गुल ने गुलशन से गुलफाम भेजा है.

सितारों ने आसमां से सलाम भेजा है.

मुबारक हो आप को नया साल,

हमने दिल से ये पैगाम भेजा हैं.
 
HAPPY NEW YEAR - 2011







जो ढल जाये वो


शाम होती है

जो खत्म हो जाये

वो ज़िन्दगी होती है

जो मिल जाये वो

मौत होती है

और जो ना मिले

वो मोहब्बत होती है


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हाथ पकडने का वादा था मगर हाथ छुडा लिया

जिसकी जिसे जरूरत थी खुदा ने मिला दिया

शिकायत भला करे किस से

मेरी तक़दीर ने सचाई का चहेरा दिखा दिया

 
...a simply collection
जिन्दगी रोज़ आजमाती है,नित नए गुल खिलाती है
जिनको बामुश्किल भूला,उनकी फिर याद दिलाती है
कभी गम के माहौल मै ख़ुशी देती है,और कभी माहौले ख़ुशी गम देती है
कल जो दिखाते थे खंजर हमको,आज पहना रहे हैं हार हमको
कल जो देखते थे साथ मैं चाँद,आज हिलाते हैं चाँद से हाथ
जिन्दगी का खेल कमाल का है,मसला ये "निरंतर" हर जान का है
जिन्दगी रोज़ आजमाती है,नित नए गुल खिलाती है

...collection
मजारों मैं सोये हुए हैं,अच्छे और बुरे



प्यार और नफरत के चहेते,रंगीन और बदरंग चेहरे


किस्मत किसी की, बदकिस्मती किसी क़ी,


यह मजबूरी ही है, बगल मैं कौन किसके लेटे


कोई बता नहीं सकता, आज क़ी दूरी होगी

क्या कल क़ी नजदीकी?

कोई कह नहीं सकता, आने वाले वक़्त का अहसास

कभी हो नहीं सकता, वक़्त तो वक़्त है

वक़्त पर ही बताएगा, किस का होगा क्या अंजाम


ये वक़्त ही बताएगा.



दुनिया भर में तेजी से पांव पसारते जा रहे एड्स का इलाज अब सम्भव हैं। इस स्थिति की भयावहता का ही यह परिणाम है कि एचआईवी पॉजिटिव होने का मतलब आमतौर पर जिंदगी का अंत मान लिया जाता है, लेकिन यह अधूरा सच है। अगर डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक चला जाए तो एचआईवी पॉजिटिव लोग भी लंबे समय तक सामान्य जीवन जी सकते हैं।

क्या है एचआईवी और एड्स ?


एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस) एक ऐसा वायरस है, जिसकी वजह से एड्स होता है। यह वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है। जिस इंसान में इस वायरस की मौजूदगी होती है, उसे हम एचआईवी पॉजिटिव कहते हैं। आमतौर पर लोग एचआईवी पॉजिटिव होने का मतलब ही एड्स समझने लगते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।


दरअसल, होता यह है कि एचआईवी के शरीर में प्रवेश कर जाने के बाद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता (बीमारियों से लड़ने की क्षमता) धीरे-धीरे कम होने लगती है। प्रतिरोधक क्षमता कम होने से शरीर पर तमाम तरह की बीमारियां और इन्फेक्शन पैदा करने वाले वायरस आदि अटैक करने लगते हैं। एचआईवी पॉजिटिव होने के करीब 8 से 10 साल बाद इन तमाम बीमारियों के लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। इस स्थिति को ही एड्स कहा जाता है। वैसे, एचआईवी पॉजिटिव होने के बाद से एड्स होने तक के वक्त को दवाओं की मदद से बढ़ाया जा सकता है और कुछ बीमारियों को ठीक भी किया जा सकता है। जाहिर है, एचआईवी पॉजिटिव होना या एड्स अपने आप में कोई बीमारी नहीं हैं, बल्कि इसकी वजह से बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता कम हो जाती है और तमाम बीमारियां अटैक कर देती हैं।


कैसे काम करता है एड्स का वायरस -


वायरस (एचआईवी) की वजह से एड्स होता है। यह वायरस शरीर की जीवित कोशिका (लिविंग सेल) के अंदर रहता है। शरीर से बाहर यह आधे घंटे से ज्यादा रह नहीं सकता। यानी खुले में इस वायरस के जीवित रहने, पनपने या फैलने की कोई आशंका नहीं है।


एचआईवी दो तरह का होता है -


एचआईवी-1 और एचआईवी-2


एचआईवी-1 पूरी दुनिया में पाया जाता है और भारत में भी 80 फीसदी मामले इसी के हैं। एचआईवी-2 खासतौर से अफ्रीका में मिलता है। भारत में भी कुछ लोगों में इसका इन्फेक्शन देखा गया है। कुछ लोगों को दोनों वायरस की वजह से इन्फेक्शन होता है। वैसे, एचआईवी-2 इन्फेक्शन वाले लोग एचआईवी-1 वालों से ज्यादा जीते हैं। मां से बच्चे में एचआईवी-2 ट्रांसफर होने के चांस न के बराबर होते हैं।


शरीर में घुसने के बाद यह वायरस वाइट ब्लड सेल्स पर अटैक करता है और धीरे-धीरे उन्हें मारता रहता है।


इन सेल्स के खत्म होने के बाद इन्फेक्शन और बीमारियों से लड़ने की हमारे शरीर की क्षमता कम होने लगती है। नतीजा यह होता है कि आए दिन शरीर में तमाम तरह के इन्फेक्शन होने लगते हैं। एचआईवी इन्फेक्शन की यह लास्ट स्टेज है और इसी स्टेज को एड्स कहा जाता है।


