जीवन की चुनौतियों का सामना करती हुई मानवीय चेतना जब थक सी जाती है, या परास्त होकर चुकी चुकी सी महसूस करती है-तब प्रकृति का आँचल या मानव का स्नेहपूर्ण सौहार्द्र उसमे नईआशा की किरण जगा देता है। उसे पुनः आश्वस्त करता है, आगे के चरणों की ओरबढनेके लिए आह्वान कारता है। प्रकृति अथवा मानव के प्राणदायी स्पर्श का अनुभव हम सभी करते हैं। उसकी चाह भी हम सभी के मन में रहती है, पर उसे समझनेकी कोशिश शायद हम में से कुछ विरले ही करते हैं और उसे समझते हुए उसकी अव्यक्त अपेक्षाओं के प्रति अपने को पूर्णत मुक्त करने की कोशिश संभवत कोई अत्यधिक तरल संवेदनशीलता से युक्त व्यक्ति ही कर पाता है। सौंदर्य की अनुभूति चाह सदा से ही मानव जीवन की एक विशिष्ट प्रकृति रही है। व्यक्तिगत इच्छाओं से ऊपर उठकर ही सौंदर्य की प्रतीति होती है। यह सौंदर्य के स्वरुप और सार को अधिक सच्चाई से प्रस्तुत करता है। यदि हम गौर से देखें तो पाएंगे की सामान्य ही नही अपितु न्यूनतम संवेदनशीलता रखने वाले व्यक्ति में भी वस्तुओं को सजा कर, करीने से रखने की प्रवृति दिखाई देती है। यही बीज रूप में सौंदर्य की अभीरूचि है।जिसका ज्यादा विकसित रूप हमें कलात्मक सर्जना में मिलता है।
ये जीवन की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रवृति है जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को इसतरह से रंजित करती है की वह अनायास ही सार्थक होकर निखर उठता है। इसी के माध्यम से हम जीवन के विविध पक्षों के मूल्यों को निर्धारित करते हैं। सौंदर्य विलासिता का पर्याय नही है। सौंदर्य का आधार तो वस्तुत मानव की अपनी ही आत्मा है। मानव ख़ुद है। व्यक्ति जितना ज्यदा संवेदन शील है उसका सौंदर्य बोध उतना ही विकसित है. 'कांट का मानना है की सौंदर्य के प्रत्क्ष्यमें आत्मनिष्ठ तत्वों का महत्वपूर्ण योगदान है। पर्याप्त मात्रा में सौंदर्य बोध तथा उसके सर्जन के सामर्थ्य न होने पर भी व्यक्ति सौंदर्य के स्वरुप पर विचार कर सकता है।
सौंदर्य बोध तो मानव हृदय की अतार्किक प्रतिक्रियाओं से होता है। हृदय की सहज अतार्किक प्रतिक्रियाओं, सहज संवेदन शीलता की भावात्मक , अभावात्मक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से यह जान लेता है की अमुक वस्तुसुंदर है या नही। सर्जनात्मक प्रतिक्रियाएँ स्वांत सुखाय और स्वत साध्य होती हैं। इस कारण वे विशिष्ट , श्रेष्ठ और सुकून देने वाली होती है। किन्तो मानवीय सर्जना की तुलना में प्रकृति की सर्जनात्मक क्षमता कहीं अधिक विशाल है। और जहाँ तक उस से अभिभूत होने का प्रशन है, हम में से प्राय कभी ने यह अनुभव किया होगा की जब कभी भी हम उत्तेजित स्थिति में आश्वस्त होने के लिए उसकी ओर उन्मुख होते हैं, तो हमें नितांत सहजता से अपना खोया हुआ सुकून फ़िर से प्राप्त हो जाता है। और उसका मंगलकारी प्रभाव हम पर पड़ता है।
सौंदर्य का सम्बन्ध मानवीय व्यक्तित्व की उन गहराईयों से है, जिनका हम सामान्यत स्पर्श नही करते, इसलिए जब जो भी अभिव्यंजना उन गहराईओं को स्पर्श करती है, हमें एक गहर आत्मिक संतोष प्रदान करती है, जो अंततः आह्लादकारी है।
व्यक्ति के जीवन का प्रमुख उद्देश्य यह है की वह विश्व और अपने व्यक्तित्व में अंतर्भूत उस आधारभूत सत्य को प्राप्त करे। तभी वह जीवन के शाश्वत सौंदर्य का सही अर्थो में प्रत्यक्ष कर सकेगा और मनसा वाचा कर्मणा अपने जीवन और व्यवहार में प्रस्थापित कर सकेगा।

आंखों से टूटते है सितारे तो क्या हुआ?
चलते नही वो साथ हमारे तो क्या हुआ?

तूफ़ान की ज़द में अजम मेरे साथ साथ था,
कश्ती को मिल सके न किनारे तो क्या हुआ?

तन्हाइयों ने मुझको गले से लगा लिया,
वो बन सके न दिलसे हमारे तो क्या हुआ?

सौ हौसले हमारे क़दम चूमते रहे,
कुछ बेसुकून रात गुज़रे तो क्या हुआ ?

