नदी हरदम दौड़ती रहती है
पर्वतों को लांघती
चट्टानों से टकराती
मैदानों को पार करती
मरुस्थलों को चूमती
अति उत्साहित
इतराती भागती जाती है
अजब उसकी ये बेताबी है
सागर से मिलने की
जानती है जब मिलेगी
तो उसका शेष न रहेगा कुछ भी
अस्तित्व ही अपना खो देगी
फ़िर भी
छुपाये नही छुपती बेकरारी
और खुशी उसकी
क्योंकि जानती है की खो जाने में ही
अनंत हो जायेगी , सागर ही हो जायेगी
पर हा रे ! मानव की त्रासदी ,
चाह ही नही 'उस परम' से मिलन की
जुदा जुदा सा भटक रहा
आई न सुध 'पी' से मिलन की
अगर आप मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान, तो जानें कैसे
मिलेगा आराम
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मौजूदा भागमभाग वाली जिंदगी में पता नहीं कब शरीर के किसी भाग का दर्द हमारी
दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है, इसका हमें पता भी नहीं चलता। सुबह उठने के बाद
अक्सर...
5 years ago
2 Comments:
गहरी अमूर्त चिंतन...बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...ऐसे ही लिखते रहें विजय जी....
क्योंकि जानती है की खो जाने में ही
अनंत हो जायेगी , सागर ही हो जायेगी
पर हा रे ! मानव की त्रासदी ,
चाह ही नही 'उस परम' से मिलन की
जुदा जुदा सा भटक रहा
आई न सुध 'पी' से मिलन की
बहुत सुन्दर और सार्थक अंतर्मन को छूती अभिव्यक्ति आभार्
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