जो रहते हैं सदा दिल में, उन्हें ढूँढा नही करते,
जो रच जाएँ राग-ओ-पय में, उन्हें सोचा नही करते।

बहारों के घने साए में तल्खी भी है, चुभन भी है,
ग़मों की धुप का तुमसे मगर शिकवा नही करते।

नही आते कभी भी लौट कर गुज़रे हुए मौसम,
बरसते बादलों की आस में तरसा नही करते।

ताजसुस और बढ़ता है मचल जाते हैं सुन कर हम,
अचानक प्यार की बातों का रुख मोड़ा नही करते।

तेरी नज़र-ऐ-इनायत से हुए जाते हैं जो घायल,
उन्हें कातिल निगाहों से देखा नही करते।

बिछड़ के मुझ से तुम भी जी न पाओगे,
सच कहता हूँ मेरे बिन बहुत पछताओगे।
बर्दाश्त का पैमाना है मेरा भी बहोत वैसे,
बोलो कितना रुलाओगे, बोलो कितना सताओगे।


यादें मेरी सताएंगी, बातें मेरी रुलायेंगी,
मेरी निगाहों से तुम ख़ुद को कहाँ तक छुपाओगे।
साया भी हुआ करता है क्या कभी इंसान से जुदा,
तुम जहाँ भी जाओगे, साथ मुझको पाओगे।


कर देगा मेरा खलूस ये हालत तुम्हारी,
राज़-ऐ-दिल जुबां तक लाओगे, पर कह न पाओगे।
करता हूँ इंतज़ार उस लम्हें का मैं,
जब मुझे अपना कह कर पास बुलाओगे।

पहले बंगलौर, अहमदाबाद, सूरत, दिल्ली और अब फिर मुंबई । और आगे हो सकता है की उनका अगला निशाना वाराणसी या कोई और शहर हो। ऐसी खबरें अब धीरे-धीरे आम बात होती जा रही हैं। जिस तरह एक के बाद एक आतंकवादी देश की किसी भी कोने में बम बिस्फोट कर रहे हैं। ऐसा लगता है की वर्तमान सरकार में आतंकवाद से लड़ने की शत प्रतिशत इच्छा शक्ति का आभाव है। सुरक्षा एजेंसियां भी वक्त रहते उन्हें रोकने में सफल नही हो पा रही हैं। भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई पर बुधवार रात अब तक का सबसे बड़ा चरमपंथी हमला हुआ है. पूरी मुंबई के कई इलाक़ों में छोटे-छोटे ग्रुपों में चरमपंथियों ने गोलियाँ और बम बरसाने शुरू कर दिए. छत्रपति शिवाजी स्टेशन, ताज होटल, ओबरॉय होटेल, मेट्रो सिनेमा, डॉक, विले पार्ले समेत कई इलाक़ों में एक ही समय पर हुई सिलसिलेवार गोलीबारी हुई और कई जगह धमाके हुए. इससे पूरी मुंबई में अफ़रातफ़री का माहौल है. इस हमले में अभी तक १०१ लोग मारे गए हैं और लगभग २८७ लोग घायल हुए हैं। विभिन्न समाचार माध्यमों को भेजे ईमेल में डेकन मुजाहिदीन नामक संगठन ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली है.

बुधवार की रात जब हमलों की शुरुआत हुई तो मुंबई में अफ़रातफ़री मच गई और कई घंटों तक कोई भी यह बताने की स्थिति में नहीं था कि आख़िर मामला क्या है। टेलीविज़न पर दिखाई गई तस्वीरों में पुलिस अधिकारियों को सड़क पर हाथ में रिवॉल्वर और बंदूक लिए गाड़ियों की तलाशी लेते हुए दिखाई पड़े. मुंबई पुलिस ने इसे 'सुनियोजित आतंकवादी हमला' बताया है.

आज कल भारत में 'आतंकवादी' घटनाएँ क्यों हो रही हैं? क्या इन घटनाओं को आतंकवाद कहना भी चाहिए या ये महज़ क़ानून और व्यवस्था की घटनाएँ जिन्हें कुछ निजी स्वार्थों की वजह से 'आतंकवाद' का नाम दे दिया जाता है। भारत में पिछले कुछ समय पर नज़र डालें तो अनेक ऐसी घटनाएँ हुई हैं जो भारत की क़ानून और व्यवस्था के साथ-साथ राजनीतिक नेतृत्व और सरकार के लिए भी चुनौती हैं लेकिन क्या इस चुनौती का सामना करने के लिए समुचित रणनीति पर ग़ौर किया जा रहा है या फिर इन हालात को राजनीतिक स्वार्थों के लिए भुनाने की कोशिश की जा रही है?

इतना ही नहीं, एक तबका इन्हें हिंदू और मुसलमानों से भी जोड़कर देखने लगा है. मगर इसमें धर्म को खींचना ग़लत है. जो लोग क़ानून के ख़िलाफ़ जो भी कार्रवाई करते हैं वे सब क़ानून की नज़र में अपराधी हैं और उनके साथ उसी के अनुसार बर्ताव होना चाहिए. इसमें हिंदू या मुसलमान होने की कोई बात ही नहीं है. क़ानून की नज़र में अगर किसी ने कोई जुर्म किया है तो उसी के अनुसार उनका दर्जा तय होना चाहिए.
आतंकवाद का इस्तेमाल किसी राजनीतिक उद्देश्य के लिए किया जाता था लेकिन अब इसकी परिभाषा कुछ बदल गई है, आतंकवाद का मतलब होता था किसी राजनीतिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए की गई विध्वंसक कार्रवाई लेकिन अब इसका मतलब कुछ बदल सा गया है. भारत में जो बम विस्फोट की घटनाएँ हो रही हैं उनका राजनीतिक लक्ष्य सरकार को अस्थिर करना हो सकता है. इन घटनाओं को तथाकथित इस्लामी आतंकवाद या हिंदू आतंकवाद से नहीं जोड़ा जा सकता। ऐसे माहौल में किसी घटना की सच्चाई क्या है, उसे जानने का इंतज़ार करने के बिना बहुत से लोग आनन-फानन में कोई राय बना लेते हैं जिसे देश और समाज का शायद इतना बड़ा नुक़सान हो जाता है जिसकी भरपाई करना अगर असंभव नहीं तो बेहद मुश्किल ज़रूर होता है. क्या मीडिया को ऐसे माहौल में संयम बरतने की ज़रूरत है.

मुसलमान भारत का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है और उनके एक तबके में ये भावनाएँ पनप रही हैं कि इस समुदाय को दबाने की कोशिश की जा रही है और ऐसा जब भी होता है वो राजसत्ता की मदद से होता है। चिंता की बात ये है कि राजनीतिक नेतृत्व की उदासनीता की वजह से एक धर्मनिर्पेक्ष देश में समाज सांप्रदायिक रास्तों पर बँटता नज़र आने लगता है. इसके लिए राजनीतिक स्वार्थ ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं यह एक ख़तरनाक प्रवृत्ति है जिसे रोकना होगा. मेरी समझ में राजनीतिक नेतृत्व ही सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार है. जब भी कोई घटना होती है तो उन सबका ध्यान सिर्फ़ वोट की राजनीति पर होता है. अगर वोट की राजनीति ना हो तो, बहुत सारी घटनाएँ हो ही नहीं. मुझे सबसे बड़ा अफ़सोस यही है कि जिनके हाथ में क़ानून को लागू करने की ज़िम्मेदारी है, वो ऐसी कोई घटना होने क्यों देते हैं और अगर कोई घटना हो जाती है तो जो गुनहगार हैं उन्हें पकड़कर सख़्ती से सज़ा क्यों नहीं दिलवाते हैं.

