मेरे कमरे की खिड़की से

रोज़ सुबह

मुस्कुराता हुआ आता है

सूरज

मेरे सारे क्रिया कलापों का

गवाह बनता है

सूरज

मेरे जीवन की कशमकश और

ज़द्दोज़हद को

बड़ी शिद्दत से देखता है

सूरज

कहता कुछ नहीं, बस

मूक दर्शक बना रहता है

सूरज

और शाम को जाते हुए

रोज़ मेरी उम्र का एक दिन

साथ ले जाता है

सूरज

3 Comments:

vandana gupta said...

behtreen.

Archana Gangwar said...

bahut hi khoobsorti se ahesaas ko share kiya hai......

sunder

संजय भास्‍कर said...

bahut hi khoobsorat