दुनिया भर में विख्यात बिहार के सोनपुर का हरिहरक्षेत्र पशु मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है और यहाँ अनेक देशों के लोग घूमने आते हैं. कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होने वाले इस वार्षिक मेले में विदेश से भी लोग आते हैं.

इस मेले में अगर घोड़े की क़ीमत तीन लाख रुपए तक है तो यहाँ बिकने वाले समोसों की क़ीमत भी अपने आप में एक रिकार्ड है। कई बार ख़रीददार अपनी शान का प्रदर्शन करने के लिए भी मुँहमांगी क़ीमत अदा करते हैं। क़रीब दो वर्ष पहले रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के घोड़े 'चेतक' को ख़रीदने के लिए बोली लगी और वह एक लाख एक हज़ार रुपए में बिका. इस वर्ष एक विक्रेता ने अपनी एक घोड़ी क़ीमत तीन लाख तय की है तो वैशाली के कौशल किशोर सिंह के घोड़े की बोली एक लाख सत्तर हज़ार रुपए लग रही है.

सैलानी यहाँ जो भी खरीदारी करते हैं और उसकी जो क़ीमत चुकाते हैं, वह सामान्य से कई गुना ज़्यादा होती है पर उनके लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है। मेले की भीड़-भाड़ में अपनी दुकान सजाए दुकानदारों का अपना मत है। वे कहते हैं की मेले में बिकने वाली चीज़ों की क़ीमत अगर सामान्य हो तो ख़रीददार के लिए इसमें कोई ख़ास आकर्षण नहीं होता और दूसरी बात यह है कि हमारी भी कोशिश होती है कि हम कुछ अधिक कमा सकें लेकिन अगर चीज़ों के दाम बिल्कुल असमान्य हों तो यह किसी भी तरह अच्छी बात नहीं है।

गंगा और गंडक के मुहाने पर लगने वाले इस मेले का इतिहास राजा चंद्रगुप्त मौर्य के ज़माने से जोड़ा जाता है. कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपनी सेना के लिए हाथियों की ख़रीददारी गंगा के इसी क्षेत्र से करते थे. हालाँकि आज भी इस मेले में हाथी और घोड़े काफ़ी संख्या में ख़रीद-बिक्री के लिए लाए जाते हैं लेकिन वन्यजीवों की ख़रीददारी पर सख़्त क़ानूनी शिकंजे के कारण रफ़्ता-रफ़्ता इस मेले का आकर्षण भी कम हुआ है.
लेकिन राज्य सरकार अब इस कोशिश में जुटी है कि इस मेले की पुरानी रौनक़ फिर से बहाल हो सके. इससे बिहार के पर्यटन उद्योग के साथ-साथ सोनपुर के विकास को बढावा मिलेगा और स्थानीय जनता को भी फायदा पहुचेगा।

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