गूगल पर टाइप कीजिए ‘बम कैसे बनाना है’ और आपको वेबसाइट की सूची मिल जाएगी जिसपर आपको बम बनानी की सामग्री, माप, दिशानिर्देश, यानी कुल मिलाकर किसी को मारने के लिए सारे तरीके बारीकी से मिल जाएंगे। लेकिन, सवाल यह खड़ा होता है कि लगातार हो रही आतंकवादी घटनाओं के बावजूद ऐसी जानकारियां क्यों आसानी से उपलब्ध है? ऐसे खतरनाक विषय पर जिन सर्वर के जरिए भारत में सारी इंटरनेट सामग्रियां पहुंचाई जाती हैं, उन इंटरनेट सेवा प्रदाताओं का कहना है कि उन्हें इस चीज को हटाने के लिए दिशानिर्देश की जरूरत है। इंटरनेट सुरक्षा विशेषज्ञ राजेश छारिया का कहना है कि, “हम ऐसी वेबसाइट को पांच मिनट में बंद कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए हमें सरकारी आदेश की जरूरत है”। तो फ़िर सरकार ऐसे आदेश जारी करने में देर क्यो कर रही है? अब यह यह महसूस किया जा रहा हैं कि आतंकवादी घटनाएं केवल राज्यों का ही मामला नहीं है तथा केन्द्र को इस खतरे से निपटने के लिए राज्य सरकारों से पूरा सहयोग करना चाहिए।

अगर हम इस बहस को सीमित करते हुए यह कहें कि दरअसल यह कोई 'आतंकवाद' नहीं बल्कि क़ानून और व्यवस्था का एक मामला है तो शायद कुछ ग़लत नहीं होगा क्योंकि अनेक जानकारों का मानना है कि हर समस्या की कोई ना कोई जड़ होती है और उसमें हिंदू- मुसलमान या ईसाई रंग ढूंढना ग़लत है। ऐसे में क्या राजनीतिक नेतृत्व की ज़िम्मेदारी इस ख़तरनाक मानसिकता को बढ़ने से रोकने की नहीं है। क्या सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि समस्या की जड़ को समझने की कोशिश करे और उसी के अनुसार कोई ऐसा रास्ता निकाला जाए जिससे समाज को बँटने से रोका जा सके. भारत के शीर्ष नेता इसे कब तक हल कर पायेंगे? ...इसी तरह के अनगिनत सवाल मेरे मन में आज उठ रहे हैं। और शायद ...........भारत की आम जनता के मन में भी उठते होंगे। ऐसे में एक आम आदमी क्या करे। उसका क्या कसूर है। हर जगह वो ही निशाना क्यो बनता है?आतंकवाद और आतंकवादियों का सिवाय आतंक और दहशत फैलाने के अलावा और कोई धर्म नही होता। उन्हें किसी के विकास और समृद्धि से कोई लेना-देना नही है। आख़िर यह बात लोगों के समझ में कब आएगी?

आज-कल तेज़ी से बढ़ रही आतंकवादी गतिविधियों के देखकर ऐसा लगता है जैसे पूरे देश पर हमला हो रहा है। शायद अब वह समय आ गया है की जब केन्द्र सरकार को देश की आतंरिक सुरक्षा को लेकर कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए। एक संघीय जाच एजेंसी होनी चाहिए। जिसे हर तरह से जाच करने की आज़ादी मिलनी चाहिए।सभी जाच एजेंसिया एक कमांड के तले कार्य करे तो बेहतर परिणाम की उम्मीद की जा सकती है। केन्द्र सरकार को चाहिए की वह सभी राज्यों के साथ मिलकर एक ऐसी अंतर्राज्यीय जांच एजेंसी का निर्माण करे जो हर तरह से परिपूर्ण हो। जो पूरे देश में एक समान रूप से लागू हो। या फिर, भारत की सर्वोच्च जाच संस्था सी बी आई को अमेरिका की जाच संस्था ऍफ़ बी आई जैसी पावर और अधिकार मिलने चाहिए। ताकि वह किसी भी प्रकार के राजनैतिक दबाव में न आए और स्वतंत्र और निष्पक्ष जाच करे। भारत की पुलिस तंत्र को और मजबूत करने की बेहद ज़रूरत है। हर राज्य की पुलिस और केन्द्रीय खुफिया एजेंसियों में अच्छा और फास्ट तालमेल होना चाहिए। वैसे तो भारत ही नही पूरा विश्व आतंकवाद से जूझ रहा है, लेकिन चूँकि भारत सदा से शान्ति का पुजारी रहा है, और वो आगे भी विश्व समुदाय को शान्ति और अहिंसा का मार्ग दिखाता रहेगा। कुछ लोग इसे भारत की कमजोरी समझते हैं। पर हमारी सरकार को कुछ ऐसा करना चाहिए की विश्व समुदाय इसे भारत को अपनी कमजोरी के रूप न देखे। नही तो देश की स्थिति दिनों-दिन और भी बदतर होती जायेगी और आम जनता में भय और दहशत का माहौल व्याप्त हो जाएगा। लेकिन ऐसा लगता हैं कि केंद्र और राज्य सरकारों की इच्छा शक्ति मे ही कुछ कमी है।


उस को मेरा हल्का सा एहसास तो है,
बेदर्द ही सही वो मेरी हमराज़ तो है।

वो आए न आए मेरे पास लेकिन,
सिद्दत से मुझे उसका इंतज़ार तो है।

अभी नही तो क्या हुआ, मिल ही जायेगी कभी,
मेरे दिल में उससे मिलने की आस तो है।

प्यार की गवाही मेरे आंसुओं से न मांगो,
बरसती नही आँखें मगर दिल उदास तो है।

रंग-ओ-खुशबू कहाँ बहार में है,
और किसी शेह में इस कदर है कहाँ,
जो इत्मिनान और सुकून प्यार में है।
उनका हासिल भी लुत्फ़ हो शायद,
कहाँ वो लुत्फ़ जो इंतज़ार में है।
साज़ तो दिल से आ निकलता है,
भला कहाँ वो हुनर तार में है।

होठों पे मोहब्बत के फ़साने नही आते
साहिल पे समुन्दर के हजाने नही आते
पलकें भी चमक उठी हैं सोते ही हमारी
आंखों को अभी ख्वाब छुपाने नही आते।


दिल उजड़ा है एक सराए की तरह है
अब लोग यहाँ रात जगाने नही आते
यारों नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
अब याद संजोये दर्द पुराने नही आते।


उड़ने दो अभी परिंदों को खुली हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते
इस शहर के बादल तेरी जुल्फों की तरह हैं
ये आग लगाते हैं पर बुझाने नही आते।


अहबाब भी घरों की तरह अदा सीख गए हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नही आते।

आंखों को अभी ख्वाब छुपाने नही आते।

होठों पे मोहब्बत के फ़साने नही आते।

दुनिया भर में विख्यात बिहार के सोनपुर का हरिहरक्षेत्र पशु मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है और यहाँ अनेक देशों के लोग घूमने आते हैं. कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होने वाले इस वार्षिक मेले में विदेश से भी लोग आते हैं.

