अठखेलियाँ

रेशम सी झरती चांदनी को

रात गुमसुम खड़ी देखती रही तन्हा (अकेली)

नीले कांच का घेरा गगन में था पिन्हाँ (छुपा)

आगोश में था चाँद उसके जलवानुमां

सौन्दर्य अजब लुटा रहा था आसमान
देख ये महक उठी सारी फजां phool

जो मचल उठे नागहाँ (अचानक)

दिशाएं मगन हो नाचने लगी यकसां (एक साथ)

विरह की रात में

तुम्हारी याद का ये हँसी मंज़र जानां
जो तुम होती तो क्या आनंद होता जानां

घायल हुआ चाँद रात

चाँदनी पीली ज़र्द हुई

ये कैसी हवा चली

बगिया साड़ी उजड़ गई

पलभर में कैसा भंवर उठा

ख्वाबों की दुनिया बिखर गई

गाने को थी गीत प्यार का

वीणा की तारें टूट गई

देखती रही राह सजन की

आए ना वो हाय !

ये कैसी अभागी रात हुई

मस्त नज़रों से ही पीकर

मैं होश अपने खो बैठा

साकी जो जाम दे देता

तो आनंद जाने क्या होता।

नैनों से तेरे साकी छलके है हाला

मुस्कराहट में शोखी अंदाज निराला

बाबा रे ! कैसी है तेरी ये मधुशाला

ना सुराही, ना जाम, ना कोई प्याला

पीने वाला फ़िर भी हो जाता है मतवाला

आंखों में आंसू
दिल में आहें
कांपती है रूह
सर्द है निगाहें
किसको जा के दर्द सुनाएँ
रुष्ट हुई सब अभिव्यन्ज्नाएं
रिश्तों के उपवन
सूखते जाएँ
फूल प्यार के
खिलने न पायें
कैसे जीवन को महकाएं
धूमिल हुईं सब अभिलाषाएं
मन की व्यथाएं
बढती ही जाएँ
पत्थर दिल लोग
पिघल न पायें
किसको अपना मीत बनायें
शुन्य हुईं सब संवेदनाएं

अगर अहसास हो तुम को
कि तुम अच्छा नही करते
हमें जो यूँ रुलाते हो
जो दिल मेरा जलाते हो
अगर इस आग में जल कर
हम एक दिन राख हो जाएँ
हमें दिल से भुला देना
समंदर में बहा देना
मगर…
इतना याद रखना
कि जिससे दिल लगाओ तुम
वो तुम जैसा न हो हरगिज़
वरना तुम भी रोओगे
हमें जैसे रुलाते हो
अगर अहसास हो तुम को.

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उनसे कहना कि मैं बहुत खुश हूँ ,
बस उनकी यादें सताती हैं।
उनकी दूरी का गम नही मुझे,
बस ज़रा पलकें भीग जाती हैं।
रात पिघलती रही
शमा जलती रही
हिचकियाँ आती रही
जिन्दगी सिसकती रही

प्यालियाँ खनकती रही
प्यास बढती रही
लब थरथराते रहे
जिन्दगी मचलती रही

अश्क ढलते रहे
जान जाती रही
मौत हंसती रही
जिन्दगी तडपती रही


बरसों के बाद देखा शख्स दिलरुबा सा,
अब जेहन में नही है पर नाम था भला सा।
एब्रो खिचे खिचे से ऑंखें झुकी झुकी सी,
बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा।
पहले भी लोग आए कितने ही ज़िन्दगी में,
वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुदा सा।

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अब तो एक ही तमन्ना है हमारी,
की असमां से हमारा पैगाम आ जाए।
जीना चाहता भी कौन है यहाँ,
मरके ही शायद इन तारों में अपना भी नाम आ जाए।



हिज्र की आग में सुलगो तो बुरा लगता है,
तुम मेरे दीदार को तरसो तो बुरा लगता है।
तमन्ना है फकत मुझपे मेहरबान रहो,
तुम किसी और को देखो तो बुरा लगता है।