मंजिल भी, कारवाँ भी, मुसाफिर भी ख़ुद रहा,
साथी बने न हमारे चाँद सितारे तो क्या हुआ ?
करता हूँ जब दीदार तेरा, मन हर्षित हो जाता है
रहमत बरसे बनकर बादल, मन मयूर हो जाता है
तेरे इक इशारे से मुकद्दर बदल जाता है
पतझड़ के मौसम में भी बसंत छा जाता है
जो भी माँगा दिया तुने इक निगाहें कर्म से
होता नही जो भाग्य में इंसा वो पा जाता है
अंधेरे में भटका आनंद करता जब फरियाद है

अमावस में भी पूनम का चाँद निकल आता है.
नदी हरदम दौड़ती रहती है
पर्वतों को लांघती
चट्टानों से टकराती
मैदानों को पार करती
मरुस्थलों को चूमती
अति उत्साहित
इतराती भागती जाती है
अजब उसकी ये बेताबी है
सागर से मिलने की
जानती है जब मिलेगी
तो उसका शेष न रहेगा कुछ भी
अस्तित्व ही अपना खो देगी
फ़िर भी
छुपाये नही छुपती बेकरारी
और खुशी उसकी
क्योंकि जानती है की खो जाने में ही
अनंत हो जायेगी , सागर ही हो जायेगी
पर हा रे ! मानव की त्रासदी ,
चाह ही नही 'उस परम' से मिलन की
जुदा जुदा सा भटक रहा
आई न सुध 'पी' से मिलन की


जीवन मे हम प्रतिक्षण नवीन अनुभव प्राप्‍त करते हैं और हमें प्रतिक्षण कई लोगो से मिलना होता है, अत: जीवन मे सफलता प्राप्‍त करने के लिए या लोकप्रिय बने रहने के लिए २० गुर नीचे दिऐ जा रहे हैं।
1. हमेशा मुस्कराते रहिए। प्रसन्‍नता व मुस्कराहट बिखेरने वाले लोगो के सैकडो मित्र होते है। कोई भी व्यक्ति उदास चेहरे के पास बैठ्ना पसंद नही करता।
2. बातचीत मे अपनी तकलीफों का रोना मत रोइए, क्योकि लोग इस से आप के पास आने से हिचकिचाएगें, वे यही समझेंगे कि उसके पास जाते ही बह अपनी तकलीफों का रामायण पढ्ने लग जाएगा।
3. दुसरो की तारीफ जी भर कर किजिए पर तारीफ इस तरह होना चाहिए कि समने वाले को ऐसा न लगे कि आप उसे मुर्ख बना रहे है।
4. बातचीत मे हमेशा सामने वाले को ज्यादा से ज्यादा बोलने का मौका दीजिए और आप यथासम्भव कम बोलिए। ऐसा भी न करे कि आप बिल्कुल चुप रहें।
5. आप के वस्‍त्र सूरुचिपूर्ण हों तथा आपकी बातचीत मे किसी प्रकार से हलकापन न हो, आप गम्भीरता से अपनी बात को कहने का प्रयत्‍न किजिए।
6. किसी भी अधिकारी या ऊचें से ऊचें व्यक्ति से मिलते समय मन मे किसी प्रकार की हिचकिचाहट अनुभव न किजिए, अपने बात नम्रता से, पर दृढतापूर्वक उस के सामने रखिए।
7. बार-बार अपनी गलती स्वीकार मत किजिए और बार बार क्षमा याचना करना भी ठीक नही है।
8. किसी भी प्रकार से अपने उपर क्रोध को हावी मत होने दिजिए। यदि सामने वाला क्रोध करता भी है तो चुपचाप सहन कर लिजिए। केवल क्रोध को सहन करने के बाद ही वह पछताएगा और आप के प्रति उसका सम्मान जरुरत से ज्यादा बढ जाऐगा।
9. मित्र को या किसी को भी मिलते समय उसको उस के नाम से पुकारिऐ और उस से ऐसी बातचीत किजिए जो उस को रुचिकर हो।
10. हमेशा आप ऊची सोसाइटी मे रहिए। द्स कलर्को के साथ घूमने के बजाए यदि आप किसी एक अधिकारी के साथ आधे घंटे के लिए भी घूम लेंगे तो लोगो मे आप का सम्मान और प्रतिष्ठा बढ जाएगा।
11. हमेशा उची स्तर के लोगो से मित्रता रखिए, जो समाज के विभिन्‍न वर्गो से सम्बंधित हों। यदि आप डाक्‍टर हैं और आप की चालीस डाक्‍टरों से आप की मित्रता है तो उस का कोई विषेश लाभ नही। इस की अपेक्षा वकील, इन्कमटैक्स अधिकारी, कुशल व्यापारी, एस. पी आदि से मित्रता या परिचय आप के लिए ज्यादा अनुकूल रहेगा।
12. आप यथासंभव कम से कम असत्य बोलिए,क्योकि असत्य ज्यादा समय तक नही चलता।
13. अपने आपको हमेशा तरो ताज़ा रखिए क्योकि बीमार, सुस्त और यदि आप थके हुए लगेगें तो आप ज्यादा उन्‍नति नही कर पाऐगे और न समाज मे ज्यादा लोकप्रिय हो सकेगें।
14. कभी भी हलके रिस्तरां या होटल मे मत बैठिए। चाहे एक सप्ताह मे केवल एक बार ही एक कप चाए लें पर ऊची व स्टैण्डर्ड के होटल मे ले, क्योकि वहां आप की टेबल पर जो कोई भी बैठा होगा वह समाज का ऊचें स्तर का होगा और उससे दोस्ती भी आप को समाज मे ऊचाई की ओर ले जाएगी, इस के विपरित हल्के होटल मे आप के दो पैसे ज़रुर कम लगेगें पर आप का स्तर हलका होगा और भूल से भी किसी परिचित ने आप को वहां देख लिया तो उस की नज़र मे आप का सम्मान कम होगा।
15. सडक पर खडे खडे कुछ मत खाईये, इसी प्रकार असभ्य भाषा का प्रयोग करते हुए साथियो के बीच भी न खाऐं तो ज्यादा उचित होगा।
16. वस्त्र साफ हों, स्वच्‍छ और आप के प्रकृति के अनुकूल हों लोगों को देख कर या उनके अनुकूल कपडे पहना आपकी व्यक्‍तिव (Personality) के अनुकूल नही होगा।
17. साल मे एक या दो बार अपने मित्रो या अधिकारियों को उपहार अवश्य दें चाहे वह उपहार कम कीमत की ही क्यो न हो पर उपहार ऐसा होना चाहिए जो स्थाई हो, जो उसके ड्राइग रुम मे रखा हुआ रह सके।
18. अपनी स्मरण शक्ति प्रखर रखिए, यथासंभव मित्रो व परिचितों के नाम याद रखिए।
19. इस बात का ध्यान रखिए कि आप की बातचीत से सामने वाले का ईगो संतुष्‍ट होना चाहिए।
20. सामने वाला जिस प्रकार का या जिस रुची का व्यक्ति हो उसी के अनुरुप बातचीत करें।

