तमन्ना लेके उल्फत की,

मेरे आँगन मे वो आया
मोहब्बत रोग है दिल का,

उसे ये मैने समझाया
कहाँ उसने मोहब्बत कर,

शरीके गम बना मुझको
करूंगा मै ज़माने की,

खुशी से आशना तुझको
हुआ मजबूर मै यारो,

किया इक़रार उल्फत का
लगा दी जान की बाज़ी,

समझ कर खेल क़िस्मत का
हुई मालूम फिर उसको,

हक़ीक़त ये ज़माने से
उसे तसकीन मिलती है,

किसी का दिल दुखाने से।


साभार- Sarfaraz

1 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

अब जब रोग लग ही गया है तो निभाना तो पढेगा रवि जी................. लाजवाब है आपकी रचना