दरिया तो है वो, जिस से किनारे छलक उठाये
बहते हुए पानी को मै दरिया नही कहता
गहराई जो दी तुने मेरे ज़ख्म ए जिगर को
मै इतना समुंद्र को भी गहरा नही कहता
किस किस की तम्मना मे करू प्यार को तक़सीम
हर शक़स को मै जान ए तम्मना नही कहता
करता हूँ मै, अपने गुनाहो पे बहुत नाज़
इंसान हूँ मै खुद को फरिश्ता नही कहता
4 Comments:
पत्रिका पर आ कर बहुत अच्छा लगा. आज पहली बार आया हूं अब कोशिश रहेगी बार-बार आने की.
रचना अच्छी थी. बहुत अच्छी नहीं कह सकता सो माफ करीएगा!!
wow achi rachan he
aap ko badhai
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
गहराई जो दी तुने मेरे ज़ख्म ए जिगर को
मै इतना समुंद्र को भी गहरा नही कहता
saral shabdon men kafi gahri baat kahi hai....
nice
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