यह गुर जितने साधारण है उतने ही प्रभावशाली हैं यदि आप इन्हे अपने दैनिक कार्यो मे अपनाएगे तो निश्‍चय ही आप के व्यक्तिव (personality) मे चार चांद लग जाएंगे। आप का प्रभाव दुसरो पर स्थाई रहेगा। यह पढने व देखने मे जितना आसान है उतना ही दैनिक कार्यों मे अपनाना कठिन भी। क्योकि आदमी अपनी आदतों से बंधा होता है और किसी भी नई आदत या शैली को अपनाने के लिए वक्त लगता है।इस प्रकार आप उपरोक्त गुरों को अपना कर समाज मे श्रेष्ठ बनने का प्रयास किजिए जिससे आप ज्यादा लोकप्रिय हो सके।


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तमन्ना लेके उल्फत की,

मेरे आँगन मे वो आया
मोहब्बत रोग है दिल का,

उसे ये मैने समझाया
कहाँ उसने मोहब्बत कर,

शरीके गम बना मुझको
करूंगा मै ज़माने की,

खुशी से आशना तुझको
हुआ मजबूर मै यारो,

किया इक़रार उल्फत का
लगा दी जान की बाज़ी,

समझ कर खेल क़िस्मत का
हुई मालूम फिर उसको,

हक़ीक़त ये ज़माने से
उसे तसकीन मिलती है,

किसी का दिल दुखाने से।


साभार- Sarfaraz
तुमसे है अनुबंध
छंद अब,
तुम पर ही लिखूंगा;
महफ़िल है बेरंग
कुछ बातें
तुमसे ही कह लूँगा ।

तुम भावों की
चंचल सरिता
मैं शब्दों का सागर,
लिख दें गीत
प्रेम के प्रिय तुम
मिल जाओ बस आकर ।

फूलों सा मकरंद
गीत मैं,
अधरों से पा लूँगा ।

तुम आशा की
भोर शबनामी
मैं राही भटका सा,
तुमसे मिलकर
राह मिल गयी
आया चैन ज़रा सा ।

मयखानों से तंग
छोडो अब,
आँखो से पी लूँगा ।

सूना घर
सूने गलियारे
सूना अग-जग सारा है,
याद तुम्हारी
जीवन भर दे
तुमने मुझे संवारा है ।

कर आंखों को बंद
प्रर्तिपल
नाम तुम्हारा लूँगा ।
[] राकेश 'सोऽहं'


कुछ खबर नही हम को अपना या पराया है,
ढूंढने ये दिल जिस को इस गली मे आया है।
हम दुआये देते है तुम को फिर भी जान-ए-जान,
मगर तुम ने इस दिल को बे-पनाह सताया है।।


मार कर मुझे क़ातिल ग़मज़दा सा लगता है,
इस लिये तो चलते हुये थोडा लडखडाया है।
काश अपने दिल की आग अश्क से बुझा सकते,
रूठ जब गये आँसू उसने तब जलाया है।।

जल रहा था दिल मेरा फिर भी शुक्र है इतना,
उनको इस तमाशे मे कुछ मज़ा तो आया है।।

नम है पलके और उसमे छुपी हुई है एक कहानी,
दिल खुद कैसे ये दास्तान अपनी है जुबानी.
एक प्यारा सा ख्वाब था उसमे थी एक परी अंजानी,
दिखाये ख्वाब हज़ार पर वो तो थी बेगानी.

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वो सुनना ही नही चाहते थे,
और हम इज़्हार करते रहे.
वो आना ही नही चाहते थे,
और हम इन्तेज़ार करते रहे.
खता उनकी नही हमारी है की,
हम एक पत्थर दिल से प्यार करते रहे।
जुदाई के इस भीगे आलम में
अब चांदनी भी तन जलाती है
तन्हाइयों के तल्ख़ मौसम में
पुरवैया भी बैरन बन सताती है
दूर तक पसरे मरघट से सन्नाटे में
साँसे भी मेरी अवरुद्ध हुई जाती हैं
डूबा तो हुआ हूँ आंसुओं के सागर में
फ़िर क्यो बहारे भी मुझे झुलसाती हैं
सुनता हूँ ज़िक्र गैर का तेरी महफ़िल में
मेरे दिल की बस्ती भी वीरान हो जाती है
पाता हूँ जब भी तुझे नज़रों के आईने में
रूह आनंद की पिघल पिघल जाती है।
आज तेरा रूप कुछ बदला - बदला सा है.

रंग भी कुछ निखरा- निखरा सा है।

आइये हम भी कुछ नया- नया सा करें,

मेरी पत्रिका के अंजुमन में कही खो जाएँ।
उड़ते परिंदों को गिरने का डर नही रहता
फूलों को शाख से टूटने का डर नही रहता
दुखों से घबरा कर आनंद खो न देना ऐ दोस्त
कुंदन को आग में तपने का डर नही रहता।


सच को झुठलाने की हिम्मत भी कहाँ तक करते,
झूठे ख़्वाबों की हिफाज़त ही कहाँ तक करते,
कोई एहसास न जज़्बात न धड़कन उसमे,
एक पत्थर से मोहब्बत भी कहाँ तक करते।


कह दिया दिल ने तो हालात का गम छोड़ दिया,
हम भला दिल से बगावत भी कहाँ तक करते,
ये तो अच्छा हुआ बाज़ार में आए ही नही,
हम उसूलों की हिफाज़त भी कहाँ तक करते...."