मेरी रूह तरसती है तेरे ख़्वाबों को,
तुम कहीं और महको तो बुरा लगता है।
आरजू है के तुमसे दिलसे दोस्ती का हाथ मिलाऊं,
तुम मेरी दोस्ती को नकारो तो बुरा लगता है।
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खुशबू तेरे प्यार की महका जाती है,
तेरी हर बात मुझे बहका जाती है।
साँस तो बहुत देर लेती है आने-जाने में,
साँस से पहले तेरी याद आ जाती है॥



ख़ुद मुखौटों के घर में रहते हैं,
रोज जो आईने बदलते हैं।
धूप जिनका लिबास हैं यारों,
वे कहा धूप में निकलते हैं।


शक्लो-सूरत से यूँ दरिंदगी भी,
हुबहू आदमी से लगते हैं।
जो अंधेरे में रो रहे घुपचुप,
उनके दम से चिराग जलते हैं।


जब कोई रास्ता नही मिलता,
तब कई रास्ते दिखाते निकलते हैं।

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रोने दे तू आज हमको तू आँखे सुजाने दे ,
बाहों में लेले और ख़ुद को भीग जाने दे ।
है जो सीने में कैद दरिया वो छुट जाएगा ,
है इतना दर्द कि तेरा दामन भीग जाएगा।


आज एक साईट पर यह समाचार देखा कि ब्रिटेन में हिन्दुओं को अपने धर्म के मान्यता के अनुशार मृतक का दाह-संस्कार खुले में करने की आजादी नहीं है। जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं. ब्रिटेन में पुरातन हिंदू रीति रिवाजों के मुतबिक दाह संस्कार खुले में किए जाने की अनुमति माँगने वाले दविंदर घई लंदन हाई कोर्ट में मामला हार गए हैं.


न्यूकास्ल में रहने वाले 70 वर्षीय दविंदर को सिटी काउंसिल ने इस बात की इजाज़त नहीं दी थी कि उनका अंतिम संस्कार पारंपरिक हिंदू रिवाजों के मुताबिक खुले में किया जाए। दविंदर कहते हैं कि ये उनकी अंतिम इच्छा है. दविंदर ने बाद में ऊपरी अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था. उन्होंने सुनवाई के दौरान कहा था कि उनके धर्म में चिता जलाना आवश्यक है ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके. दविंदर का कहना था कि वे 'इज़्ज़त' के साथ मरना चाहते हैं और नहीं चाहते कि उन्हें 'बक्से में बंद' कर दिया जाए.


एपी के मुताबिक जज ने कहा कि वहाँ चिता जलाना क़ानून के तहत मना है. जज का कहना था कि क़ानून मंत्री जैक स्ट्रा का तर्क है कि चिता जलाने से कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है और मानव शरीर को इस तरह जलाने को वो ठीक नहीं समझते. जज का कहना था कि ये संवेदनशील मामला है लेकिन अदालत को चुने हुए प्रतिनिधियों की बातों का सम्मान करना होगा. न्यूकास्ल सिटी काउंसिल का तर्क ये था कि शमशान घाट या क्रिमीटोरियम के बाहर मानव अवशेषों का जलाना 1902 के क्रेमिटोरियम एक्ट के तहत मना है.

अगर घई ये मुकदमा जीत गए होते तो ब्रिटेन में रहने वाले करीब पाँच लाख से ज़्यादा हिंदुओं के लिए ये ऐतिहासिक फ़ैसला होता। और अगर न्यायोचित बात करें तो होना भी यही चाहिए था। यदि भारत में अन्य धर्मों के मानने वालों को उनके रश्मो-रिवाजों के अनुशार अंतिम-संस्कार करने की स्वतन्त्रता है, तो भारतीय मूल के लोगों को भी किसी भी अन्य देश में अपने रश्मो-रिवाजों के अनुशार दाह-संस्कार करने की स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए.


यहाँ बात सिर्फ हिन्दुओं की नहीं है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म को मानने वाला क्यों न हो, उसके रश्मो-रिवाजों के अनुशार अंतिम-संस्कार करने की स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए. क्योकि यह तो प्रत्येक मरने वाले की अंतिम इच्छा होती है. और इस अंतिम इच्छा का सम्मान तो हर एक देश के कानून को करना चाहिए. ताकि धार्मिक सामंजस्य एवं सद्भाव बना रहे. विश्व शांति धर्मों का सम्मान एवं उनका अनुशरण करने में है, न कि उनकी आलोचना एवं विरोध करने में हैं.