इस मेले में अगर घोड़े की क़ीमत तीन लाख रुपए तक है तो यहाँ बिकने वाले समोसों की क़ीमत भी अपने आप में एक रिकार्ड है। कई बार ख़रीददार अपनी शान का प्रदर्शन करने के लिए भी मुँहमांगी क़ीमत अदा करते हैं। क़रीब दो वर्ष पहले रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के घोड़े 'चेतक' को ख़रीदने के लिए बोली लगी और वह एक लाख एक हज़ार रुपए में बिका. इस वर्ष एक विक्रेता ने अपनी एक घोड़ी क़ीमत तीन लाख तय की है तो वैशाली के कौशल किशोर सिंह के घोड़े की बोली एक लाख सत्तर हज़ार रुपए लग रही है.

सैलानी यहाँ जो भी खरीदारी करते हैं और उसकी जो क़ीमत चुकाते हैं, वह सामान्य से कई गुना ज़्यादा होती है पर उनके लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है। मेले की भीड़-भाड़ में अपनी दुकान सजाए दुकानदारों का अपना मत है। वे कहते हैं की मेले में बिकने वाली चीज़ों की क़ीमत अगर सामान्य हो तो ख़रीददार के लिए इसमें कोई ख़ास आकर्षण नहीं होता और दूसरी बात यह है कि हमारी भी कोशिश होती है कि हम कुछ अधिक कमा सकें लेकिन अगर चीज़ों के दाम बिल्कुल असमान्य हों तो यह किसी भी तरह अच्छी बात नहीं है।

गंगा और गंडक के मुहाने पर लगने वाले इस मेले का इतिहास राजा चंद्रगुप्त मौर्य के ज़माने से जोड़ा जाता है. कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपनी सेना के लिए हाथियों की ख़रीददारी गंगा के इसी क्षेत्र से करते थे. हालाँकि आज भी इस मेले में हाथी और घोड़े काफ़ी संख्या में ख़रीद-बिक्री के लिए लाए जाते हैं लेकिन वन्यजीवों की ख़रीददारी पर सख़्त क़ानूनी शिकंजे के कारण रफ़्ता-रफ़्ता इस मेले का आकर्षण भी कम हुआ है.
लेकिन राज्य सरकार अब इस कोशिश में जुटी है कि इस मेले की पुरानी रौनक़ फिर से बहाल हो सके. इससे बिहार के पर्यटन उद्योग के साथ-साथ सोनपुर के विकास को बढावा मिलेगा और स्थानीय जनता को भी फायदा पहुचेगा।


आकर मेरी कब्र पे तुने जो मुस्कुरा दिया,
बिजलियाँ चमक उठी, सारा बदन जला दिया।
जीते जी न पूछा हाल-ऐ-दिल कभी,
अब आए हो पूछने जब ख़ाक में मिला दिया ?

हमें भी मिले कोई चाहने वाला,
हम तो प्यार के लिए बेकरार बैठे हैं।
कोई वादा करे जो सपनो में आने का,
हम तो उम्र भर सोने को तैयार बैठे हैं।

दुनिया का हर शौक पाला नही जाता,
कांच के खिलौनों को यूँ उछाला नहीं जाता।
मेहनत करने से मुश्किले हो जाती हैं आसान, हर काम तकदीर पे डाला नहीं जाता।

After having failed his exam in "Logistics and Organization" , a student goes and confronts his lecturer about it.
Student: "Sir, do you really understand anything about the subject?"
Professor: "Surely I must. Otherwise I would not be a professor!"
Student: "Great, well then I would like to ask you a question. If you can give me the correct answer, I will accept my mark as is and go. If you however do not know the answer, I want you give me an "A" for the exam. "
Professor: "Okay, it's a deal. So what is the question?"
Student: "What is legal, but not logical, logical, but not legal, and neither logical, nor legal?"
Even after some long and hard consideration, the professor cannot give the student an answer, and therefore changes his exam mark into an "A", as agreed.
Afterwards, the professor calls on his best student and asks him the same question.
He immediately answers: "Sir, you are 63 years old and married to a 35 year old woman, which is legal, but not logical. Your wife has a 25 year old lover, which is logical, but not legal. The fact that you have given your wife's lover an "A", although he really should have failed, is neither legal, nor logical."



कलम थी हाथ में, लिखना सिखाया आपने,
ताकत थी हाथ में, हौसला दिलाया आपने,
मंजिल थी सामने, रास्ता दिखाया आपने,
हम तो अजनबी थे, दोस्त बनाया आपने।

दुनिया बदल जाए, तुम न बदलना,
मुश्किलों में हो जब भी, याद हमें कर लेना.
मांगे भी आपसे तो क्या मांगे,
देना कुछ चाहो तो बस मुस्कुरा देना।

रहने दे आसमा, जमीं की तलाश कर,
सब कुछ यहीं है न कहीं और तलाश कर।
हर आरजू पूरी हो तो जीने का क्या मज़ा,
जीने के लिए बस एक कमी की तलाश कर।

तुम्हे लाखो की भीड़ में पहचानता है कोई,
दिन रात खुदा से तुम्हे मांगता है कोई,
तुम ख़ुद से वाकिफ नही होंगे इतने,
तुम्हे तुमसे भी ज़्यादा जानता है कोई।

आंसुओ को बहुत समझाया, तन्हाई में आया न करो,
महफिल में हमारा मज़ाक उड़ाया न करो,
इसपर आँसू तड़प कर बोले...
इतने लोगो में आपको तनहा पाता हूँ, इसीलिए चला आता हूँ।

रौशनी होते हुए भी दिल में अँधेरा है,
इन अंधेरो में किसी का बसेरा है,
आना कभी रोशन करना हमारी महफिल को,
देखना दिल की हर दिवार पे नाम तेरा है।

ज़ख्म इतने गहरे थे, इज़हार क्या करते,
हम ख़ुद निशाना बन गए, वार क्या करते,
मर गए हम मगर खुली रही आँखें,
अब इससे ज्यादा उनका इन्तिज़ार क्या करते.


खुदा करे हमारी दोस्ती ऐसी हो,
चोट तुम्हे लगे और दर्द मुझे हो,
दिल तुम्हारा धड़के और धड़कन मेरी हो,
नौकरी तुम करो और सेलरी मेरी हो।

हर समुन्दर में साहिल नहीं होता,
हर जहाज़ में मिसाइल नहीं होता,
अगर धीरुभाई का सपना नहीं होता,
तो हर %$$$ के पास मोबाइल नहीं होता।

ख़ुद को कर बुलंद इतना..
कि हिमालय की चोटी पे जा पहुंचे..
और खुदा तुमसे पूछे..
‘अबे गधे… अब उतरेगा कैसे???

१४ फ़रवरी को हम कही लेकर जायेंगे।



बताओ कहा?
...


...
अरे सोचो!
...


...
सोचो न!
...
चलो ठीक है बता देते हैं.
...


