आंखों से टूटते है सितारे तो क्या हुआ?
चलते नही वो साथ हमारे तो क्या हुआ?
तूफ़ान की ज़द में अजम मेरे साथ साथ था,
कश्ती को मिल सके न किनारे तो क्या हुआ?
तन्हाइयों ने मुझको गले से लगा लिया,
वो बन सके न दिलसे हमारे तो क्या हुआ?
सौ हौसले हमारे क़दम चूमते रहे,
कुछ बेसुकून रात गुज़रे तो क्या हुआ ?
मंजिल भी, कारवाँ भी, मुसाफिर भी ख़ुद रहा,
साथी बने न हमारे चाँद सितारे तो क्या हुआ ?
चलते नही वो साथ हमारे तो क्या हुआ?
तूफ़ान की ज़द में अजम मेरे साथ साथ था,
कश्ती को मिल सके न किनारे तो क्या हुआ?
तन्हाइयों ने मुझको गले से लगा लिया,
वो बन सके न दिलसे हमारे तो क्या हुआ?
सौ हौसले हमारे क़दम चूमते रहे,
कुछ बेसुकून रात गुज़रे तो क्या हुआ ?
मंजिल भी, कारवाँ भी, मुसाफिर भी ख़ुद रहा,
साथी बने न हमारे चाँद सितारे तो क्या हुआ ?
7 Comments:
अत्यन्त सुन्दर रचना
बहुत ही सुन्दर रचना आभार !
तन्हाइयों ने मुझको गले से लगा लिया,
वो बन सके न दिलसे हमारे तो क्या हुआ?
dil ke bahut hi karib lagi yah rachana jisame wah sab kuchh hai jisame jo ek manushya ke jiwan me ghatit hota hai ......atisundar
बहुत ही उम्दा,,, बिल्कुल ही दिल को छू लेने वाली है ये रचना........
रवि जी,
सुन्दर ब्लॉग संयोजन, मनमोहक पृष्ठभूमि।
दिल की कसक वाकई एक कसक सी छोड़ जाती है। गज़ल का यह शे’र बहुत ही अच्छा कहा है आपने :-
सौ हौसले हमारे क़दम चूमते रहे,
कुछ बेसुकून रात गुज़रे तो क्या हुआ ?
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
तन्हाइयों ने मुझको गले से लगा लिया,
वो बन सके न दिलसे हमारे तो क्या हुआ?
सुन्दर लिखा है........... बस एक बार का मिलन ही कभी कभी जीवन बन जाता है............
मंजिल भी, कारवाँ भी, मुसाफिर भी ख़ुद रहा,
साथी बने न हमारे चाँद सितारे तो क्या हुआ ?
वाह! बहोत खूब!
आपकी ये ग़ज़ल ने मन को छू लीया।
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