उपनिषदों के अनुसार जो ब्रह्माण्ड में है वह पिंड (देह) में है। विज्ञानं भी यही कहता है। की जो नियम परमाणु में काम कर रहे हैं, ठीक वहीनियम सौर मंडल में काम कर रहे हैं। जगत का सम्पूर्ण प्रवाह परब्रह्म से अनुप्राणित है, उससे आवासित है। एक परम ऊर्जा से सब कुछ ढका हुआ है। यह ऊर्जा या प्राण अभौतिक है, जेसे हमारी आत्मा , हमारे श्वास । श्वास ऊर्जा के बिना देह मुर्दा है......... मांस और हड्डियों का ढेर मात्र । यह ऊर्जा ही हमारे शरीर , पर्यावरण और हमारी भावनाओं में समन्वय और संतुलन बनाए रखती है।एक तरह से कहा जा सकता है के यह ऊर्जा या जीवनशक्ति हमारे व्यक्तित्व , प्रतिभा और सम्पूर्ण जीवन अवधि की रूपरेखा है। और यह ऊर्जा या जीवन शक्ति रंगों से प्रभावित होती है। इसीलिए रंगों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। रंगों से हमारा सम्बन्ध ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऊर्जा के माध्यम से जुड़ता है। सौर मंडल के सभी रंग सूर्य में होते हैं।

हमारी जीवनशक्ति को समरस , संतुलित और अनुकूल रखने में रंगों का बड़ा महत्व और योगदान होता है। शारीरिक और मानसिक स्वस्थ्य को बनाए रखने में रंगों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रंग हमारे जीवन में मंगल और शुभ लाने में सहायक होते हैं। अस्तित्व में मौजूद प्रतेएक वास्तु (अणु परमाणु ) कहीं न कहीं हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। और प्रत्येक वस्तु(अणु परमाणु) अपने में कोई न कोई रंग समेटे हुए है। ज्ञातव्य है के हमारे देह भावनाओं और पर्यावरण जिसमे हम रहते हैं.... इनमे आपसे में लयऔर संतुलन हमारे लिए अभीष्ट है। ज़रा सा भी कहीं पर अन्तर या अवरोध आ जाने से हमारा समूचा व्यक्तित्व प्रभावित होता है।

व्यक्ति के आसपास के वातावरण में कोई नया रंग सकारात्मक या नकारात्मक्क प्रभाव डालने में सक्षम होता है। रंग हमारी भावनाओं के गुणधर्म को उभारने या दबाने में प्रभावशाली योगदान करते हैं। और हमारे व्यहार को भी निर्मित सरने में सहायक होते हैं।

अपने रोज़मर्रा के जीवन में हम रंगों का असर भली प्रकार देख सकते हैंकिसी से डाह करते हुए हम नीले हरे हो जाते हैं शर्म से लाल हो जाते हैं। भय से पीले पड़ जातेटी हैं। कुछ रंग हमें प्रफुल्लित बनाते हैं तो कुछ विषाद में दुबूते हैं। इस प्रकार रंगों का प्रभाव अपने जीवन पर हम ख़ुद अनुभव कर सकते हैं।
रंग प्रकाश और ऊर्जा की अभिव्यक्ति हैं। यदि कोई रंग हमारी ऊर्जा से लयात्मक हो जाता है तो निश्चित ही हमारा जीवन समृद्ध और सफल होता है। किंतु यह भी सत्य हा की जो रंग हमारे मूड या मिजाज से मेल नही खाता वह हमें क्षुब्ध और चिडचिडा बना देता है। हमारी आँखों के संपर्क में आने वाला प्रतेयक तंग हमारे स्वभाव और शारीरिक गतिविधिया , भाषा और विचारों को प्रभावित करता है।
व्यक्ति के तीन प्रमुख केन्द्रों में लयात्मकता और संतुलन रंगों के द्वारा ही होता है। ये प्रमुख केन्द्र हैं: मानसिक केन्द्र, इच्छा केन्द्र और भाव केन्द्र। मानसिक केन्द्र से सम्बंधित चक्र सहस्त्रार और आज्ञा चक्र हैं। जो क्रमश जामुनी और गहरे नीले रंग की ऊर्जा समेटहैं । इच्छा केन्द्र से सम्बंधित ग्रीवा का निचला भाग, कंधो के नीचे की पसलियों से सम्बंधित है, जिनका रंग हल्का नीला है । भाव केन्द्र से सम्बन्धीविशुधिचक्र , अनाहत चक्र मणिपुर और मूलाधार चक्र है जो क्रमश हल्का नीला, हरा, पीला और लाल रंग अपने में समेटे हैं।
क्रोध भय चिंता और तनाव से मुक्ति के लिए विशुधि चक्र पर हल्का नीला और मणिपुर चक्र पर पीले रंग का ध्यान तथा काम लोभ जेसे नकारात्मक प्रवाहों को रोकने के लिए मूलाधार चक्र पर लाल रंग का ध्यान करने से नकारात्मक अवरोध दूर फ्जाते है । निराशा, हीनता और असंतोष आदि नकारात्मक भावों से पार पाने के लिए हृदय चक्र पर हरे रंग का ध्यान करने से सकारत्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
प्रेम और करूणा भाव जागृत कारने के लिए विशुद्धि चक्र पर समुद्री नीले रंग ध्यान अति हितकारी होता है। ज्ञातव्य है की ऊर्जा विचार का अनुगमन करती है। इस प्रकार नकारात्मक भावो से छुटकारा पाने के लिए सम्बन्धी चक्रो पर विशेष ध्यान करने से नकारात्मक अवरोध हट जाते हैं।
वेसे हम रंगों के बारे में अनुवीक्षण करे तो पायेंगे की इनके गुणधर्म संस्कृति से जुड़े पीड़ीडर पीड़ी चले आते हैं। इसलिए मनोवैज्ञानिक स्तरपर रंगों के विषय में कुछ ठोस रूप से नही लिखा जा सकता। और जो लिखा जा सकता है वह मात्रप्रतीकात्मक ही होगा। किन्तो यह सच है की हमारे अनुभव किए बिना रंग हमारी बोध क्षमता को प्रभिव्त करते हैं। और उनके प्रभाव से हमारी भावनाए भी संचालित और प्रभावित होती हैं।
पश्चिमी देशो में काला रंग गंभीरता के साथ उदासी का भी प्रतीक है। वहाँ के लोगो को सुझाव दिया जाता है की साज सज्जा के समय काले रंग के इस्तेमाल से बचें। किंतु दूसरी ओरसफ़ेद रंग शुद्धता शान्ति और आशावाद का प्रतीक मानाजाता है। पश्चिमी देशों में दुल्हन को सफ़ेद पोषक पहनाई जाती है। वहाँ सपने में भी सफ़ेद कपडों में किसी के दाहसंस्कार में जाने का सोचा जा सकता है। इसके विपरीत पूर्व में सफ़ेद रंग को शोक की अभिव्यक्ति के तौर पर माना जाता है। और काले रंग को अशुभ माना जाता है।
रंग दूसरों की राय बदलने में सक्षम होते हैं। ये आँखों को उतेजित करते हैं तो शांत करने के भी अपार क्षमता इनमे है। रंग हमारे भग्य, व्यक्तित्व और जीवन ऊर्जाको प्रभावित करते हैं। इसलिए अब जब भी kakbhi आप किसी रंग विशेष से खुशी आदि महसूस करे उत्साह लगाव सक्रियता महसूस करे तो उसे नोट करे। इसी तरह विपरीत भी नोट करें। और अनुकूल रंगों का प्रयोग और प्रतिकूल रंगों से बचने से हम स्वस्थ्य जीवन जी सकेंगे.