ऐसे फैल सकता है -


• एचआईवी पॉजिटिव पुरुष या महिला के साथ अनसेफ (कॉन्डम यूज किए बिना) सेक्स से, चाहे सेक्स होमोसेक्सुअल ही क्यों न हो।


• संक्रमित (इन्फेक्टेड) खून चढ़ाने से।


• एचआईवी पॉजिटिव महिला से पैदा हुए बच्चे में। बच्चा होने के बाद एचआईवी ग्रस्त मां के दूध पिलाने से भी इन्फेक्शन फैल सकता है।


• खून का सैंपल लेने या खून चढ़ाने में डिस्पोजेबल सिरिंज (सिर्फ एक ही बार इस्तेमाल में आने वाली सुई) न यूज करने से या फिर स्टर्लाइज किए बिना निडल और सिरिंज का यूज करने से।


• हेयर ड्रेसर (नाई) के यहां बिना स्टर्लाइज्ड (रोगाणु-मुक्त) उस्तरा, पुराना इन्फेक्टेड ब्लेड यूज करने से।


• सलून में इन्फेक्टेड व्यक्ति की शेव में यूज किए ब्लेड से। सलून में हमेशा नया ब्लेड यूज हो रहा है, यह इंशुअर करें।



ऐसे नहीं फैलता -


• चूमने से। लेकिन अगर किसी व्यक्ति को एड्स है और उसके मुंह में कट या मसूड़े में सूजन जैसी समस्या है, तो इस तरह के व्यक्ति को चूमने से भी एड्स फैल सकता है। यानी एड्स का संक्रमण चूमने पर भी फैल सकता है, अगर सावधानी न बरती जाए।


• हाथ मिलाना, गले मिलना, एक ही टॉयलेट को यूज करना, एक ही गिलास में पानी पीना, छीकने, खांसने से इन्फेक्शन नहीं फैलता।


• एचआईवी शरीर के बाहर ज्यादा देर तक नहीं रह सकता, इसलिए यह खाने और हवा से भी नहीं फैलता।


• रक्तदान करने से बशर्ते खून निकालने में डिस्पोजेबल (इस्तेमाल के बाद फेंक दी जाने वाली) सुई का इस्तेमाल किया गया हो।


• मच्छर काटने से।


• टैटू बनवाने से, बशर्ते इस्तेमाल किए जा रहे औजार स्टर्लाइज्ड हों।


• डॉक्टर या डेंटिस्ट के पास इलाज कराने से। ये लोग भी आमतौर पर स्टरलाइज्ड औजारों का ही इस्तेमाल करते हैं।



इनके जरिए पहुंचता है वायरस –


• ब्लड


• सीमेन (वीर्य)


• वैजाइनल फ्लूइड (स्त्रियों के जननांग से निकलने वाला दव)


• ब्रेस्ट मिल्क


• शरीर का कोई भी दूसरा फ्लूइड, जिसमें ब्लड हो मसलन, बलगम


• इनसे भी फैल सकता है एड्स (इनके संपर्क में अक्सर मेडिकल पेशे से जुड़े लोग ही आते हैं)


• दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड के इर्द-गिर्द रहने वाला दव


• हड्डी के जोड़ों के आसपास का दव


• भ्रूण के आसपास का दव



ये लक्षण हैं तो शक करें –


एचआईवी से ग्रस्त इंसान शुरू में बिल्कुल नॉर्मल और सेहतमंद लगता है। कुछ साल बाद ही इसके लक्षण सामने आते हैं। अगर किसी को नीचे दिए गए लक्षण हैं, तो उसे एचआईवी का टेस्ट कराना चाहिए :


• एक महीने से ज्यादा समय तक बुखार बने रहना, जिसकी कोई खास वजह भी पता न चले।


• बिना किसी वजह के लगातार डायरिया बने रहना।


• लगातार सूखी खांसी।


• मुंह में सफेद छाले जैसे निशान होना।


• बिना किसी वजह के लगातार थकान बने रहना और तेजी से वजन गिरना।


• याददाश्त में कमी, डिप्रेशन आदि।


(नोट : ये सभी लक्षण किसी साधारण बीमारी में भी हो सकते हैं। )




एचआईवी के लिए मेडिकल टेस्ट –


किसी को एचआईवी इन्फेक्शन है या नहीं, यह पता करने का अकेला तरीका यही है कि उस इंसान का ब्लड टेस्ट किया जाए। लक्षणों के आधार पर शक किया जा सकता है, लेकिन यह पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि एचआईवी है या नहीं, क्योंकि एचआईवी के लक्षण किसी दूसरी बीमारी के लक्षण भी हो सकते हैं। कई मामलों में ऐसा भी होता है कि एचआईवी पॉजिटिव होने के बाद कई साल तक कोई लक्षण सामने नहीं आता।


एचआईवी टेस्ट और काउंसलिंग के लिए सरकार ने पूरे देश में 5 हजार इंटिग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) बनाए हैं। इन सेंटरों पर व्यक्ति की काउंसलिंग और उसके बाद बाजू से खून लेकर जांच की जाती है। यह जांच फ्री होती है और रिपोर्ट आधे घंटे में मिल जाती है। आमतौर पर सभी जिला अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और कुछ कम्यूनिटी हेल्थ सेंटरों पर यह सुविधा उपलब्ध है। यहां पूरी जांच के दौरान व्यक्ति की आइडेंटिटी गुप्त रखी जाती है। पहले रैपिड या स्पॉट टेस्ट होता है, लेकिन इस टेस्ट में कई मामलों में गलत रिपोर्ट भी पाई गई हैं। इसलिए स्पॉट टेस्ट में पॉजिटिव आने के बाद व्यक्ति का एलाइजा टेस्ट किया जाता है। एलाइजा टेस्ट में कन्फर्म होने के बाद व्यक्ति को एचआईवी पॉजिटिव होने की रिपोर्ट दे दी जाती है।