...
पोलियो ड्राप पिलाने!!
….माय स्वीट बेबी।


चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों….
न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल नवाजी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खडाए मेरी बातों में
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कसमकस का राज़ नज़रों से
तारुफ़ रोग हो जाए तो उस को भुलाना बेहतर
तालुक बोझ बन जाए तो उस को तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे तकमील तक लाना न हो मुमकिन
उसे एक खूब सूरत मोढ़ दे कर छोड़ना अच्छा
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश कदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं के ये जलवे पराये हैं
मेरे हमराह भी रुस्वाइयां हैं मेरे माझी की
तुम्हारे साथ भी गुजरी हुई रातों के साए हैं।
चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों…..


याद आता हैं बहुत वो गुज़रा हुआ ज़माना
वो स्कूल की लाइफ वो बचपन का याराना
लेफ्ट राइट कहते हुए हाथों को उठाना
वो इकबाल की दुआ वो असम्बली का तराना

वो घंटी बजते ही क्लास्सेस से निकलना
वो लंच में जा कर छोले चाट खाना
वो गर्मियों की छुट्टियों में घुमने को जाना
वो मस्तियाँ करना और मौज मनाना

हर खुफ्फ़ से आजाद ज़िन्दगी गुज़रना
वो बात बात पर अम्मी से जिद करना
वो गलतियों पे मासूमियत से सॉरी कहना
वो गुस्से में अम्मी का डाटना


वो दादी को बात बात पर सताना
और दादी का शफ़क़त से समझाना
वो रात को होमवर्क के वक़्त बहाने करना
और क्लास में मिस का मुर्गा बनाना

मुड़कर कर देखता हूँ तू सोचता हूँ
क्या ज़माना था वो जो गुज़र गया
वो ज़माना कितना सुहाना था
वाकई क्या ज़माना था...

जम्मू कश्मीर में aaj चार ज़िलों की विधानसभा ki 10 सीटों के लिए मतदान हो रहा है. ये ज़िले हैं पुँछ, बांदीपुरा, करगिल और लेह. इन जगहों पर सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं और सिर्फ़ पुँछ में ही अर्धसैनिक बलों की 80 कंपनियाँ तैनात की गई हैं.
भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठन ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ़्रेंस और कुछ अन्य नेता विधानसभा चुनावों का बहिष्कार कर रहे हैं. हालाँकि, हुर्रियत ने वर्ष 2002 के चुनावों का भी बहिष्कार किया था लेकिन इस बार संगठन ने जगह-जगह पर रैलियाँ आयोजित कर अपने इस कदम के बारे में लोगों को बताने और उन्हें अपनी बात पर राज़ी करने का प्रयास किया है. उनका मानना है कि बिना कश्मीर समस्या के हल के क्षेत्र में शांति बहाल नहीं हो सकती और चुनाव केवल ध्यान बाँटने का षड्यंत्र हैं.
कट्टरपंथी माने जाते सईद अली शाह गीलानी भी चुनावों का विरोध कर रहे हैं और चुनावों को बेमानी मानते हैं। वे त्रिपक्षीय वार्ता हो और भारत और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में जनमत संग्रह के हक़ में हैं.

अलगाववादियों और चरमपंथियों के बारे में नेशनल कॉन्फ़्रेंस ने कहा है कि 'यदि वे चाहें तो चुनावों का बहिष्कार कर सकते हैं लेकिन उन्हें ज़ोर-ज़बर्दस्ती से किसी को रोकने का हक़ नहीं है.'

पर्यवेक्षकों का कहना है की बांदीपुरा और सोनावाड़ी विधानसभा क्षेत्रों में लोग मतदान के लिए घरों से निकल रहे हैं और ख़राब मौसम के बावजूद मतदान की गति अच्छी है. अलगाववादियों के चुनाव बहिष्कार की अपील का कश्मीर घाटी में असर नज़र नहीं आ रहा है जो इस बात को साबित करता है की जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न हिस्सा तो है ही, कश्मीर की जनता भी भारतीय लोकतंत्र में बिस्वास रखती है और वो भारत के साथ है।



टुकडों में बिखरा हुआ
किसी का जिगर दिखायेंगे
कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे।

होंठ काँप जाते हैं
थरथराती हैं जुबां
टूटे दिल से निकली हुई
आहों का असर दिखायेंगे।

कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे।

कहीं तस्वीर हैं तेरी
कहीं लिखा हैं तेरा नाम
मंदिर-मस्जिद जितना पाक
एक दीवार-ओ-दर दिखायेंगे।

कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे।


एक पोछ पाता नहीं
एक और छलक जाता हैं
पलकों से दामन तक का
अश्कों का सफ़र दिखायेंगे।

कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे।

सवाल:-
एक वादा था हर वादे के पीछे,
तू मिलेगा हर गली हर दरवाजे के पीछे,
तुमसे प्यार बहुत किया था,
मगर एक तू ही न था मेरे जनाजे के पीछे .

जवाब:-
एक वादा था हर वादे के पीछे ,
मै मिलूँगा हर गली हर दरवाजे के पीछे,
तुमने ही मुड़कर नही देखा एक जनाजा था,
आपके जनाजे के पीछे ।

By... Anu
चाँद तारों से सजी रात भला क्या मांगे,
जिस को मिल जाए तेरा साथ भला क्या मांगे।
लब पे आई न दुआ और कुबूल हो भी गयी,
अब दुआओं में उठे हाथ भला क्या मांगे।

जिसके ख़्वाबों की हो तकमील उसे क्या ग़म हो,
मिल गयी जिस को कायनात, भला क्या मांगे।

मंजिल-ऐ-इश्क से आगे भी क़दम क्या जाए,
रंग-ऐ-मेहँदी से सजे हाथ भला क्या मांगे।

पा लिया जिस के अंधेरों ने रौशनी का सबब,
उस के महके हुए जज़्बात भला क्या मांगे।

दोस्त वही है जो आपको आपना मान सके,

आपके हर गम को बिन कहे जान सके।

आप चल रहे हो तेज़ बारिश में फिर भी,

पानी में आपके आंसू पहचान सके।

ये आईने से अकेले में गुफ्तगू क्या है
जो मैं नहीं तो फिर ये तेरे रूबरू क्या है
इसी उम्मीद पे काटी है ज़िन्दगी मैने
काश वो पूछते मुझसे कि आरजू क्या है।

वक्त गुज़रता रहा पर सांसें थमी सी थी,
मुस्कुरा रहे थे हम, पर आँखों में नमी सी थी,
साथ हमारे ये जहाँ था सारा,
पर न जाने क्यूँ कुछ कमी सी थी....

आंखों की जुबाँ वो समझ नही पाते,
होठ मगर कुछ कह नही पाते।
अपनी बेबसी किस तरह कहे...

कोई है जिसके बिना हम रह नही पाते।


यादें जब दिल में नहीं रूह में बस जाती हैं,
बादलों कि तरह आँखे भी बरस जाती हैं !
वो अगर तुम से खफा हैं तो खफा मत समझो,
लड़कियां प्यार में लड़कों पे बरस जाती हैं !

रोज मुझको तेरे आने की खबर मिलती हैं,
रोज मुझको मेरी तन्हाइयां डस जाती हैं !
तनहा रहता हूँ तो बीमार नज़र आता हूँ,
साथ रहते हैं तो बाछें मेरी खिल जाती हैं !

