सावन में जब मेघ मल्हार गाते हैं
पल में ज़लथल एक कर जाते हैं
निष्ठुरता कहूँ या उदारता इनकी
महलों को तो ऊपर से ही करे सलाम
झोंपडो को अंदर तक भिगो जाते हैं
बिल्कुल निरंकुश , मनमौजी हो जाते हैं
कभी चमकाते , कभी बिजलियाँ गिरा जाते हैं
पानी से ही आग लगाते , पानी से ही बुझाते हैं
कर देते हैं मस्त , कभी लस्त पस्त कर जाते हैं
किसी आँगन में तो झूम कह बरसें
कहीं खामोशी से गुज़र जाते हैं,
ये केसे मेघ मल्हार हैं मियाँ
कभी वेदना कभी आनंद दे जाते हैं.

4 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

सच much जब बारिश की बूंदे अति हैं तो मेघ मल्हार ही गाती हैं...... नाचने लगता है दिल.... lajawaab rachna

vandana gupta said...

jab megh malhar gaate hain
sab aanand mein doob jate hain


isi ka to intzaar rahta hai...........bahut badhiya rachna

चन्दन कुमार said...

kahin badal baras rahe to kahi intzar hai, fir bhi hum udas nahi kyoki barish se hume pyar hai

ओम आर्य said...

bahut hi khub ........aise me mahaboob ki hi yaad aati hai...