चाँद तारों से सजी रात भला क्या मांगे,
जिस को मिल जाए तेरा साथ भला क्या मांगे।
लब पे आई न दुआ और कुबूल हो भी गयी,
अब दुआओं में उठे हाथ भला क्या मांगे।

जिसके ख़्वाबों की हो तकमील उसे क्या ग़म हो,
मिल गयी जिस को कायनात, भला क्या मांगे।

मंजिल-ऐ-इश्क से आगे भी क़दम क्या जाए,
रंग-ऐ-मेहँदी से सजे हाथ भला क्या मांगे।

पा लिया जिस के अंधेरों ने रौशनी का सबब,
उस के महके हुए जज़्बात भला क्या मांगे।

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