हुस्नवालों का भरोषा नहीं कीजिये साहब,
दिन बदलते हैं तो नज़रें भी बदल जाती हैं!

वो हमें चाहें न चाहें, ये और बात हैं,

मेरी चाहत तो आंखों से साफ़ झलक जाती हैं।


आज हम बिछड़े हैं तो कितने रंगीले हो गए,
मेरी आँखें सुर्ख तेरे हाथ पीले हो गए।
कब की पत्थर हो चुकी थी आँखें मगर,
छू के देखा तो मेरे हाथ गीले हो गए।

मस्त हवा का झोका पागल अच्छा लगता है,
बल खता लहराता आचल अच्छा लगता है !

वो शरमाई उसको एक दिन आईना यूँ बोला,
आप की आँखों में यह काजल अच्छा लगता है !

भीगी पलकें भीगा दामन भीगा भीगा ये आँचल,
मौसम-ऐ-गम में जल थल जल थल अच्छा लगता है !

सूखे लबों पे दुआ नमी सी जब जब आती है,
सावन की रिमझिम सा बादल अच्छा लगता है !

उसकी गली में मौत मिले तो सौ सौ बार मरुँ,
एक जनम में उसको पाना अच्छा लगता है !
...to whom i miss her...pal...


आँख से आँख मिला, बात बनाता क्यूँ है।
तू अगर मुझसे खफा है तो छुपाता क्यूँ है।
गैर लगता है, न अपनों की तरह मिलता है,
तू ज़माने की तरह मुझको सताता क्यूँ है।


वक्त के साथ हालात बदल जाते है।
यह हकीकत है मगर मुझको सुनाता क्यूँ है।
एक मुद्दत से जहाँ काफिले गुज़रे ही नही,
ऐसी राहों पे चिरागों को जलाता क्यूँ है।


अंगूर के बीज भूलने की बीमारी अल्जाइमर को रोकने में सहायक पाए गए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि जिन लोगों के मस्तिष्क का ‘हिप्पोकैंपस’ अपेक्षाकृत बड़ा होता है, वे लोग अल्जाइमर जैसे घातक रोग की चपेट में कम आते हैं। ‘हिप्पोकैंपस’ लंबे समय तक याददाश्त को बनाए रखने में सहायक होता है। हाल ही में अमेरिका के ‘आर्गेन हेल्थ एंड साइंस विश्वविद्यालय’ के शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन के माध्यम से यह जानकारी दी है। शोधकर्ताओं ने इस विषय के तहत, बारह तेज याददाश्त वाले मृत लोगों के दिमाग का गहनता से अध्ययन किया था।

इन लोगों में पोस्टमार्टम के बाद अल्जाइमर रोग के लक्षणों के बारे में पता चला था। अध्ययनकर्ता डेनिज इर्टेन-लियोन्स ने बताया कि अध्ययन में 23 ऐसे लोगों को भी शामिल किया गया जिनकी याददाश्त और दिमाग तो उक्त लोगों की भांति तेज था। लेकिन इन लोगों के अल्जाइमर रोग से पीड़ित होने के बारे में मरने से पहले ही पता चल गया था। अध्ययनकर्ताओं को ज्ञात हुआ कि जिन लोगों में पोस्टमार्टम के बाद अल्जाइमर का पता चला था उनके दिमाग का ‘हिप्पोकैंपस’ भाग अपेक्षाकृत 20 गुना बड़ा था। अल्जाइमर से पीड़ित व्यक्ति का दिमाग काफी कमजोर हो जाता है। वह अपनी याददाश्त भी खोने लगता है।

मानव याददास्त को बढ़ाने के लिए प्रयास अब भी जारी हैं।
फ्लिंडर्स विश्वविद्यालय के जिन फु झाउ के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक समूह ने चूहे पर किए प्रयोग में पाया कि अंगूर के बीज के रस को भोजन के रूप में देने से दिमाग में ‘अमीलायड प्रोटीन’ का बनना रुक जाता है। चूहों पर इस दवा के सफल प्रयोग से उत्साहित संस्थान ने अमेरिका स्थित पेटेंट कार्यालय में इसके पेटेंट के लिए दावा किया है। शिकागो में ‘एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी’ के सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए निष्कर्षो में शोधकर्ताओं ने बताया है कि विटामिन ई का सेवन ‘अल्जाइमर’ (भूलने की बीमारी) के मरीजों को लंबे समय तक जीवित रखने में सहायक है।
राष्ट्रीय वनस्पति शोध संस्थान (एनबीआरआई) के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी हर्बल (जड़ी बूटियों से बनी) टॉनिक विकसित करने का दावा किया है जो भूलने की बीमारी में लाभदायक होगी। एनबीआरआई के एक औषधि विज्ञानी और इस विषय पर शोध कर रहे समूह के सदस्य सी.वी.राव ने आईएएनएस को बताया कि, “हमारा यह हर्बल नुस्खा याददाश्त बढ़ाने में मदद करेगा और इस तरह यह अल्जाइमर्स का इलाज करने में सहायक होगा”। हॉस्टन के ‘ब्लेयर कालेज ऑफ मेडिसिन’ के शोधकर्ताओं ने बताया कि अल्जाइमर की बीमारी के बारे में जाना जाता है कि इस बीमारी के इलाज की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है और यह मरीजों के जीवन जीने की अवधि को भी कम देता है, लेकिन अब वे विटामिन ई के सेवन से लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।

एक अध्ययन से पता चला है कि दर्द-निवारक दवाओं की एक नई श्रेणी याददाश्त को प्रभावित कर सकती है। ब्राउन विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार कुछ खास किस्म की आधुनिक दर्द निवारक दवाएं ‘टीआरपीवीआई’ नामक ‘रिसेप्टर’ (ग्रहणनलिका) का मार्ग अवरूद्ध कर देती हैं, जो स्मरण-शक्ति के लिए जिम्मेदार होती हैं। ‘न्यूरॉन’ पत्रिका के ताजा अंक में इस शोध के बारे जानकारी देते हुए बताया गया है कि टीआरपीवीआई के ऊतकों को ‘एकोंपलिया’ नामक मोटापा घटाने वाली दवा से भी नुकसान पहुंचता है।
गौरतलब है कि यह दवा अमेरिका के अलावा दुनिया भर में प्रचलित है। अमेरिका इस दवा को मान्यता नहीं दे रहा है क्योंकि उसका मानना है कि यह दवा अवसाद और आत्महत्या को बढ़ाने में भी जिम्मेदार होती है। अध्ययन के सह-लेखक वेलोरी पेवलिक के मुताबिक, “यह अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी हाल के अध्ययन में पाया गया था कि हृदय के रोगियों के लिए विटामिन ई का ज्यादा सेवन नुकसानदायक है।”शोधकर्ताओं ने शोध के दौरान अल्जाइमर से ग्रस्त 847 मरीजों को पांच साल तक विटामिन ई का सेवन कराया। उन्होंने पाया कि जिन दो-तिहाई मरीजों ने अपनी दवा के साथ दिन में दो बार विटामिन ई का सेवन किया, उनकी मृत्यु की संभावना 26 फीसदी तक कमी पाई गई।

