कहने को तो हमारी धरती की सतह का ७०-८० प्रतिशत भाग पानी से घिरा है किंतु धरती सा कुल पानी का मात्र २.७ प्रतिशत से भी कम हिस्सा हमारे उपयोग का है। इसमे भी प्रदूषण की समस्या दिनोदिन गहराती जा रही है। आज भारत में ही नही वरनसमूचे विश्व में जल संकट गहराता जा रहा है। धरती पर जल और जीवन का बड़ा गहरा रिश्ता है जेसे सूरज और उसकी किरणों का। पानी प्रकृति की सबसे अनमोल और अनुपम भेंट है जो जीवन के हर क्षेत्र में तथा हर कदम पर मानव प्रजाति के लिए अनिवार्य और अपरिहार्य है। इतना होने पर भी विश्वभर में शायद ही कोई वस्तु होगी जो पानी से भी ज्यादा आम हो। यह विडंबना ही है की हम पानी के जीवनदायी गुणों को बहुत ही सामान्य तरीके से लेते हैं। वैज्ञानिको के अनुसार तो पानी की संरचना बहुत ही आसान मानीजाती है। अर्थात दो परमाणु हाईड्रोजन के और एक परमाणु ओक्सीजेनका , तथापि मानव अपने स्तरपर इसका निर्माण नही कर पाया और न ही कर सकता है। ज़रा निम्न कथन पर गौर करें
''पानी एच-२ ओ है यानी दो भाग हाईड्रोजन के और एक परमाणु ओक्सीजेन का , लेकिन उसमे एक तीसरी चीज भी है और उसे कोई नही जानता । तीसरी चीज कोई भी नही समझ पाया, लेकिन यह परमात्मा का आर्शीवाद है जो एक विधुत ऊर्जा की तरह इन दो तत्वों के समूह से पानी बना सकता है। यह प्रकृति का विलक्षण यौगिक है, इसलिए वह सबसे रहस्यमय और वन्दनीय भी है।''
उपरोक्त कथन है- आन वाटर , डीलारेंस और दथर्ड थिंग , पर्सीज

पानी पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और लगातार लिखा जा रहा है। वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता और रसायनशास्त्री लगातार पानी पर अनुसन्धान कर रहे हैं। पानी बचाने के विविध उपायों के बारे में बताया जाता है, पानी के संरंक्षण के बारे में आए दिन संगोस्टियाआयोजित होती रहती हैं। सरकारी स्तर पर कायदे कानूनों का भी प्रावधान है। इसके बावजूद भी लोगों में अभी तक पानी के प्रति सम्पूर्ण चेतना और जागृति का अभाव है। लोगो का पानी से भावात्मक जुडाव नही हो पा रहा हैं, जेसा होना चाहिए। हांलाकि लोगो में पानी के प्रति कुछ संवेदनशीलता और जागरूकता तो हुई है, पर यह सिर्फ़ ऊपर ऊपर ही ह। रही सही कसरइच्छाशक्ति ने पूरी कर दी है। निर्बल इच्छा शक्ति के कारण पानी का दुरूपयोग नही रुक पा रहा हैं। दृढ़ संकल्पबल के अभाव में यह लगभग मुश्किल प्रतीत होता है।
पानी का दुरुपयोग करके हम अपनी आनेवाली पीडियोंके लिए मुश्किलें बढाते जा रहे हैं। जल के बिना भविष्य का जीवन केसा होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। क्योंकि जीवन हर तरह से जल पर ही निर्भर है। हमें चाहिए की हम इसे संरक्षित रखे और दुरूपयोग तो कदापि न करें।
हमें पानी की महत्ता को, महानता को अनुभव करना होगा , इस से अपनी संतान की तरह से एकात्मक , भावात्मक स्नेहात्मक अनुभूति होगी तो ही पानी बचेगा और पानी का बचना ही पानी का निर्मित होना है। इसमे किसी क़ानून की आवश्यकता नही है, बस लोगो को ख़ुद ही आगे आना होगा। यही जल के प्रति हमारी कृतज्ञता होगी।

2 Comments:

Dr. Ravi Srivastava said...

बहुत ही सही लिखा है आप ने. अगर अब भी लोग नहीं चेते तो शायद देर न हो जाए...

इसी दिशा में लिखे गए इस लेख का भी अवलोकन अवश्य करें... “हलके में न लें पानी की समस्या” लिंक: http://meri-patrika.blogspot.com/2009/04/blog-post_5041.html

…रवि श्रीवास्तव
from- ‘मेरी पत्रिका’

दिगम्बर नासवा said...

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा...... sachmuch jal बिन जीवन नहीं.. पानी को samarpit आपकी post lajawaab है