धड़कते, साँस लेते, रुकते, चलते, मैंने देखा है
कोई तो है जिसे अपने में पलते, मैंने देखा है।


तुम्हारे ख़ून से मेरी रगों में ख़्वाब रौशन हैं
तुम्हारी आदतों में ख़ुद को ढलते, मैंने देखा है।


न जाने कौन है जो ख़्वाब में आवाज़ देता है
ख़ुद अपने आप को नींदों में चलते, मैंने देखा है।


मेरी ख़ामोशियों में तैरती हैं तेरी आवाज़ें
तेरे सीने में अपना दिल मचलते, मैंने देखा है।


बदल जाएगा सब कुछ, बादलों से धूप चटखेगी,
बुझी आँखों में कोई ख़्वाब जलते, मैंने देखा है।


मुझे मालूम है उनकी दुआएँ साथ चलती हैं
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते, मैंने देखा है।


साभार- वेद गुप्ता

7 Comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत खूब लाजवाब बधाई

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

ओम आर्य said...

behad khubsoorat prastuti ................har ek panktiyan laazabaaw

ओम आर्य said...

behad khubsoorat prastuti ................har ek panktiyan laazabaaw

दिगम्बर नासवा said...

तुम्हारे ख़ून से मेरी रगों में ख़्वाब रौशन हैं
तुम्हारी आदतों में ख़ुद को ढलते, मैंने देखा है।

lajawaab ग़ज़ल रवि जी.......... खूबसूरत शेर हैं सभी ............ दिल को छु गयी आपकी ग़ज़ल subhaan alla

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत खूब...आप का ब्लाग अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....

राकेश 'सोहम' said...

एक ऐसी कविता जिसे कई बार पढ़नें को मन करता है .

क्या मैं भी
अपनी कोई रचना
भेज सकता हूँ ?
अभी-अभी ये ख्वाब देखा है .
[] राकेश 'सोऽहं'