आज तेरा रूप कुछ बदला - बदला सा है.

रंग भी कुछ निखरा- निखरा सा है।

आइये हम भी कुछ नया- नया सा करें,

मेरी पत्रिका के अंजुमन में कही खो जाएँ।

7 Comments:

Dr. Ravi Srivastava said...

आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं। meri patrika ka yah naya roop aap ko kaisa lagaa, zaroor bataayen...

ओम आर्य said...

aaj ke naya kam ye kiya ki ham to aapke kawita me kho gaye .......bahut bahut dhanyawaad

Razi Shahab said...

behtareen

अनिल कान्त said...

अच्छा है

RAJNISH PARIHAR said...

bahut hi achha likha hai..sundar abhivyakti....

Udan Tashtari said...

बढ़िया.

Mithilesh dubey said...

हम-भी तैयार-तैयार से है, कुछ नया करने को। अच्छा लिखा है आपने।