दर्द-ए-दिल की कहानी भी वो खुब लिखता है


कही पर बेवफा तो कही मुझे मेहबूब लिखता है

कुछ तो रस्म-ए-वफा निभा रहा है वो

हर एक सफ-ए-कहानी मे वो मुझे मजमून लिखता है

लफ्ज़ो की जुस्तजू मेरे संग़ बीते लम्हो से लेता है

स्याही मेरे अश्क़ को बनाकर वो हर लम्हा लिखता है

कशिश क्यो ना हो उसकी दास्तान-ए-दर्द मे यारो

जब भी ज़िक्र खुद का आता है वो खुद को वफा लिखता है

तहरीरे झूठ की सजाई है आज उसने अपने चेहरे पर

खुद को दर्द की मिसाल और कही मजबूर लिखता है
दरिया तो है वो, जिस से किनारे छलक  उठाये



बहते हुए पानी को मै दरिया नही कहता


गहराई जो दी तुने मेरे ज़ख्म ए जिगर को


मै इतना समुंद्र को भी गहरा नही कहता




किस किस की तम्मना मे करू प्यार को तक़सीम


हर शक़स को मै जान ए तम्मना नही कहता


करता हूँ मै, अपने गुनाहो पे बहुत नाज़


इंसान हूँ मै खुद को फरिश्ता नही कहता