दर्द के हिंडोले मे झूल रहा हू मैं
आंसुओं के सागर मे डूब रहा हूँ मैं
कब आयेगा तू आने वाले ये तो बता
बिन तेरे तन्हा हो रहा हूँ मैं
कब तक कटेगी यादों के सहारे ये रातें
कुछ तो भ्रम रख लो की होंगी मुलाकातें
मेरी आँखों मे झांकते सितारों की गवाही ले लो
पलकों पे तैरते आंसुओं की कसम ले लो
जुदाई के नश्तर जब भी चुभते हैं
लहुलुहान दिल को, सीना चाक कर देते हैं
तन्हाईयाँ भी मेरी बेबसी पर हंसने लगी हैं
अरमानो की चिताएं भी सजने लगी हैं
चांदनी भी आग लगाने को तैयार खडी है
लौट आओ की संभल जाए ये दिल
वरना तो कहानी अपनी ख़त्म होने लगी है।

3 Comments:

संजय भास्‍कर said...

लौट आओ की संभल जाए ये दिल
वरना तो कहानी अपनी ख़त्म होने लगी है।

lajwaab panktiya,,

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

राकेश 'सोहम' said...

गंभीर चित्त की कविता