करता हूँ जब दीदार तेरा, मन हर्षित हो जाता है
रहमत बरसे बनकर बादल, मन मयूर हो जाता है
तेरे इक इशारे से मुकद्दर बदल जाता है
पतझड़ के मौसम में भी बसंत छा जाता है
जो भी माँगा दिया तुने इक निगाहें कर्म से
होता नही जो भाग्य में इंसा वो पा जाता है
अंधेरे में भटका आनंद करता जब फरियाद है

अमावस में भी पूनम का चाँद निकल आता है.

1 Comments:

Unknown said...

achha laga............