अँधेरे में तो संभल ही नहीं पाते हैं लोग
पर रोशनी में भी फिसल जाते हैं लोग
रोतों होओ का तो साथ देते ही नहीं लोग
हँसते हुवों को भी रूला देते हैं लोग
गैरों की महफ़िल मे तो भर भर के पीते हैं लोग
अपनों की महफ़िल मे लुत्फे-मय गिरा देते हैं लोग
कांटो से तो लाजिम है, नफरत करते ही हैं लोग
जाने क्यों फूलो से भी खार खाते हैं लोग
ये फितरत है उनकी , तमाशाई हैं लोग
बुझा के चिराग , रोशनी ढूंढते हैं लोग
अगर आप मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान, तो जानें कैसे
मिलेगा आराम
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मौजूदा भागमभाग वाली जिंदगी में पता नहीं कब शरीर के किसी भाग का दर्द हमारी
दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है, इसका हमें पता भी नहीं चलता। सुबह उठने के बाद
अक्सर...
5 years ago
3 Comments:
आज के लोगों की फितरत पर सटीक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
अच्छी लगी आपकी ये कविता । बधाई
कांटो से तो लाजिम है, नफरत करते ही हैं लोग
जाने क्यों फूलो से भी खार खाते हैं लोग
bahut khoob .....sarthak abhivyakti....aaj ki fitrarat kuch aise hi hai.....kisi ko khushi mein sharik karne se pahele sochna parta hai ki isme usko kushi milegi ya dukh.........
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