दर्द के हिंडोले मे झूल रहा हू मैं
आंसुओं के सागर मे डूब रहा हूँ मैं
कब आयेगा तू आने वाले ये तो बता
बिन तेरे तन्हा हो रहा हूँ मैं
कब तक कटेगी यादों के सहारे ये रातें
कुछ तो भ्रम रख लो की होंगी मुलाकातें
मेरी आँखों मे झांकते सितारों की गवाही ले लो
पलकों पे तैरते आंसुओं की कसम ले लो
जुदाई के नश्तर जब भी चुभते हैं
लहुलुहान दिल को, सीना चाक कर देते हैं
तन्हाईयाँ भी मेरी बेबसी पर हंसने लगी हैं
अरमानो की चिताएं भी सजने लगी हैं
चांदनी भी आग लगाने को तैयार खडी है
लौट आओ की संभल जाए ये दिल
वरना तो कहानी अपनी ख़त्म होने लगी है।
अगर आप मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान, तो जानें कैसे
मिलेगा आराम
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मौजूदा भागमभाग वाली जिंदगी में पता नहीं कब शरीर के किसी भाग का दर्द हमारी
दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है, इसका हमें पता भी नहीं चलता। सुबह उठने के बाद
अक्सर...
5 years ago
3 Comments:
लौट आओ की संभल जाए ये दिल
वरना तो कहानी अपनी ख़त्म होने लगी है।
lajwaab panktiya,,
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
गंभीर चित्त की कविता
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