एचआईवी कन्फर्म हो जाने के बाद मरीज को इलाज के लिए एआरटी सेंटर पर भेजा जाता है। पूरे देश में ऐसे करीब 280 एआरटी सेंटर हैं। इन सेंटरों पर इलाज शुरू करने से पहले व्यक्ति का एक और ब्लड टेस्ट किया जाता है, जिसमें उसकी सीडी-4 सेल्स की संख्या का पता लगाया जाता है। अगर यह संख्या 250 से कम है तो व्यक्ति का फौरन इलाज शुरू कर दिया जाता है और अगर उससे ज्यादा है तो डॉक्टर उसे कुछ दिन बाद आने की सलाह दे सकते हैं। इन सेंटरों पर भी काउंसिलर भी होते हैं, जो इलाज के साथ-साथ व्यक्ति की काउंसलिंग भी करते हैं। इलाज फ्री होता है और व्यक्ति की पहचान गुप्त रखी जाती है।


ज्यादातर मामलों में एचआईवी इन्फेक्शन हो जाने के दो हफ्ते के बाद टेस्ट कराने पर ही टेस्ट में इन्फेक्शन आ पाता है, उससे पहले नहीं। कई बार इसमें छह महीने भी लग जाते हैं। ऐसे में अगर किसी को लगता है कि उसका कहीं एचआईवी के प्रति एक्सपोजर हुआ है और फौरन टेस्ट कराता है, तो टेस्ट का रिजल्ट नेगटिव भी आ सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उस व्यक्ति को इन्फेक्शन नहीं हो सकता। ध्यान रखें कि एचआईवी को शरीर में एक्टिव होने में छह महीने तक लग सकते हैं। इसलिए छह महीने बाद एक बार फिर टेस्ट कराना चाहिए। छह महीने बाद भी अगर नेगेटिव आता है तो आप खुद को सेफ मान सकते हैं। शरीर में वायरस की एंट्री से लेकर उसके एक्टिव होने तक के समय को विंडो पीरियड कहा जाता है। इस पीरियड में एचआईवी का टेस्ट से भी पता भले ही न चलता हो, लेकिन जिसके शरीर में वायरस है वह इसे दूसरे को ट्रांसफर जरूर कर सकता है।



एड्स का इलाज -


एड्स अब लाइलाज नहीं -




उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में एक चिकित्सक ने अपने कठिन परिश्रम व लगन से एड्स जैसे लाइलाज बीमारी की आयुर्वेदिक दवा बनायी है जिसका भारत सरकार ने पेटेन्ट कर लिया है।


कुशीनगर के लक्ष्मीगंज के पास वगहा खुर्द निवासी डॉ. संतोष कुमार ने आटोमोवाइल से इंजीनियरिंग करने के बाद आयुर्वेदाचार्य की डिग्री ली और कड़ी मेहनत व लगन से एड्स जैसी लाइलाज बीमारी के लिए लक्ष्मीगंज में अपना अनुसंधान करके विशुद्ध रूप से हानि रहित हर्बल दवा बनायी जिसमें 16 माह में एड्स से निर्मूल रूप से मुक्ति मिल सकती है।


डॉ. पाण्डेय ने पत्रकारों को बताया कि इस दवा के पेटेन्ट के लिए नई दिल्ली स्थित भारत सरकार की पेटेन्ट कार्यालय में छह वर्ष पूर्व आवेदन किया गया था जिसको गहन जांच के बाद 19 जुलाई 2010 को बीस वर्षों के लिए पेटेन्ट कर दिया गया है। इस दवा से एचआई पॉजीटिव रोगी बिलकुल मुक्त हो जाएंगे।


Presented by- Ravi Srivastava.
(मेरी पत्रिका और टोटल हेल्थ केयर में एक साथ प्रकाशित)
With Thanks to Josh18.com
http://josh18.in.com/showstory.php?id=720302
& to Navbharattimes.com
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5279871.cms


पिछली शताब्दी में हमने बहुत सी प्राकृतिक आपदाएं देखी, सुनी और झेली। तूफान, चक्रवात, जंगलों की आग, बाढ़ आदि बहुत सी प्राकृतिक आपदाएं आईं यानी हम कह सकते हैं कि पृथ्वी अपने पर हुए अत्याचार के बदले में अपना गुस्सा प्रकट कर रही थी। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से कितने ही द्वीप देखते ही देखते काल के गर्त में चले गए। समुद्र का स्तर बढ़ जाने से द्वीप डूब रहे हैं उधर कार्बन उत्सर्जन से तापमान बढ़ रहा है। बढ़ते तापमान से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, नदियों में पानी नहीं है। कहीं बाढ़ आ रही है तो कहीं सूखा पड़ रहा है। पानी में आर्सेनिक, लोराइड और अब तो यूरेनियम तक मिल रहा है। परिणामस्वरूप पानी और धरती विषैले हो रहे हैं। वर्तमान समय में यह समस्या बहुत जटिल रूप धारण करने जा रही है। वह है पीने के साफ पानी की बढ़ती माँग। समस्या के विकराल होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आए दिन पानी को लेकर मार-पीट, झगड़े न केवल लोगों के बीच बल्कि राज्यों और देशों के बीच भी हो रहे हैं।


विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक बीस वर्ष में शुद्ध पेयजल की माँग दोगुनी रतार से बढ़ रही है, जबकि विकासशील देशों में पानी की आपूर्ति असमान है। दुर्भाग्य से कार्बन उत्सर्जन, भूमि की विषाक्तता बढ़ने तथा जमीन और पानी के बढ़ते प्रदूषण के मामलों में हम अब भी उतने सक्रिय और तेज नहीं हैं, जितना होना चाहिये। बजाय इसके कि हम अपने को किसी क्रियात्मक गतिविधि में लगाते, हम सिर्फ अपने उपभोग के तौर-तरीकों को “कथित” रूप से ठीक करने में लगे हुए हैं। इतना ही नहीं हम पर्यावरण के प्रति जागरुकता के अपने अल्पज्ञान को छिपाने की कोशिश करते हैं। हम इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं देते कि हमारे आसपास आवश्यक संसाधन और बुनियादी सुविधाओं की क्या स्थिति है? अलबत्ता पश्चिमी जीवनशैली की टैक्स पद्धति को हम वैश्विक स्तर पर अपनाने लगे हैं। सच तो यही है कि हम अभी तक समस्या की सही पहचान ही नहीं कर पाये हैं कि दुनिया अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सामूहिक इंकार की स्थिति का सामना कर रही है। अगर यही हाल रहा तो आस्ट्रेलियन नेशनल युनिवर्सिटी के प्रोफेसर फ्रैंक फैनर की यह भविष्यवाणी सही भी साबित हो सकती है कि "अगले सौ वर्षों में धरती से मनुष्यों का सफाया हो जाएगा।"


उनका कहना है कि ‘जनसंख्या विस्फोट और प्राकृतिक संसाधनों के बेतहाशा इस्तेमाल की वजह से इन्सानी नस्ल खत्म हो जाएगी। साथ ही कई और प्रजातियाँ भी नहीं रहेंगी। यह स्थिति आइस-एज या किसी भयानक उल्का पिंड के धरती से टकराने के बाद की स्थिति जैसी होगी।’ फ्रैंक कहते हैं कि विनाश की ओर बढ़ती धरती की परिस्थितियों को पलटा नहीं जा सकता। पर मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता क्योंकि कई लोग हालात में सुधार की कोशिश कर रहे हैं। पर मुझे लगता है कि अब काफी देर हो चुकी है।


पानी की बढ़ती माँग और आपूर्ति के बीच सन्तुलन कैसे बनाया जाये इस बात पर विचार करने के लिये कोई न कोई दूरगामी नीति बनानी ही पड़ेगी। कुल मिलाकर पानी की बढ़ती माँग तथा उसकी अनिश्चित आपूर्ति समूची मानव प्रजाति को संकट में डालने जा रही है।



दूषित पानी साफ करने के उपाय :


दूषित पानी साफ करने के कई उपायों में रेत फिल्टर तकनीकी काफी उपयोगी साबित हुई है। यह पानी की स्वच्छता की सबसे पुरानी तकनीकी है, जिससे काफी अच्छे ढंग से तैयार किया गया है। इसके नए ढांचे में फिल्टर के सबसे ऊपर टोंटी लगाई जाती है, जिससे ठहरा पानी अपने आप रेत की सतह से 5 सेंटीमीटर ऊपर आ जाता है। इससे जैविक परत बनने के लिए उचित वातावरण प्राप्त होता है, जिसमें कई तरह के जीवाणु होते हैं, जो रोगाणु बैक्टीरिया को नष्ट करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यद्यपि रेत के फिल्टर में जटिल भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रियाएं शामिल हैं, लेकिन इस धीमे रेत फिल्टर को बनाने में इसका कोई झंझट नहीं है (बस एक घंटे का समय लगता है) जिसमें कंक्रीट और धातु के सांचे की जरूरत पड़ती है। इसका रखरखाव करना भी आसान है।


इसे तब ही अमल में लाया जाना चाहिए जब पानी का बहाव तेज हो। इसके लिए 5 सेमी तक रेत की सतह को साफ करने की जरूरत पड़ती है। पानी के फिल्टर के लिए आदर्श रूप से 0.2 से 0.3 मिली मीटर अन्न के दाने जितनी मोटी रेत को उपयोग में लाया जाता है, लेकिन इसके लिए खदान के रेत, धान की फूस तथा अन्य तरीकों को भी फिल्टर सामग्री के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।


अच्छी तरह से काम करने वाले रेत फिल्टर से परजीवी और ठोस चीजें साफ हो जाती हैं और एक आदर्श स्थिति में 99 प्रतिशत तक रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। इसकी कम से कम तीन सप्ताह के बाद ही जांच की जाती है, जिससे इसमें जैविक परत बनने के लिए पर्याप्त समय और अवसर बना रहे। इस पर अब तक किए गए प्रयोगों के काफी उत्साहजनक नतीजे सामने आए हैं। 17 मामलों को छोड़कर बाकी सब रेत फिल्टर में प्रति 100 मिली लीटर पानी में 10 से कम ई-कोलाई बैक्टीरिया उत्पन्न होता है।


इसका फिल्टर धातु के अलावा प्लास्टिक या स्थानीय तौर पर उपलब्ध किसी भी सामग्री से तैयार किया जा सकता है, बशर्ते इसमें निर्माण संबंधी बुनियादी बातों का पूरा ख्याल रखा जाए, जैसे : रेत परत की कितनी गहराई और बहाव की गति हो और रेत से कितने ऊपर जल का स्तर हो। कई लोग कंक्रीट के फिल्टर को ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि यह टिकाऊ होता है और इससे ठंडा पानी प्राप्त होता है।


