तुम्हे लाखो की भीड़ में पहचानता है कोई,
दिन रात खुदा से तुम्हे मांगता है कोई,
तुम ख़ुद से वाकिफ नही होंगे इतने,
तुम्हे तुमसे भी ज़्यादा जानता है कोई।

आंसुओ को बहुत समझाया, तन्हाई में आया न करो,
महफिल में हमारा मज़ाक उड़ाया न करो,
इसपर आँसू तड़प कर बोले...
इतने लोगो में आपको तनहा पाता हूँ, इसीलिए चला आता हूँ।

रौशनी होते हुए भी दिल में अँधेरा है,
इन अंधेरो में किसी का बसेरा है,
आना कभी रोशन करना हमारी महफिल को,
देखना दिल की हर दिवार पे नाम तेरा है।

ज़ख्म इतने गहरे थे, इज़हार क्या करते,
हम ख़ुद निशाना बन गए, वार क्या करते,
मर गए हम मगर खुली रही आँखें,
अब इससे ज्यादा उनका इन्तिज़ार क्या करते.

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