मस्तिष्क के इलाज में इस्तेमाल होने वाली अन्य दवाओं से इतर यह हर्बल टॉनिक मस्तिष्क के रक्तसंचार अवरोधों को दूर करता है और मस्तिष्क और तंत्रिकाओं के बीच संचार को कायम करता है। अमीलायड बीटा प्रोटीन’ के अधिक उत्पादन या उसे नष्ट करने में शरीर की अक्षमता के कारण दिमाग में ग्रंथियां बनने लगती हैं, जो अल्जाइमर का प्रमुख कारण बनती हैं। अमीलायड की अधिकता के कारण शिराओं के जोड़ क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इस कारण दिमाग में सूजन आ जाती है। परिणामस्वरूप रोगी की संवेदनशक्ति समाप्त हो जाती है। इसलिए इस अवस्था से निपटना हो तो अंगूर तो खाइए अंगूर के बीज का भी सेवन करें।


वो सितारा जो आसमान में है
मेरी पलकों के दरमियाँ में है
किस तरह हुए दिल के टुकड़े
तीर तो अब तक गुमान में है।
कोई सूरत नही बहलाने की
हर घड़ी वो जो मेरे धयान में है
वो कहाँ किस्सा-ऐ-मोहब्बत में है
जो मज़ा अपनी दास्ताँ में है।
इसने जब से नसीब-ऐ-दिल बदला
ज़िन्दगी अपनी इम्तेहान में है
दिल में यूँ तो कोई नही
एक साया पर मकाम में है।



तुम्हे जफा से यूँ न बाज़ आना चाहिए था
अभी कुछ और मेरा दिल दुखाना चाहिए था
तवील रात के पहलू में कब से सोये है
नवीद-ऐ-सुबह तुझे जग जाना चाहिए था।


बुझे चिरागों में कितने है जो जले ही नही
सवाद-ऐ-वक्त इन्हे जगमगाना चाहिए था
अजब न था के क़फ़स साथ ले के उड़ जाते
तड़पना चाहिए था फदफदाना चाहिए था।


यह मेरी हार के कार्य-ऐ-जान से हारा मगर
बिछड़ने वाले तुझे याद आना चाहिए था
तमाम उम्र की आसूदगी-ऐ-विसाल के बाद

आखरी धोखा था खाना चाहिए था।

दिल की दुनिया टूटने के बाद सब रोते थे,
हम थे की पागलों की तरह हँसते थे,
यह हल-ऐ-दिल हम कैसे सुनाते सबको कि,
तकलीफ न हो उनको इस लिए अकेले रोते थे।


बनाके अपना हमको भुलाने वाले हो तुम,
दिखाके रौशनी हमको जलाने वाले हो तुम,
अभी तक हम पुराने जख्मो से उभरे नही,
आज फिर से कोई नया दर्द उठाने वाले हो तुम,
इतनी रातें हमने आँखों में गुजारी है,
क्या आज रात मेरे खवाबो में आने वाले हो तुम।

हर दर्द हर ज़ख्म की वजह दिल है
प्यार आसान है मगर निभाना मुस्किल है।
डगर टेडी-मंदी भूलभुलैया मंजिल है
लहर बचा देती है डूबा देता साहिल है
तूफान से बना इसमे दरिया गया मिल है।


जो भूलना होता इतना आसान तो कबके हम तुझे भूल जाते,
न करते तुझसे फरियाद मिलने की, न तुझे कभी याद आते।
मिटा दिया हमने अपना सारा वजूद, तेरा प्यार पाने में,
काश के तुम भी मेरे प्यार की गहराई को कभी समझ पाते।

किया था तुमने वादा हमसे दोस्ती का ए दोस्त,
तो उस दोस्ती का कुछ रश्म- अदायगी तो तुम कर जाते।
मिटाने चलें हैं आज अपनी हस्ती इस अफ़सोस के साथ,
ज़िन्दगी कि राह में कहीं तो अपना एक मुकाम बनाते।
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ख़ुशी इतनी हो कि तुम दिखा सको,
गम बस इतना हो जिसे तुम छिपा सको,
जिंदगी में कम से कम एक दोस्त ऐसा रखना,
जिसके साथ ऑफ़ मूड में भी मुस्कुरा सको।



दिल की बातें बता देती है आँखें
धडकनों को जगा देती है आँखें
दिल पे चलता नही जादू चेहरों का कभी
दिल को तो दीवाना बना देती है आँखें।


वो हमसे बात नही करते, तो न करे
हाल सारा उनके दिल का सुना देती है आँखें
ग़म सदा रहता है, आदमी के साथ
अश्क बनकर छलका देती है आँखें।


आता है जब दौर-ऐ-जवानी,तो ए दोस्तों
सुंदर सपने जाहें में बसा देती है आँखें
माना के नींद आती है,आंखों ही के रास्ते
मगर कभी कबर नींद भी उड़ा देती है आँखें।


शुकर है खुदा ने अदा की आंखों की नेमत हमें
दर्द-ओ-ग़म सारे दिल के छुपा देती है आंखें।