अगर इस तरह का रेत फिल्टर बनाया जाए, जिसमें साफ रेत डाली जाए, तो शुरुआत में उसमें से प्रति मिनट 1 लीटर पानी मिलेगा, लेकिन अनाज के दाने जितने कंक्रीट में काफी कम समय में ज्यादा पानी प्राप्त होता है।



With spl.thanks to:Hindi water portal

किताबों  के  पन्नो  में  बार  बार  आ  जाते  हो  

दूर  हो  मुझसे  फिर  भी  यादों  में  रह  जाते  हो

भुलाने  को  कहते  हो  तो  मुमकिन  नहीं

क्यूँ  कि  तुम  जहा  भी  जाते  हो  अपना  दिल  छोड़  आते  हो

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रोशनी  कर ना  सके,  दिल  भी  जलाया  हमने

ए खुदा  चुन  के  मुकद्दर  अपना  पाया  हमने

तपते  दिल  को  कहीं  और  भी  मिल  पायी  न  राहत

सावन  आँखों  से  भी  एक  उम्र  बहाया  हमने.

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सोचा  था  इस  कदर  उनको  भूल  जायेंगे

देख  कर  भी  अनदेखा  कर  जायेंगे

पर  जब  जब  आया  सामने  उनका  चेहरा

सोचा  इस  बार  देख  लें  अगली  बार  भूल  जायेंगे.

 
Spl. For- Sandip


जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी (जार) और दो कप चाय " हमें याद आती है ।




दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने


छात्रों से कहा कि वे


आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...




उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल


टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ...


आवाज आई ...



फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु


किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा



अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब


तो यह बरनी पूरी भर गई ना ?


हाँ... अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा ..


सर ने टेबल के नीचे से


चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित


थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...




प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –


इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....


टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान ,


परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,


छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं,


और रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..


अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की


गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं


भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी...


ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है ।



अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ...



टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है ..



छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह


नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं ?



प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया...



इसका उत्तर यह है कि...  जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन


अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।




...with spl.thanks toPramod.

जिन्दगी  के  कुछ  लम्हे  यादगार  होते  हैं.  

यादों  में  कुछ  दोस्त  खास  होते  हैं.  

यूं  तो  वो  दूर  होते  हैं  नज़रों  से,  

पर  उनके  एहसास  हमेशा  दिल  के  पास  होते  हैं.

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बहुत  चाह  मगर  उन्हें  भुला  न  सके,

खयालों  में  किसी  और  को  ला  न  सके.

उनको  देख  के  आँसू  तो  पोंछ  लिए,

पर  किसी  और  को  देख  के  मुस्कुरा  न  सके.


