अपनी आगोश में इक रोज़ छुपा लो मुझको,
ग़म-ऐ-दुनिया से मेरी जान बचा लो मुझको।
तुम को दे दी है इशारों में इजाज़त मैंने,
मांगने से न मिलूँ तो चुरा लो मुझको।
अपने साये से भी अब तो मुझे डर लगता है,
हो जो मुमकिन तो निगाहों में छुपा लो मुझको।
दिल में नाकाम तमन्नाओं का तूफ़ान सा है,
मेरी उलझन मेरी वहशत से निकालो मुझको
तुम को लिख्नने किसी रोज़ यह ख़त में जाना,
हम तो ख़ुद की भी नही अपना बना लो मुझको।

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3 Comments:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

नमस्कार रवि जी,
प्रेम भरे भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...
आप का ब्लाग भी बहुत अच्छा लगा।
आप मेरे ब्लाग पर आएं,आप को यकीनन अच्छा लगेगा।
सबसे अच्छी बात कि हम दोनों एक ही शहर के हैं...कमिश्नरी मे कभी आना हो तो जरूर मिलें या फ़ोन करें.No-9453883375.....

दिगम्बर नासवा said...

खूबसूरत है रवि जी..........गहरी बात लिखी है................चुरा लो मुझको..........क्या कहने

Archana Gangwar said...

aapka blog bahut achcha laga.....
bahut se rachnaaye peri ...
bahut gaherai aur shalinta hai...