याद आता हैं बहुत वो गुज़रा हुआ ज़माना
वो स्कूल की लाइफ वो बचपन का याराना
लेफ्ट राइट कहते हुए हाथों को उठाना
वो इकबाल की दुआ वो असम्बली का तराना

वो घंटी बजते ही क्लास्सेस से निकलना
वो लंच में जा कर छोले चाट खाना
वो गर्मियों की छुट्टियों में घुमने को जाना
वो मस्तियाँ करना और मौज मनाना

हर खुफ्फ़ से आजाद ज़िन्दगी गुज़रना
वो बात बात पर अम्मी से जिद करना
वो गलतियों पे मासूमियत से सॉरी कहना
वो गुस्से में अम्मी का डाटना


वो दादी को बात बात पर सताना
और दादी का शफ़क़त से समझाना
वो रात को होमवर्क के वक़्त बहाने करना
और क्लास में मिस का मुर्गा बनाना

मुड़कर कर देखता हूँ तू सोचता हूँ
क्या ज़माना था वो जो गुज़र गया
वो ज़माना कितना सुहाना था
वाकई क्या ज़माना था...

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