ऐसे रुखसत होंगे तेरे दर से ये कभी सोचा न था


वो मिटा देंगे अपने हर ज़िक्र से कभी सोचा न था

खुद कि निगाह में कोई कमी न थी अपनी वफा में

बस ये ही खता है उसकी नज़र से कभी सोचा न था

अपने दिल में लिए उसे हम अपना ही समझते रहे

उसके दिल में हम किधर हैं ये तो कभी सोचा न था!
क्या सचमुच कश्मीर में भारतीयता की अनदेखी हो रही है...? मन में यह सवाल उठता है आज दिनांक- 03.05.2010 को दैनिक जागरण में प्रकाशित यह आर्टिकल पढ़कर "......... हवाई अड्डे से शहर जाते हुए श्रीनगर बंद की खबर मिली। दिल्ली के लाजपत नगर विस्फोट कांड में दो कश्मीरी आतंकवादियों को सजा सुनाए जाने के विरोध में हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता सैयद अली शाह गिलानी ने बंद रखा था। बाहरी इलाके में बंद के बावजूद दुकानें खुली थीं और जरूरत का सामान मिल रहा था। बीच शहर में सन्नाटा था और पथराव की खबरें मिलीं। जिसमें एक कश्मीरी युवक मारा गया। लेकिन गिलानी समर्थकों के पथराव में मारे गए युवक की मृत्यु का विरोध कौन करता? इस सबके बावजूद कश्मीर में भारत के कोने-कोने से पर्यटक सपरिवार आ रहे हैं। खतरों के बीच भी भारतीय नागरिक जिस साहस और आनंद के साथ कश्मीर घूमने आ रहे हैं, वह हमारी जिजीविषा का ही प्रमाण है। लेकिन कश्मीर में अलगाव की जड़ें इतनी गहरी जम चुकी हैं कि किसी से बात करने में इंडिया और कश्मीर जैसे शब्द ही सामान्य रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं। भारत से एकता की बात करना यहां खतरनाक माना जाता है। यहां देशभक्ति का अर्थ बताया जाता है कश्मीर के भारत से अलगाव का समर्थन। शेष देश से मुख्यधारा के राजनीतिक दलों में कांग्रेस के अलावा किसी का घाटी में प्रभाव दिखता नहीं। भाजपा काफी कोशिश कर रही है। गत विधानसभा चुनावों में उसके 25 मुस्लिम उम्मीदवार भी खड़े हुए थे। भाजपा का अपना कार्यालय है, जहां वे हिम्मत के साथ तिरंगा भी लहराते हैं और राष्ट्रीय दिवसों पर कार्यक्रम भी करते हैं। उनके नेता सोफी यूसुफ यहां वतनपरस्ती और हिंदुस्तानियत की बातें करते हैं। उनका असर सीमित होते हुए भी यह बात बहुत हिम्मत और हौसले की है। शाम को मुझसे मिलने श्रीनगर के कुछ ऐसे बुद्धिजीवी आए जो भारत से जुड़े रहना चाहते हैं, तिरंगे के प्रति वफादार है लेकिन आतंकवाद और कश्मीर की विभाजनकारी राजनीति के कारण कुछ कह नहीं पाते। उनकी अनेक वेदनाओं में एक प्रमुख थी- दिल्ली के शासक कश्मीर को शेष भारत से जोड़े रखने की ईमानदार कोशिश ही नहीं करना चाहते। उन्होंने सवालों की झड़ी लगा दी। अगर वास्तव में दिल्ली कश्मीर को भारत का अविभाज्य अंग मानती है तो फिर कश्मीर के लिए अलग झंडा क्यों? कश्मीर में धारा 370 भी जारी रखना चाहेंगे और यह भी चाहेंगे कि कश्मीर के लोग खुद को भारत का वैसा ही हिस्सा समझें जैसे बिहार या तमिलनाडु के लोग मानते हैं, यह क्या संभव हो सकता है? कश्मीर के जितने भी अलगाववादी नेता और पार्टियां हैं, वे भारत सरकार की सुरक्षा का मजा लेती है, उनके हर छोटे-बड़े बीमारी के खर्च भी भारत सरकार वहन करती है, उनको दिल्ली में बड़ी इज्जत से बुलाया जाता है, जहां ज्यादातर नेताओं की संपत्तियां हैं और जब किसी बड़ी घटना पर उन्हें गिरफ्तार भी किया जाता है तो उन्हें शानदार बंगलों में रखा जाता है। जबकि कश्मीर में भारतीय देशभक्ति की बात करनेवाले न दिल्ली में इज्जत पाते है, न श्रीनगर में। तो फिर कोई घाटे का सौदा क्यों करें? कश्मीर के बेरोजगार नौजवान यहां की सियासत में भटक गए हैं। दिल्ली से कोई उनके बीच रिश्ते या संवाद करने कभी आता नहीं। क्या यहां सारी आबादी दहशतगदरें के हवाले कर दी है? कोई निर्दोष किसी की भी गोली से मरे, क्या उनके घरवालों को हमदर्दी की जरूरत नहीं होती? जब भी कश्मीर की बात होती है जम्मू और घाटी के वैमनस्य, सारे कश्मीरियों को आतंकवाद समर्थक रंग में रंगने और सिर्फ फौजी समाधान ढूंढ़ने की ही चर्चा क्यों होती है? कश्मीर में यदि कोई देशभक्ति की बात करे तो उसका बचाव करने वाला कौन है- दिल्ली, श्रीनगर या कोई नहीं? दिल्ली के जो शासक श्रीनगर में वतनपरस्ती और तिरंगे की बात करने वालों को रक्षा नहीं दे पाते, वे क्यों यह उम्मीद करते हैं कि कश्मीर की नई पीढ़ी भारत के प्रति देशभक्त बनेगी? कांग्रेस ने आज तक कश्मीर में सिर्फ उन नेताओं और पार्टियों का साथ दिया जो शेष भारत के साथ कमजोर संबंध तथा भारतीय सत्ता को अस्वीकार करते हुए चलने के पक्षधर रहे। कभी भी कांग्रेस के मंच से कश्मीर में ऐसे नेता सामने नहीं आए जो भारतीयता के सबल पक्षधर होते। फिर यहां अलगाववाद नहीं पनपेगा तो क्या एकता की फसल लहलहाएगी? पांच लाख कश्मीरी हिंदुओं के निर्वासन को दो दशक बीत गए। किसने, क्या और कितना किया उनकी घर वापसी सुनिश्चित करने के लिए? सिर्फ पैसा फेंककर और फौजें लगाकर समाधान नहीं हो सकता। दिल्ली के राजनेता राजभवन तक आते हैं। यहां के आम आदमी को शेष भारत के साथ पूरे मनोयोग से जोड़ने वालों को सुरक्षा देने के लिए उन्होंने आज तक क्या किया? ये प्रश्न हमारे नेताओं के लिए असुविधाजनक हो सकते हैं। पर सच यह है कि कश्मीर के जख्मों के लिए यदि कोई सबसे अधिक जिम्मेदार है तो वह है दिल्ली की ढुलमुल नीति। आज कश्मीर अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति का अखाड़ा बन गया है, जहां भारतीयता के दायरों को लगातार दिल्ली के धृतराष्ट्रों ने अपनी गलतियों से सिकोड़ा है। कश्मीर में ईमानदार चुनाव वाजपेयी सरकार के समय हुए और उसी समय कश्मीर समाधान की सबसे घनीभूत संभावनाएं प्रबल हुई थीं। कश्मीर में अपनी राजनीतिक सत्ता के लिए भारतीय हितों की बलि चढ़ाने वाले दल और नेता कश्मीर समस्या का समाधान नहीं निकाल सकते। दिल्ली की ईमानदारी और राष्ट्रीयता के प्रति अविचल निष्ठा के साथ बनी नीति पर यदि अमल किया जाए तो धरती का यह स्वर्ग आत्मीयता की गंध पुन: दे सकता है।"


सधन्यवाद- दैनिक जागरण

दर्द-ए-दिल की कहानी भी वो खुब लिखता है


कही पर बेवफा तो कही मुझे मेहबूब लिखता है

कुछ तो रस्म-ए-वफा निभा रहा है वो

हर एक सफ-ए-कहानी मे वो मुझे मजमून लिखता है

लफ्ज़ो की जुस्तजू मेरे संग़ बीते लम्हो से लेता है

स्याही मेरे अश्क़ को बनाकर वो हर लम्हा लिखता है

कशिश क्यो ना हो उसकी दास्तान-ए-दर्द मे यारो

जब भी ज़िक्र खुद का आता है वो खुद को वफा लिखता है

तहरीरे झूठ की सजाई है आज उसने अपने चेहरे पर

खुद को दर्द की मिसाल और कही मजबूर लिखता है
दरिया तो है वो, जिस से किनारे छलक  उठाये