साभार-बी.बी.सी.

ज़िन्दगी क्या बिताएगा अपनी शराब पर,
औरों को भी जीना क्या सिखायेगा शराब पर
रंगीन हैं ये दुनिया मालूम ही तुझे क्या,
सारी रिश्तेदारी क्या ठुकराएगा शराब पर।
वक्त हैं अब भी छोड़ क्यों नही देता पीना,
उठे सर को भी क्या झुकायेगा शराब पर।
नाम और शोहरत तेरी भी कम नही हैं,
पी -पीकर जग को क्या हँसाएगा शराब पर।
चाहत भरी रंज में रिश्तों की डोर से,
अपनी जान को क्या दे जाएगा शराब पर।
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हर मोड़ पर मुकाम नही होता,
दिल के रिश्तो का कोई नाम नही होता।
दिल की रौशनी से खोजा है आपको,
आप जैसा दोस्त मिलना आसान नही होता।
मुश्किलौ का सामना करना बड़ा मुश्किल लगता है


पैरों में हों छाले तो चलना बड़ा मुश्किल लगता है


भंवर में हो नैया तो किनारा दूर लगता है


उलझा हो कांटो में अगर दामन तो


सम्भलना मुश्किल लगता है


patjhad का हो मौसम तो फूलौ का खिलना मुश्किल लगता है


havaayein हों tej तो दिया jalaae रखना मुश्किल लगता है


दौरे gardisha में हो aadmi तो हमदर्द milna मुश्किल लगता है

देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
निकल गए जिस तरह से आगे, पीछे आ रहा विश्व सारा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
कृषि में कर्म की, राजनीति में मर्म की।
गुंडागर्दी हो या फ़िल्मी, चाहे बात हो शर्म की।
मुह में राम बगल में छूरी, बात हुई यह दूर की।
अन्दर छूरी बाहर छूरी, छूरी है रामपुर की।
नक़ल दूसरों की करने में माहिर देश हमारा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
ये टोपी ये काला चश्मा, ये अधिकारी देश के भस्मा।
जेब में पैसे बैग में पैसे, तब हो उल्लू सीधा अपना।
अफसरशाही तानाशाही, जनता पर रौब दिखाते अपना।
किस मायने में दुनिया को हमने नहीं पछाडा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
लोकतंत्र के महान सेवक, नेता हैं इस तंत्र की जान।
धोती कुरता उजला इनका, गांधी टोपी सर पर शान।
पान कचरते ऐसे मानो, खून पी रहा हो शैतान।
हरी पत्तियाँ खाते-खाते, ये गधे हो गए सयान।
अरे भाइयों अब तो जागो, यह चर रहा खेत हमारा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
ये मच्छर हो गए सयाने, ना खाते हैं एक-दो दाने।
खून चूस-चूसकर ये सब, ले लेंगे जनता की जानें।
रिश्वत घोटाले चरम बिंदु पर, धन पशु चट कर जाते हैं।
स्थिति गिर गयी इतनी कि, पशु चारे भी बच नहीं पाते हैं।
सबसे कड़ी पुलिस देश कि, चौकती रह जाती है।
न्यायपालिका लंगडी कुतिया, बस भौकती रह जाती है।
ऐसे में तो बस केवल, गरीब आदमी ही मारा जता है।
हे भगवान्, इस देश को अब तो बस तेरा ही सहारा है।

(Written in personal dairy on 2.08.1997)

मैंने तो ऐसा मंजर कभी देखा न था,
दिन ढल जाता है और साया कोई लंबा न था।

फ़िर तो उसके सामने जैसे कोई रास्ता न था,
जीतने वाला कभी यूँ हौसला हारा न था।
लोग तो कहते थे लेकिन मैं भी तो अँधा न था,
मैंने ख़ुद देखा है मेरे धाध पर भी चेहरा न था।
रोकना चाहता था मैं, वो भी रुक जाता मगर,
एक झोंका था हवा का वो ठहर सकता न था।
कितने ही कच्चे घडे लहरों को याद आने लगे,
साहिलों के होंठों पर ऐसा कभी नोहा न था।
गोद में माँ की बच्चे रात भर रोते रहे,
पास मुजरों के क्या कोई किस्सा न था।