ऊंची उठती दीवारों में
दायरे रोशनियों के
सिमटने लगे हैं
घरों के भी तो मायने
अब बदलने लगे हैं
फूल प्यार के तो
अब नही महकते
घाव बनकर रिश्ते
भी रिसने लगे हैं
हवाओं के झोंके भी
अब हुए हैं बासी
घुटन से प्राण भी
अकुलाने लगे हैं
कैसे रहे आनंद यहाँ पर
फूलों को भी लोग
मसलने लगे हैं.

हम जो कहते थे ज़िन्दगी कुछ नही है तेरे बिना,
लेकिन यह क्या कि ज़िन्दगी सब कुछ है तेरे बिना।
अब तो रात भी कट जाती है, दिन भी गुज़र जाता है,
सब वैसा ही है कुछ भी तो नही बदला तेरे बिना॥

तेरे जाने पे जो रिम-झिम सी थी आंखों में अब,
ठहर गया है आंखों का वो समंदर तेरे बिना।
वक्त ने बहुत कुछ सिखा दिया है मुझे,
अब तो वक्त भी गुज़र जाता है तेरे बिना॥

शहीद मोहब्बत करने के अदब ही न थे,
अब ज़िन्दगी ने वो भी सिखा दिया है तेरे बिना।
जो गुज़र गया है वक्त, सो गुज़र गया दोस्त,


जो रह गया है, गुज़र जाएगा तेरे बिना॥


from- a collection



कोई कमजोरी सी लगती है, ज़िन्दगी के हर मोड़ पर कुछ कमी सी लगती है,


पता नही कहाँ ले जायेगी मेरी राह मुझे,


एक तेरे सिवाह हर मंजिल अजनबी सी लगती है।

आरजू तो है मेरी तुझे हर पल देखती रहूँ ऐ दोस्त,


पर अब हर तम्मान्ना मेरी अधूरी सी लगती है।

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कोई ज़ज्बातों से खिलवाड़ करता है तो कोई दिल तोड़ देता है
और कोई होता है जो हमेशा वफ़ा करके बेवफाई झेलता है
कितने प्यार से और तहजीब से बनाया होगा इस धरती को खुदरत ने
लेकिन यहाँ तो इन्सान अपने मतलब के लिए उस खुदा के नाम से भी खेलता है...

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अपना सब कुछ लुटा दिया हम ने,


अपनी नादानी के कारनामो में,


अब बचा नही कुछ भी सिवाय दर्द के,


ज़िन्दगी के बचे हुए लम्हों में,


खो दी है हमने वो सारी खुशिया,


जो हमें मिलसकती थी आज की ज़िन्दगी में,


अब इसका शिकवा कर के क्या फायदा,


मैंने ख़ुद ही तो डुबोया है अपने आप को ग़मों के समंदर में।


साभार- अनजान


दोस्ती मेरी बस उस ग़म से है,
मिला जो मुझे सनम से है।
तुझसे गिला नहीं है मुझको,
शिकवा इस मौसम से है।
हमसे क्यों छुपाती चेहरा,
तेरा हुस्न भी तो हम से है।
मुझसे और दूर न जा तू,
मेरी साँस तेरे दम से है।
मुझे और कुछ चाह नहीं,
बस तू मेरी कसम से है।