बहते हुए पानी को मै दरिया नही कहता


गहराई जो दी तुने मेरे ज़ख्म ए जिगर को


मै इतना समुंद्र को भी गहरा नही कहता




किस किस की तम्मना मे करू प्यार को तक़सीम


हर शक़स को मै जान ए तम्मना नही कहता


करता हूँ मै, अपने गुनाहो पे बहुत नाज़


इंसान हूँ मै खुद को फरिश्ता नही कहता



ये और बात है हम तुमको याद आ ना सके



शराब पी के भी हम तुमको भुला ना सके



ये फासलो की है बसती इसी लिये यारो



वो पास आ ना सके हम भी पास जा ना सके



सुकु दिया है ज़माने को मेरे नगमो ने



अज़ीब बात है खुद को ही हम हसा ना सके


पत्थर की है दुनियाँ जज़्बात नही समझती

दिल मे क्या है वो बात नही समझती

तन्हा तो चाँद भी है सितारो के बीच

मगर चाँद का दर्द बेवफा रात नही समझती

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हम दर्द झेलने से नही डरते

पर उस दर्द के खत्म होने की कोई आस तो हो

दर्द चाहे कितना भी दर्दनाक हो

पर दर्द देने वाले को उसका एहसास तो हो

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उनको अपने हाल का हिसाब क्या देते

सवाल सारे गलत थे हम जवाब क्या देते

वो तो लफ्ज़ो की हिफाज़त भी ना कर सके

फिर उनके हाथ मे ज़िन्दगी की पुरी किताब क्या देते

फिल्मों और टी.व्ही. का हास्य अश्लील तथा पत्र-पत्रिकाओं का हास्य राजनीतिक हो गया है । इस होली में यही देखने और पढने में आया । अश्लीलता मुझे पसंद नहीं और राजनीति में मेरा भरोसा नहीं । अतः इया होली में लिखी गयीं लगभग दर्जन भर रचनाओं में से कुछेक को छोड़कर सभी पत्र-पत्रिकाओं द्वारा दरकिनार कर दीं गयीं ।
होली पूर्व एक प्रतिष्ठित अखबार के स्थानीय कार्यालय में एक व्यंग्य लेकर पहुंचा । तथाकथित सम्पादक जी ने मेरी रचना के पन्नों को फटाफट पलटा और आखिरी पन्ने को यों पकड़ा की शेष पन्ने हवा मैं झूल रहे थे , मानों वे कोई सड़े हुए मरे चूहे की पूँछ पकड़कर फेंकने जा रहे हों; बोले, 'लोकल नेताओं पर कुछ लिखो ।' मैनें कहा, 'में एक सरकारी मुलाजिम हूँ इसलिए ऐसा नहीं कर सकता ।' वे बोले, ' अपनी पत्नी के नाम से लिख दो ।' मैंने असमर्थता व्यक्त की और माफ़ी मांगकर बेदखल हो लिया । तिस पर मजाक ये कि उनके होली अंक में जो व्यंग्य छापा उसमें व्यंग्यकार ने मेरी दस साल पुरानी क्षणिका उद्घृत कर डाली ।
एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में बड़े ओहदे पर पदासीन मित्र ने मोबाइल किया - ' क्या बात है, आजकल लिखना बंद कर दिया क्या ? इस त्यौहार में दिखे नहीं !' 'बस ऐसे ही, मैं कोई स्तरीय लेखक तो हूँ नहीं कि हर पत्रिका में दिखूं !' मैंने अपना गुबार निकाला । वह साहित्य प्रेमी है और किसी बुक स्टाल पर पत्रिकाए पलट रहा था । बोला, ' यार मन ऊब गया है वही पुरानी रचनाएं पढ़कर । दर्जन भर पत्रिकाओं में वही दो तीन दर्जन लेखक । राजनेताओं की पोल खोलने के बहाने लिखी गयीं रचनाएं । आम जनता क्या मूरख है जो अनजान है इनसे ? खैर ! जो भी हो नेत्ताओं से स्वार्थ सिद्धि में लगीं पत्र-पत्रिकाएँ ऐसा करके उन्हें खुश करतीं हैं बस । बचा-खुचा पढ़ाकू पाठक दूर भागता है । '
हमारे एक मित्र लेखक जिस साप्ताहिक के लिए लिख रहे थे उसकी आलाकमान बदल गयी । पत्रिका को स्तरीय बनाने कवायद की जा रही है । आज पत्रिका के मुख्य पृष्ठ को ना देखें तो अन्दर के पृष्ठ से ये अनुमान लगाना मुश्किल कि आज की कौन सी स्तरीय पत्रिका हाथ में है ! आज कितनी ही पत्रिकाए एक-रसता के कारण दम तोड़ चुकीं हैं । ऐसी पत्रिकाओं को साहित्यकारों की आलाकमान के साथ कुबेबाज़ी ले डूबी ! पाठक नए की तलाश में पढता नहीं और नए साहित्यकार स्थानीय स्तर पर पनपता है और मर जाता है ।
आज पत्रिकाओं को स्तरीय बनाना आसान हो गया है । बहु-प्रकाशित साहित्यकारों की रचनाओं को बिना पढ़े उठायें और छाप दें । अब ऐसे सम्पादक कहाँ कि रचनाओं को पढने में सिर खाफएं और व्यक्तिगत पत्र से सूचित करें । अब तो सम्पादकीय भी इन्टरनेट से उठाकर लिखे जाते हैं ।
कहते हैं - हिंदी साहित्य मर रहा है ? क्या इसके लिए लेखक, मिडिया, सम्पादक और पत्र-पत्रिकाएं ज़िम्मेदार नहीं ?
वह निराकार है
अदृश्य है
दिखाई नहीं देता
कहा कहाँ खोजता है
भक्त
हार जाता है
थक जाता है
उसका पता नहीं पता है
पर
वह साकार भी है
साक्षात भी है
प्रकृती के कण कण मे
मौजूद है जन जन मे
बुजुर्गो मे,
उनकी दुआओं मे
बच्चो की किलकारियों मे
बहु बेटियों की
सदाओं मे
तरूवर पल्लव लताओं मे
सरसराती हवाओं मे
उमड़ती घुमड़ती घटाओं मे
महकती फिजाओं मे
कलरव करते
परिंदों पक्षियों मे
नाद करती नदियों मे
आओ हम निराकार को
साकार करें
उसका अभिनन्दन करें
वंदन करें
आओ हम निराकार को
साकार करें