अपनी आगोश में इक रोज़ छुपा लो मुझको,
ग़म-ऐ-दुनिया से मेरी जान बचा लो मुझको।
तुम को दे दी है इशारों में इजाज़त मैंने,
मांगने से न मिलूँ तो चुरा लो मुझको।
अपने साये से भी अब तो मुझे डर लगता है,
हो जो मुमकिन तो निगाहों में छुपा लो मुझको।
दिल में नाकाम तमन्नाओं का तूफ़ान सा है,
मेरी उलझन मेरी वहशत से निकालो मुझको
तुम को लिख्नने किसी रोज़ यह ख़त में जाना,
हम तो ख़ुद की भी नही अपना बना लो मुझको।

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मेरी मजबूरी है, उनकी कोई मजबूरी तो नही,
वो मुझे चाहे या मिल जाए ये ज़रूरी तो नही।
यह कुछ कम है कि वो बसे है मेरी सांसों में,
वो सामने हो मेरी आंखों के ज़रूरी तो नही।
जान कुर्बान मेरी उसकी हर मुस्कराहट पर,
चाहत का तकाज़ा है येही अकाल-ऐ-खुरूरी तो नही।
अब तो निकल के आंखों से यादों में जा बसे है वो,
यही है कुर्बत-ऐ-चाहत कोई दूरी तो नही।
क्यूँ सुलगाती है अपने आप को, दिल भी तेरा,
जान भी तेरी है कोई चिंगारी तो नही।
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मुस्कुराना ही खुशी नही होती,
उमर बिताना ही जिंदगी नही होती।
ख़ुद से भी ज़्यादा ख्याल रखना पड़ता है दोस्तों का,
क्योकि दोस्त कहना ही दोस्ती नही
होती।

झरोखे से ही सही हमें आपके घाव दिख गए,
लिखने आए थे जहाँ इश्क वही दर्द लिख गए।
अफ़सोस कि आपको भी मोहब्बत नही मिली अब तलक,
हमारी खोज में भी अब बरसों बीत गए।
हमदर्दी की नही हमें हमराज़ की तलाश हैं,
हमराही का साथ लिखना शायद खुदा भूल गए।
मेरे दश्त से कोई वास्ता न था जहाँ आप भटके,
मैं समंदर से पुकारता रहा पर आप बंजर की ओर चले गए।
किसको मालूम हैं यहाँ मोहब्बत की सीरत और सूरत,
इस बस्ती से वो मोहब्बत के परिंदे उड़ गए।
नजदीकियों में इजाफा करने आपसे हम आगे चले,
हमें ठुकरा कर आप गैर के पहलू में चले गए।

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I am with you each moment of our life…
Don’t ever be sad, don’t ever you sigh…
My smell you can feel in atmosphere…
Close your eyes, you will find me near..

इस दिल में भी हसरतें बाकी है।
तेरी वफ़ा का अभी करना हिसाब बाकी है।
जो सवाल हमारी दिल की तड़प ने है पूछे,
उनकी वफ़ा में लिखना हिसाब बाकी है।
सियाही सुख भी जाए कल तेरे लौटने तक,
तू घबराना नही मेरे रगों में लहू बाकी है।
इस ज़िन्दगी की ख़त्म नही किताब यहीं,
पन्ने दिलचस्प अभी पलटने बाकी है।


जिंदगी कभी मुश्किल तो कभी आसन होती है,
आँखों में नमी होंठो पे मुस्कान होती है,
न भूलना अपनी मुस्कराहट को,
इसी से हर मुश्किल आसान होती है।

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अपने होटो पर मेरे गीत सजाकर देखो,

मेरे नगमे है तुम्हारे लिए गाकर देखो,

तुमको हर बात मेरे दिल की सुनाई देगी,

मेरे तस्वीर को सीने से लगाकर देखो।
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अश्क आंखों से निकलना बेवज़ह होता नहीं,
आह निकली है तो दिल में दर्द भी होगा कहीं।
गर मेरी खामोशियों को तुम समझ पाते नहीं,
तो मेरे अल्फाज़ का भी कुछ असर होगा नहीं।