टुकडों में बिखरा हुआ
किसी का जिगर दिखायेंगे
कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे।
होंठ काँप जाते हैं
थरथराती हैं जुबां
टूटे दिल से निकली हुई
आहों का असर दिखायेंगे।
कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे।
कहीं तस्वीर हैं तेरी
कहीं लिखा हैं तेरा नाम
मंदिर-मस्जिद जितना पाक
एक दीवार-ओ-दर दिखायेंगे।
कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे।
एक पोछ पाता नहीं
एक और छलक जाता हैं
पलकों से दामन तक का
अश्कों का सफ़र दिखायेंगे।
कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे।
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