ज़िन्दगी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया
तन्हाई मे जीना सिखाया
प्यार को छुपाना सिखाया
दोस्तो से हसके मिलना सिखाया
और मन ही मन रोना सिखाया
अब तो क्या कहुँ,
ज़िन्दगी ने बहुत कुछ सिखाया
मगर जीना नही सिखाया
कहने को तो हमारी धरती की सतह का ७०-८० प्रतिशत भाग पानी से घिरा है किंतु धरती सा कुल पानी का मात्र २.७ प्रतिशत से भी कम हिस्सा हमारे उपयोग का है। इसमे भी प्रदूषण की समस्या दिनोदिन गहराती जा रही है। आज भारत में ही नही वरनसमूचे विश्व में जल संकट गहराता जा रहा है। धरती पर जल और जीवन का बड़ा गहरा रिश्ता है जेसे सूरज और उसकी किरणों का। पानी प्रकृति की सबसे अनमोल और अनुपम भेंट है जो जीवन के हर क्षेत्र में तथा हर कदम पर मानव प्रजाति के लिए अनिवार्य और अपरिहार्य है। इतना होने पर भी विश्वभर में शायद ही कोई वस्तु होगी जो पानी से भी ज्यादा आम हो। यह विडंबना ही है की हम पानी के जीवनदायी गुणों को बहुत ही सामान्य तरीके से लेते हैं। वैज्ञानिको के अनुसार तो पानी की संरचना बहुत ही आसान मानीजाती है। अर्थात दो परमाणु हाईड्रोजन के और एक परमाणु ओक्सीजेनका , तथापि मानव अपने स्तरपर इसका निर्माण नही कर पाया और न ही कर सकता है। ज़रा निम्न कथन पर गौर करें
''पानी एच-२ ओ है यानी दो भाग हाईड्रोजन के और एक परमाणु ओक्सीजेन का , लेकिन उसमे एक तीसरी चीज भी है और उसे कोई नही जानता । तीसरी चीज कोई भी नही समझ पाया, लेकिन यह परमात्मा का आर्शीवाद है जो एक विधुत ऊर्जा की तरह इन दो तत्वों के समूह से पानी बना सकता है। यह प्रकृति का विलक्षण यौगिक है, इसलिए वह सबसे रहस्यमय और वन्दनीय भी है।''
उपरोक्त कथन है- आन वाटर , डीलारेंस और दथर्ड थिंग , पर्सीज

पानी पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और लगातार लिखा जा रहा है। वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता और रसायनशास्त्री लगातार पानी पर अनुसन्धान कर रहे हैं। पानी बचाने के विविध उपायों के बारे में बताया जाता है, पानी के संरंक्षण के बारे में आए दिन संगोस्टियाआयोजित होती रहती हैं। सरकारी स्तर पर कायदे कानूनों का भी प्रावधान है। इसके बावजूद भी लोगों में अभी तक पानी के प्रति सम्पूर्ण चेतना और जागृति का अभाव है। लोगो का पानी से भावात्मक जुडाव नही हो पा रहा हैं, जेसा होना चाहिए। हांलाकि लोगो में पानी के प्रति कुछ संवेदनशीलता और जागरूकता तो हुई है, पर यह सिर्फ़ ऊपर ऊपर ही ह। रही सही कसरइच्छाशक्ति ने पूरी कर दी है। निर्बल इच्छा शक्ति के कारण पानी का दुरूपयोग नही रुक पा रहा हैं। दृढ़ संकल्पबल के अभाव में यह लगभग मुश्किल प्रतीत होता है।
पानी का दुरुपयोग करके हम अपनी आनेवाली पीडियोंके लिए मुश्किलें बढाते जा रहे हैं। जल के बिना भविष्य का जीवन केसा होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। क्योंकि जीवन हर तरह से जल पर ही निर्भर है। हमें चाहिए की हम इसे संरक्षित रखे और दुरूपयोग तो कदापि न करें।
हमें पानी की महत्ता को, महानता को अनुभव करना होगा , इस से अपनी संतान की तरह से एकात्मक , भावात्मक स्नेहात्मक अनुभूति होगी तो ही पानी बचेगा और पानी का बचना ही पानी का निर्मित होना है। इसमे किसी क़ानून की आवश्यकता नही है, बस लोगो को ख़ुद ही आगे आना होगा। यही जल के प्रति हमारी कृतज्ञता होगी।
प्रिया पानी तुम कितने महान हो
सृष्टि के प्राणों का अवधान हो
अम्बर की तुम अजीम शान हो
वनोप्वन की मधुर मुस्कान हो
सारे संसार की तुम जान हो
सागर नदियों की पहचान हो
जात पात उंच नीच से दूर
सबका रखते बहुत मान हो
कभी नही जताते नही एहसान हो
फ़िर भी हम तुम्हारी क़द्र नही करते
पानी हमारी खता माफ़ कर देना
हम तुम्हे कभी बना नही सकते
फ़िर भी कितना व्यर्थ हैं बहाते
और प्रदूषित भी तो कितना हैं करते
फ़िर भी पानी तुम नाराज नही होते
हर पल सबका ध्यान हो रखते
पानी हमारी खता माफ़ कर देना
हम कभी तुम्हारी क़द्र नही करते
पानी हमारी खता माफ़ कर देना
हम कभी तुम्हारी क़द्र नही करते
सावन में जब मेघ मल्हार गाते हैं
पल में ज़लथल एक कर जाते हैं
निष्ठुरता कहूँ या उदारता इनकी
महलों को तो ऊपर से ही करे सलाम
झोंपडो को अंदर तक भिगो जाते हैं
बिल्कुल निरंकुश , मनमौजी हो जाते हैं
कभी चमकाते , कभी बिजलियाँ गिरा जाते हैं
पानी से ही आग लगाते , पानी से ही बुझाते हैं
कर देते हैं मस्त , कभी लस्त पस्त कर जाते हैं
किसी आँगन में तो झूम कह बरसें
कहीं खामोशी से गुज़र जाते हैं,
ये केसे मेघ मल्हार हैं मियाँ
कभी वेदना कभी आनंद दे जाते हैं.

