देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
निकल गए जिस तरह से आगे, पीछे आ रहा विश्व सारा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
कृषि में कर्म की, राजनीति में मर्म की।
गुंडागर्दी हो या फ़िल्मी, चाहे बात हो शर्म की।
मुह में राम बगल में छूरी, बात हुई यह दूर की।
अन्दर छूरी बाहर छूरी, छूरी है रामपुर की।
नक़ल दूसरों की करने में माहिर देश हमारा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
ये टोपी ये काला चश्मा, ये अधिकारी देश के भस्मा।
जेब में पैसे बैग में पैसे, तब हो उल्लू सीधा अपना।
अफसरशाही तानाशाही, जनता पर रौब दिखाते अपना।
किस मायने में दुनिया को हमने नहीं पछाडा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
लोकतंत्र के महान सेवक, नेता हैं इस तंत्र की जान।
धोती कुरता उजला इनका, गांधी टोपी सर पर शान।
पान कचरते ऐसे मानो, खून पी रहा हो शैतान।
हरी पत्तियाँ खाते-खाते, ये गधे हो गए सयान।
अरे भाइयों अब तो जागो, यह चर रहा खेत हमारा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
ये मच्छर हो गए सयाने, ना खाते हैं एक-दो दाने।
खून चूस-चूसकर ये सब, ले लेंगे जनता की जानें।
रिश्वत घोटाले चरम बिंदु पर, धन पशु चट कर जाते हैं।
स्थिति गिर गयी इतनी कि, पशु चारे भी बच नहीं पाते हैं।
सबसे कड़ी पुलिस देश कि, चौकती रह जाती है।
न्यायपालिका लंगडी कुतिया, बस भौकती रह जाती है।
ऐसे में तो बस केवल, गरीब आदमी ही मारा जता है।
हे भगवान्, इस देश को अब तो बस तेरा ही सहारा है।
(Written in personal dairy on 2.08.1997)
निकल गए जिस तरह से आगे, पीछे आ रहा विश्व सारा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
कृषि में कर्म की, राजनीति में मर्म की।
गुंडागर्दी हो या फ़िल्मी, चाहे बात हो शर्म की।
मुह में राम बगल में छूरी, बात हुई यह दूर की।
अन्दर छूरी बाहर छूरी, छूरी है रामपुर की।
नक़ल दूसरों की करने में माहिर देश हमारा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
ये टोपी ये काला चश्मा, ये अधिकारी देश के भस्मा।
जेब में पैसे बैग में पैसे, तब हो उल्लू सीधा अपना।
अफसरशाही तानाशाही, जनता पर रौब दिखाते अपना।
किस मायने में दुनिया को हमने नहीं पछाडा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
लोकतंत्र के महान सेवक, नेता हैं इस तंत्र की जान।
धोती कुरता उजला इनका, गांधी टोपी सर पर शान।
पान कचरते ऐसे मानो, खून पी रहा हो शैतान।
हरी पत्तियाँ खाते-खाते, ये गधे हो गए सयान।
अरे भाइयों अब तो जागो, यह चर रहा खेत हमारा है।
देश महान हमारा है, हर बाज़ी को हमने मारा है।
ये मच्छर हो गए सयाने, ना खाते हैं एक-दो दाने।
खून चूस-चूसकर ये सब, ले लेंगे जनता की जानें।
रिश्वत घोटाले चरम बिंदु पर, धन पशु चट कर जाते हैं।
स्थिति गिर गयी इतनी कि, पशु चारे भी बच नहीं पाते हैं।
सबसे कड़ी पुलिस देश कि, चौकती रह जाती है।
न्यायपालिका लंगडी कुतिया, बस भौकती रह जाती है।
ऐसे में तो बस केवल, गरीब आदमी ही मारा जता है।
हे भगवान्, इस देश को अब तो बस तेरा ही सहारा है।
(Written in personal dairy on 2.08.1997)
2 Comments:
ओजस्वी कविता, मजा आ गया आपको पढ़ कर
रवि जी..........
नया अंदाज नज़र आ रहा है आज.........
पर बहूत लाजवाब है आपका ये अंदाज भी
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