अपनी तन्हाई की पलको को भीगो लूँ पहले

फिर गज़ल तुझ पे लिखूँ, रो लूँ पहले

ख्वाब के साथ कही खो ना गयी हों आंखे

जब उठू सो के तो चेहरे को टटोलूँ पहले

मेरे ख्वाबो को है मौसम पे भरोसा कितना

बाद मे फूल खिले हार पिरो लूँ पहले

देखना ये है कि वो रहता है खफा कब तक

मैने सोचा है कि  इस बार ना बोलूँ  पहले 
दर्द के हिंडोले मे झूल रहा हू मैं
आंसुओं के सागर मे डूब रहा हूँ मैं
कब आयेगा तू आने वाले ये तो बता
बिन तेरे तन्हा हो रहा हूँ मैं
कब तक कटेगी यादों के सहारे ये रातें
कुछ तो भ्रम रख लो की होंगी मुलाकातें
मेरी आँखों मे झांकते सितारों की गवाही ले लो
पलकों पे तैरते आंसुओं की कसम ले लो
जुदाई के नश्तर जब भी चुभते हैं
लहुलुहान दिल को, सीना चाक कर देते हैं
तन्हाईयाँ भी मेरी बेबसी पर हंसने लगी हैं
अरमानो की चिताएं भी सजने लगी हैं
चांदनी भी आग लगाने को तैयार खडी है
लौट आओ की संभल जाए ये दिल
वरना तो कहानी अपनी ख़त्म होने लगी है।

अपनी मर्जी से लोग हमारे दिल में आकर बस जाते हैं.



हमारे दिल को अपना घर और हमे अपना कहकर बुलाते हैं.


जब जाना होता है उनको तो हँसकर  चले जाते हैं.


उनको क्या मालूम कि वो हमारे दिल को कितना दर्द दे जाते हैं.


…Happy Valentine’s Day
जब से
तुम
मिल गए,
मौसम के
सुनहरे पंख
खुल गए ।

अगणित
कलियों पर
चाँद चमका है,
जब से
तुम्हारा
घूँघट सरका है ।

बागवान के
जैसे,
दिन फिर गए ।

पवन की
झप-झप
सनसनी लिए है;
जब से
तुम्हारे आँचल से
झोंके मिले हैं ।

गरमाते बदन
सिहर
सिहर गए !
[] राकेश 'सोहम'

सीने मे लिये तेरी यादो को


हम तो दुर कही चले जायेंगे


या वादिया ये मौसम और ये नज़ारे


इन्हे हम तो कभी ना भूल पायेंगे


क्या भूलू क्या याद करू


अपनी यादे तुझको सौगात करू


वादा नही पर एक चाह है दिल मे


तुमको मिलने को हम फिर आयेंग़े


जिन्दगी नही तो चन्द लम्हे ही बितायेंगे


ए मेरे शहर शायद हम भी तुझको याद आयेंग़े
छलनी आत्मा पर मरहम मत लगाना
अब बहुत देर हो चुकी है
टूटे सपनो को अब मत सजाना
अब बहुत देर हो चुकी है
गम के समंदर मे ख़ुशी की नाव मत चलाना
अब बहुत देर हो चुकी है
कुचले हुए फूलो को पानी के छींटे मत देना
अब बहुत देर हो चुकी है
मुझे धरा पर गिरा कर आसमान मत दिखाना
अब बहुत देर हो चुकी है
अक्स मेरा मिटा कर उसे फिर मत खोजना
अब बहुत देर हो चुकी है.

मेरे कमरे की खिड़की से

रोज़ सुबह

मुस्कुराता हुआ आता है

सूरज

मेरे सारे क्रिया कलापों का

गवाह बनता है

सूरज

मेरे जीवन की कशमकश और

ज़द्दोज़हद को

बड़ी शिद्दत से देखता है

सूरज

कहता कुछ नहीं, बस

मूक दर्शक बना रहता है

सूरज

और शाम को जाते हुए

रोज़ मेरी उम्र का एक दिन

साथ ले जाता है

सूरज


जो था, वो अब नहीं है


जो है, वो सब नहीं है


सबकी पसंद है वो


फिर भी वो रब नहीं है


उसकी वफ़ाएं – ख़ारिज


जिसमें, अदब नहीं है


वो , क्या करेगा हासिल


जिसमें - तलब नहीं है


ईमान का करें क्या?


ईनाम जब नहीं है


इस - भागते सफ़र में


कुछ भी अजब नहीं है