12 जुलाई को छत्तीसगढ के राजनांदगांव जिले में नक्सलियों ने एक के बाद एक तीन जाल बिछाए और हर बार पुलिसकर्मियों के एक – एक दल की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी। एक ही दिन में नक्सलवादियों ने एक पुलिस अधीक्षक सहित 39 पुलिसवालों की हत्या कर दी। देश की सुरक्षा पर यह हमला मुम्बई पर हुई आतंकवादी हमले से कम तो नहीं॥ लेकिन देश में कितनी चर्चा हुई सुरक्षाकर्मियों के इस भयावह नरसंहार की?

राष्ट्रपति के पुलिस पदक से सम्मानित, छत्तीसगढ के एक पुलिस अधीक्षक सहित 39 जवान नक्सलियों द्वारा बारुदी सुरंग से उड़ा दिए गए, लेकिन राष्ट्रीय टीवी चैनल “राखी का स्वयंवर” और सलमान खान का “दस का दम” दिखाने में व्यस्त रहे। किसी भी फिल्मी व्यक्तित्व या खिलाड़ी के विदेश में पुरस्कारी जीतते ही बधाई पत्र जारी करने वाला राष्ट्रपति भवन ने देश की रक्षा में शहीद हुए इन जवानों को लिए एक शब्द भी नहीं कहा।

मुम्बई एक महानगर है और छत्तीसगढ, ग्रामीण भारत का हिस्सा, इसीलिए नक्सलियों का यह हमला मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले से कम है। है न?

दिल्ली में मेट्रो पुल गिरने से छह लोगों की मौत की खबर दो दिनों से छाई हुई है, इंग्लैंड- ऑस्ट्रेलिया के बीच एशेज का पहला टेस्ट ड्रॉ होने का विशेषज्ञ विश्लेषण किया जा रहा है, राखी सावंत का स्वयंवर, सलमान खान के टीवी शो में कंगना रानौत की उपस्थित और हॉलीवुड में मल्लिका शेरावत की धूम- ये सब हमारे टीवी चैनल की सुर्खियां थे, छत्तीसगढ में बारुदी सुरंग लगा कर उड़ाए गए सुरक्षाकर्मी सिर्फ चलताऊ खबर।

गृहमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्र्पति, रक्षामंत्री चुप हैं इस हमले पर। देश के बीचोंबीच, 200 से 500 नक्सली पहले केंद्रीय सुरक्षा बलों के 10 जवानों की हत्या करते हैं, फिर उसकी जांच करने गए पुलिस दल को गाजर-मूली की तरह काट देते हैं और सरकार की तरफ से कोई एक शब्द भी नहीं बोलता।

एक युवक दो समुदायों के बीच नफरत फैलाने के लिए जहर उगलता है और सांसद बन जाता है। फिर जेड श्रेणी की सुरक्षा की मांग करता है क्योंकि कथित तौर पर उसकी जान को खतरा है। दूसरा नेता दो प्रांतों के लोगों के बीच नफरत की खाई खोद कर, सरकार से प्राप्त ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा के साये में अपनी राजनीति की दूकान चलाता है क्योंकि उसकी जान को खतरा है। ये दोनों जब मुंह खोलते हैं या अदालत जाने के लिए घर से कदम निकालते हैं तो टीवी चैनल उसके एक-एक क्षण का “लाइव” प्रसारण करते हैं। लेकिन ग्रामीण इलाके का एक पुलिस अधीक्षक नक्सलियों द्वारा घेर कर क्रूरतापूर्वक मार दिया जाता है और उसकी चर्चा तक नहीं होती।

मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले के दौरान एटीएस प्रमुख करकरे, एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर और एसीपी काम्टे की आतंकवादियों के हाथों किस तरह हत्या हुई थी, उसकी बहुत चर्चा हुई थी। पढ़िए राजनांदगांव के पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे और उनके साथियों को किस तरह घात लगा कर मारा गया: (रिपोर्ट साभार : देशबंधु)

“मदनवाड़ा पुलिस कैम्प में दो पुलिसकर्मियों की हत्या की खबर मिलते ही आईजी मुकेश गुप्ता तथा राजनांदगांव एसपी विनोद कुमार चौबे अलग-अलग वाहनों से घटना स्थल की ओर रवाना हो गए और मानपुर पहुंचे।
मानपुर से लगभग 11 बजे एसपी चौबे पूरे दल बल के साथ वहां से लगभग 9 किलोमीटर दूर स्थित राजनांदगांव के मदनवाड़ा के लिए रवाना हो गए। मदनवाड़ा पुलिस पोस्ट से कुछ दूर पहले ही नक्सलियों ने एसपी के ड्राइवर को गोली मार दी।
इसके बाद पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे व उनके साथ गए जवान गाड़ी से उतर गए और मोर्चा संभाल लिया।
नक्सलियों ने पुलिस दल पर चारों ओर से जबरदस्त फायरिंग शुरू कर दी। जवानों का नेतृत्व कर रहे एसपी विनोद चौबे ने काफी देर तक नक्सलियों से लोहा लेते रहे, लेकिन नक्सलियों की एक गोली एसपी चौबे के कंधे पर जा लगी और इससे पहले की वे संभलने की कोशिश कर पाते नक्सलियों ने उनपर गोलियों की बौछार कर दी। एसपी चौबे की मौत के बाद भी जवानों ने मोर्चा संभाले रखा, लेकिन नक्सलियों ने पूरे इलाके को चारों तरफ से ऐसे घेर रखा था कि जवानों को बच निकलने का कोई रास्ता नहीं था।