Spl.For- Anu

आज कल भारत में 'आतंकवादी' घटनाएँ क्यों हो रही हैं? क्या इन घटनाओं को आतंकवाद कहना भी चाहिए या ये महज़ क़ानून और व्यवस्था की घटनाएँ जिन्हें कुछ निजी स्वार्थों की वजह से 'आतंकवाद' का नाम दे दिया जाता है. भारत में पिछले कुछ समय पर नज़र डालें तो अनेक ऐसी घटनाएँ हुई हैं जो भारत की क़ानून और व्यवस्था के साथ-साथ राजनीतिक नेतृत्व और सरकार के लिए भी चुनौती हैं लेकिन क्या इस चुनौती का सामना करने के लिए समुचित रणनीति पर ग़ौर किया जा रहा है या फिर इन हालात को राजनीतिक स्वार्थों के लिए भुनाने की कोशिश की जा रही है?
इतना ही नहीं, एक तबका इन्हें हिंदू और मुसलमानों से भी जोड़कर देखने लगा है. मगर इसमें धर्म को खींचना ग़लत है. जो लोग क़ानून के ख़िलाफ़ जो भी कार्रवाई करते हैं वे सब क़ानून की नज़र में अपराधी हैं और उनके साथ उसी के अनुसार बर्ताव होना चाहिए. इसमें हिंदू या मुसलमान होने की कोई बात ही नहीं है. क़ानून की नज़र में अगर किसी ने कोई जुर्म किया है तो उसी के अनुसार उनका दर्जा तय होना चाहिए.
आतंकवाद का इस्तेमाल किसी राजनीतिक उद्देश्य के लिए किया जाता था लेकिन अब इसकी परिभाषा कुछ बदल गई है, आतंकवाद का मतलब होता था किसी राजनीतिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए की गई विध्वंसक कार्रवाई लेकिन अब इसका मतलब कुछ बदल सा गया है. भारत में जो बम विस्फोट की घटनाएँ हो रही हैं उनका राजनीतिक लक्ष्य सरकार को अस्थिर करना हो सकता है. इन घटनाओं को तथाकथित इस्लामी आतंकवाद से नहीं जोड़ा जा सकता क्योंकि यह उस तरह का आतंकवाद है जो किसी परेशानी या हताशा की वजह से पैदा हुआ है.
ऐसे में जब भी किसी समुदाय के कुछ सदस्यों की गतिविधियों की वजह से पूरे समुदाय को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है तो उसके ख़तरनाक परिणाम होते हैं. इस प्रवृत्ति को ख़त्म किया जाना चाहिए. हाल के समय में आज़मगढ़ को आतंकवाद का गढ़ कहा जाने लगा जबकि सच्चाई ये है कि आज़मगढ़ में लाखों लोग रहते हैं और अगर उनमें से चंद लोग किन्ही विध्वंसकारी गतिविधियों में शामिल हो भी गए तो पूरे आज़मगढ़ को कैसे ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. इसी प्रकार वर्ष २००२ में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों के के लिए कुछ हिंदुओं को ज़िम्मेदार ठहराया था लेकिन इस आधार पर यह तो नहीं कहा जा सकता कि सारे गुजराती हिंदू सांप्रदायिक ही होते हैं.
कुछ हिंदुओं का कहना है कि जितनी भी 'आतंकवादी' घटनाएँ होती हैं उनमें मुसलमानों का हाथ होता है. दूसरी तरफ़ अनेक मुसलमानों का कहना है कि उनके साथ ना सिर्फ़ भेदभाव होता है बल्कि बड़े पैमाने पर उनके अधिकारों का उल्लंघन होता है. उन पर हमेशा शक किया जाता है. ऐसे माहौल में किसी घटना की सच्चाई क्या है, उसे जानने का इंतज़ार करने के बिना बहुत से लोग आनन-फानन में कोई राय बना लेते हैं जिसे देश और समाज का शायद इतना बड़ा नुक़सान हो जाता है जिसकी भरपाई करना अगर असंभव नहीं तो बेहद मुश्किल ज़रूर होता है. क्या मीडिया को ऐसे माहौल में संयम बरतने की ज़रूरत है.
मुसलमान भारत का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है और उनके एक तबके में ये भावनाएँ पनप रही हैं कि इस समुदाय को दबाने की कोशिश की जा रही है और ऐसा जब भी होता है वो राजसत्ता की मदद से होता है. चिंता की बात ये है कि राजनीतिक नेतृत्व की उदासनीता की वजह से एक धर्मनिर्पेक्ष देश में समाज सांप्रदायिक रास्तों पर बँटता नज़र आने लगता है.
इसके लिए राजनीतिक स्वार्थ ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं यह एक ख़तरनाक प्रवृत्ति है जिसे रोकना होगा. मेरी समझ में राजनीतिक नेतृत्व ही सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार है. जब भी कोई घटना होती है तो उन सबका ध्यान सिर्फ़ वोट की राजनीति पर होता है. अगर वोट की राजनीति ना हो तो, बहुत सारी घटनाएँ हो ही नहीं. मुझे सबसे बड़ा अफ़सोस यही है कि जिनके हाथ में क़ानून को लागू करने की ज़िम्मेदारी है, वो ऐसी कोई घटना होने क्यों देते हैं और अगर कोई घटना हो जाती है तो जो गुनहगार हैं उन्हें पकड़कर सख़्ती से सज़ा क्यों नहीं दिलवाते हैं.
अगर हम इस बहस को सीमित करते हुए यह कहें कि दरअसल यह कोई 'आतंकवाद' नहीं बल्कि क़ानून और व्यवस्था का एक मामला है तो शायद कुछ ग़लत नहीं होगा क्योंकि अनेक जानकारों का मानना है कि हर समस्या की कोई ना कोई जड़ होती है और उसमें हिंदू- मुसलमान या ईसाई रंग ढूंढना ग़लत है।
ऐसे में क्या राजनीतिक नेतृत्व की ज़िम्मेदारी इस ख़तरनाक मानसिकता को बढ़ने से रोकने की नहीं है. क्या सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि समस्या की जड़ को समझने की कोशिश करे और उसी के अनुसार कोई ऐसा रास्ता निकाला जाए जिससे समाज को बँटने से रोका जा सके.
कभी दुःख की आंच किसी पे न आने देना
आया हैं मेहमान कोई तो न जाने देना।
हर घडी खुद से उलझ जाती हूँ मैं
अगर कोई मनाये तो मनाने देना।
मैं जो अक्सर तन्हाई में रो पड़ती हूँ
किस्सा-ए-गम सुनाऊं तो सुनाने देना,
उसने भेजा हैं यह पैगाम बाजूर
हवा जुल्फ तुम्हारी लहराए तो लहराने देना।
हर बात का मतलब गलत न निकला करो
जब मैं समझाऊँ तो समझाने देना।

एक ग़ज़ल उसपे लिखूँ दिलका तकाज़ा हैं बहोत,
इन् दिनों खुदसे बिछड़ जाने का धड़का हैं बहोत।
रात हो दिन हो गफलत हो कि बेदारी हो,
उसको देखा तो नहीं हैं उसे सोचा हैं बहोत।
मेरे हाथों कि लकीरों के इजाफे हैं गवाह,
मैंने पत्थर की तरह खुदको तराशा हैं बहोत।

With Spl.Thanks to Vibha

अमरीका के राष्ट्रपति चुनावों में इतिहास रचते हुए डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार बराक ओबामा अमरीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉन मक्कैन ने हार मान ली है और इसे 'अमरीका के इतिहास में अश्वेत अमरीकियों के लिए इसे एक महत्वपूर्ण क्षण' बताया था. उनका कहना था, "मैं सीनेटर ओबामा का प्रशंसक हूँ. मैं आप से अपील करता हूँ कि अगले चार साल आप उन्हें सहयोग दें. लाखों अफ़्रीकी अमरीकियों के लिए एक नया दौर शुरु हुआ है. अमरीका दुनिया का सबसे महान देश है. ओबामा ने ये साबित कर दिया है कि अमरीका सभी लोगों को अपने सपने साकार करने का बराबर का अवसर प्रदान करता है."
मैक्केन के हार स्वीकार कर लेने के बाद, अपने भावुक समर्थकों को संबोधित करते हुए ओबामा ने कहा, "अमरीकी लोगों ने घोषणा की है कि बदलाव का समय आ गया है। अमरीका एक शताब्दी में सबसे गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है मैं सभी अमरीकियों को साथ लेकर चलना चाहता हूँ - उनकों भी जिन्होंने मेरे लिए वोट नहीं डाला....ये नेतृत्व का एक नया सवेरा है. जो लोग दुनिया को ध्वस्त करना चाहते हैं, उन्हें मैं कहना चाहता हूँ कि हम तुम्हें हराएँगे. जो लोग सुरक्षा और शांति चाहते हैं, हम उनकी मदद करेंगे..."

हमारे भारत देश और भारतवासियों को भी आप से (अमेरिका के नए राष्ट्रपति - ओबामा) बहुत कुछ उम्मीदें हैं...


CONGRATULATIONS!!! Obama.

Democratic Senator Barack Obama has been elected the first black president of the United States.

"It's been a long time coming, but tonight... change has come to America," the president-elect told a jubilant crowd at a victory rally in Chicago.

His rival John McCain accepted defeat, saying "I deeply admire and commend" Mr Obama. He called on his supporters to lend the next president their goodwill.

Please get this world in a new space of dream whare peace & prosperity would be forever to all.




