शायद ये मेरा वहम हो मेरा ख्याल हो
मुमकिन है मेरे बाद ही मेरा मलाल हो
पछता रहा हो अब मुझे दर से उठा के वो
बैठा हो मेरी याद में आंखें बिछा के वो
उसने भी तो किया था मुझे प्यार ले चलो
उसकी गली में फिर मुझे एक बार ले चलो
उसकी गली को जानता पहचानता हु मैं
वो मेरी क़त्लगाह है ये मानता हु मैं
उसकी गली में मौत मुक़द्दर की बात है
शायद ये मौत अहले वफ़ा की हयात है
मैं ख़ुद भी मौत का हु तलबगार ले चलो
उसकी गली में फिर मुझे एक बार ले चलो
दीवाना कह के लोगों ने हर बात टाल दी
दुनिया ने मेरे पाँव में ज़ंजीर डाल दी
चाहो जो तुम तो मेरा मुक़द्दर सँवार दो
यारों ये मेरे पाँव की बेडी उतार दो
या खींचते हुवे सरे बाज़ार ले चलो
उस की गली में फिर मुझे एक बार ले चलो।
...अनजान
4 Comments:
विजय जी
बहुत ही खुबसूरत रचना
बढ़ी कुबूल करें
विजय जी
बहुत ही खुबसूरत रचना
बधाई कुबूल करें
bahut hi sundar ..........ek alag sa ahsaas.
बहुत सुंदर लिखा है रवि जी .... आपको नया साल बहुत बहुत मुबारक ........
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