पूरे इलाके पर नक्सलियों ने कब्जा कर रखा है, जिसके चलते पुलिस को बचाव करने का मौका भी नहीं मिल पाया। बताया जा रहा है कि इस वारदात में दोपहर 1 बजे तक मोहला थाना प्रभारी विनोद धु्रव व एएसआई कोमल साहू के अलावा 21 जवान शहीद हो चुके थे। शाम होते-होते शहीद होनेवालों की संख्या बढ़कर 30 हो गई, जो देर रात तक 34 हो गई।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मानपुर मोहला इलाके के मदनवाड़ा, सीतागांव सहित करीब चार गांवों में नक्सलियों ने डेरा डाल रखा है।” .... चार गांवों में नक्सलियों ने डेरा डाल रखा है लेकिन न तो राज्य सरकार, और न ही केन्द्र सरकार इस पर कुछ बोलती है।


बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित एक पुलिस अफसर और 39 जवानों की मौत देश को या सरकार को हिलाने वाली खबर नहीं है.. समलैंगिकों को आपसी सहमति से सेक्स-संबंध बनाने की अदालती छूट मिलने की खबर, सप्ताह भर तक दिन-दिन भर दिखाने वाले टीवी चैनलों की खबर नहीं है..। देख कर लगता है, छत्तीसगढ़ भारत का हिस्सा है भी या नहीं? ...

Saabhaar – Josh18
Link:
http://josh18.in.com/showstory.php?id=473922


जब रात के तनहा लम्हों में
कोई आहट मुझसे कहती हैं
इस दिल में हलचल रहती हैं
कोई जुगनू पास से गुज़रे तो
कोई बात हलक से निकले तो
मैं खुद से उलझने लगता हूँ।
फिर जाने क्या क्या कहता हूँ
फिर याद उसकी आती हैं
फिर पल दो पल की लम्हे को
यह साँस मेरी रुक जाती हैं
एक शोला दिल में भड़कता हैं
वो दर्द सेहर तक रहता हैं
फिर वहम मुझे यह कहता हैं।

कोई मेरे दिल में रहता हैं
कोई मेरे दिल में रहता हैं।


साभार- अनजान

दोस्तों, आज मेरे इ-मेल खाते में एक मेल आया जो काफी महत्वपूर्ण जानकारियों को समाहित किये हुए है। जो इस प्रकार है....

Did you ever drink from a plastic bottle and see a triangle symbol on the bottom with a number inside?





Do you know what the number stands for? Did you guess that it's just for recycling? Then you are WRONG !!!!!! THE NUMBER TELLS YOU THE CHEMICAL MAKE UP OF THE PLASTIC.....

1) Polyethylene terephalate (PET)

2) High density polyethylene (HDPE)

3) Unplasticised polyvinyl chloride (UPVC) or Plasticised polyvinyl chloride (PPVC)

4) Low density polyethylene LDPE

5) Polypropylene (PP)

6) Polystyrene (PS) or Expandable polystyrene (EPS)

7) Other, including nylon and acrylic


What you aren't told is that many of the plastics used are toxic and the chemicals used to create a plastic can leach out of the plastic and into the food / drink। Think about it, how many times have oua or a friend said "I don't like this, it taste like the plastic bottle ..... " THAT'S BECAUSE YOU ARE TASTING THE PLASTIC


Did you know chemical released by plastic water bottles can cause cancer?


(It is not the water that affecting you but the chemical releasing from the bottle)
The WORST ONES are Nos: 3, 6, and 7 !!!


DO NOT USE THESE NUMBERS if stated at the bottom of the bottle) !!! Check out this chart that breaks down the plastic, its uses and chemical makeup (I find #7 a little scary)



दोस्तों, आप को क्या लगता है??? इस इ-मेल में दिए गए तथ्य क्या सचमुच सही हैं??? अगर नहीं, तो फिर चिंता की कोई बात नहीं. अगर हाँ, तो फिर इसे रोकने के लिए आप और हम क्या कर सकते हैं.... ज़रूर बताइएगा. और इन तथ्यों को अपने संपर्क में आने वाले अन्य दोस्तों, सम्बन्धियों आदि को भी अवगत कराएँ ताकि अधिक से अधिक लोग इसके बुरे प्रभावों से बच सकें. अगर संभव हो सके तो यदि कोई इन तथ्यों को किसी सक्षम सरकारी नुमाइंदे / अधिकारी तक पहुचा दें ताकि सरकार अपने स्तर से कुछ कदम उठा सके. और पूरे देश को इसके हानिकारक प्रभावों से बच्चा सके.

with Spl.Thanks to Palak


धड़कते, साँस लेते, रुकते, चलते, मैंने देखा है
कोई तो है जिसे अपने में पलते, मैंने देखा है।


तुम्हारे ख़ून से मेरी रगों में ख़्वाब रौशन हैं
तुम्हारी आदतों में ख़ुद को ढलते, मैंने देखा है।


न जाने कौन है जो ख़्वाब में आवाज़ देता है
ख़ुद अपने आप को नींदों में चलते, मैंने देखा है।


मेरी ख़ामोशियों में तैरती हैं तेरी आवाज़ें
तेरे सीने में अपना दिल मचलते, मैंने देखा है।


बदल जाएगा सब कुछ, बादलों से धूप चटखेगी,
बुझी आँखों में कोई ख़्वाब जलते, मैंने देखा है।


मुझे मालूम है उनकी दुआएँ साथ चलती हैं
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते, मैंने देखा है।


साभार- वेद गुप्ता



If you love some one because you think that he or she is really gorgeous ....then it's not love .. it's "Infatuation"


If you love some one because you think that you shouldn't leave him because others think that you shouldn't ... then it's not love.. it's "Compromise"


If you love some one because you have been kissed by him ... then it's not love.. it's "Inferiority complex"


If you love some one because you cannot leave him thinking that it would hurt his feelings ... then it's not love .. it's "Charity"


If you love some one because you share every thing with him ... then it's not love... it's "Friendship"



BUT...


If you feel the pain of the other person more than him even when he is stable and you cry for him ... that's "LOVE"


If you get attracted to other people but stay with him without any regrets... that's "LOVE"


If you let him go knowing that he has to go but he doesn't want to ... that's "LOVE"