वफ़ा के वादे वो सारे भुला गई चुप चाप।
वो मेरे दिल की दीवारें हिला गई चुप चाप।
गम-ऐ-हयात के तपते हुए बियाबान में,
वो तनहा छोड़ के मुझको चली गई चुप चाप।
मैं जिसको छूता हूँ वो ज़ख्म देते हैं,
वो फूल ऐसे चमन में खिला गई चुप चाप।

मत रोना इतना के हँसना मुश्किल हो जाए,
मत हँसो इतना के रोना मुश्किल हो जाए।
किसीको चाहना अच्छी बात है,
मगर मत चाहना इतना के,
उसे भुलाना मुश्किल हो जाए।


उनसे नैन मिला कर देखो
ये धोखा खा कर देखो।
दूरी में क्या भेद छिपा है
इसकी खोज लगाकर देखो।
किसी अकेले शाम की चुप में
गीत पुराने गाकर देखो।
आज की रात बहुत काली है
सोच के दीप जला कर देखो।
जाग जाग कर उमर कटी है
नींद के द्वार हिलाकर देखो।

बात तब की है जब हुस्न परदे में रहता था,
और इश्क उसे देखने के लिए खुदा से फरियाद किया करता था.
"ऐ खुदा, हवा का एक झोंका आए और वो बेनकाब हो जाए"
एक दिन इश्क गुज़र गया और हुस्न उसकी कब्र पर फूल चढाने गई
जैसे ही हुस्न झुकी हवा का झोका आया और हुस्न बेनकाब हो गई
तब कब्र से ये आवाज़ आई...


"ऐ खुदा…
यह कैसी तेरी खुदाई है,
आज हम परदे में हैं और वो बेनकाब आई है"
'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' को बचाने की बालाजी टेलीफ़िल्म्स की कोशिश कामयाब नहीं हो पाईं है और मुंबई हाईकोर्ट ने सीरियल को एक महीने में बंद करने के स्टार टीवी के नोटिस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। ‘क्योकि सास भी कभी बहु थी ’ धारावाहिक के प्रसारण की याचिका बोम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है. यह सीरीयल १० नवम्बर को बंद हो जायेगा. इस सीरियल को बंद करने के लिए स्टार टीवी ने बालाजी टेलीफ़िल्म्स की प्रमुख एकता कपूर को एक महीने का नोटिस दिया था.

इसके ख़िलाफ़ बालाजी टेलीफ़िल्म्स ने मुंबई हाईकोर्ट में अपील की थी। लेकिन हाई कोर्ट ने शुक्रवार शनिवार को स्टे देने से इनकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई तीन नवंबर को निर्धारित कर दी. स्टार के वकील रवि कदम का कहना था कि अनुबंध में ये बात थी कि अगर सीरियल की टीआरपी गिरती है तो उसे इस आधार पर इसे बंद किया जा सकता है. लेकिन बालाजी की दलील है कि स्टार प्लस ने इस सीरियल की लोकप्रियता बनाए रखने के लिए पर्याप्त विज्ञापन नहीं दिए.

स्टार प्लस पर 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' का प्रसारण पिछले आठ साल से किया जा रहा है। स्टार प्लस हो या बालाजी टेलीफिल्म्स, दोनों को ही समाज में पड़ते इसके दुष्प्रभावों से कोई सरोकार नही है. इन सीरीयलों में घर की औरतों को एक दुसरे को नीचा दिखाने, पति को अपनी अंगुली पर नचाने और अपनी ही देवरानी या जेठानी के बिरुद्ध साजिश रचते हुए दिखाया जाता है. इस प्रकार के सीरीयल समाज में ठीक ठाक चल रहे परिवारों को तोड़ने और अशांति फैलाने के काम कर रहे हैं. ऐसे धारावाहिकों पर रोक लगाना सर्वथा उचित ही है.

यह थी मेरी राय. आप की क्या राय है...ज़रूर व्यक्त करें.

बेबस बहुत है यह दिल बीमार बहुत है
अब आके मिलो हमसे दिल को यह इसरार बहुत है
एक शख्स जो हर बार खफा रहता है मुझसे
दिल उसकी मोहब्बत में गिरफ्तार बहुत है
माना हमें जीने का करीना नही आता
ऐ जीस्त मगर तुझसे हमें प्यार बहुत है
कुछ हम भी बुलाने का तकाज़ा नही करते
कुछ उनकी तबियत में भी इनकार बहुत है
इस जात के सेहरा की कड़ी धुप में हमको
साथी न सही लेकिन दीवार बहुत है.
पुराणों के अनुसार भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी धार्मिक नगरी वाराणसी में गंगा के घाटों पर प्रतिदिन सुबह से रात तक कोई न कोई धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम चलता रहता है. जब माँ गंगा में दीपकों का दान होता है, जब श्रद्धालू गण गंगा स्नान के लिए उमड़ते हैं, जब आध्यात्मिक मंत्रोच्चार और मंदिरों की घंटियों की आवाज कानो में पड़ती है, जब गंगा की पूजा की तथा आरती के दृश्य दिखायी पड़ते हैं तो माँ गंगा के प्रति हर कोई नतमस्तक हो ही जाता है.

लेकिन लगातार प्रदुषण की मार झेल रही भारत की “लाइफ लाइन” कही जाने वाली गंगा ऐसा लगता है जैसे आज तिल-तिल कर मर रही है लेकिन उसके तथाकथित पुत्र उसे चुप-चाप मरते हुए देख रहे हैं और गंगा कि दुर्दशा ऐसी तब है, जब ‘गंगा एक्शन प्लान’ का दूसरा चरण चल रहा है। कहना न होगा कि गंगा सफाई के नाम पर करोड़ों रुपए अब तक बहाए जा चुके हैं, लेकिन वही हालत है कि 'ज्यों-ज्यों दवा की, त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता गया'। गंगा सफाई के सरकारी प्रयास के अलावा कम से कम तीन दर्जन गैर सरकारी संगठन वाराणसी में ऐसे हैं, जो दसों साल से गंगा प्रदूषण का राग अलाप रहे हैं, लेकिन गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए प्रयास नहीं किए।

मां गंगा का आस्तित्व तभी है जब उनका प्रवाह अविरल बना रहे। मां गंगा को भी टिहरी में कैद करके रखा गया है। ‘गंगा तेरा पानी अमृत’ अब बीते जमाने की बात होकर रह गई है, क्योंकि वाराणसी में गंगा का पानी अब अपने प्रदूषण के उच्चतमस्तर पर पहुंच गया है। गंगा अब मरने की कगार पर पहुंच चुकी है और वह दिन दूर नहीं जब गंगा इतिहास के पन्नों में सरस्वती नदी की तरह कहीं खो जाएंगी। गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा अबतक के निम्नतर स्तर पर है, क्योंकि टिहरी में गंगा के पानी को रोक को दिया गया है और गंदे नालों का पानी गंगा में लगातार गिर रहा है, जिससे ऑक्सीजन की मात्रा लगातार कम होती जा रही है। ‘नदी बेगे न शुद्धते’, अर्थात जिस नदी में धारा नहीं होगी उसकी गुणवत्ता भी समाप्त हो जाएगी।

टिहरी से गंगा को मुक्त कर दिया जाए और शहरों के गंदे नाले गंगा में गिरने बंद हो जाएं, तभी गंगा बच सकती है वरना इसे बचाना संभव नहीं है। यदि अब गंगा को बचाने के ठोस प्रयास नहीं किए गए तो गंगा को कोई नहीं बचा सकता है।