जो था, वो अब नहीं है
जो है, वो सब नहीं है
सबकी पसंद है वो
फिर भी वो रब नहीं है
उसकी वफ़ाएं – ख़ारिज
जिसमें, अदब नहीं है
वो , क्या करेगा हासिल
जिसमें - तलब नहीं है
ईमान का करें क्या?
ईनाम जब नहीं है
इस - भागते सफ़र में
कुछ भी अजब नहीं है
"मेरी पत्रिका" के अंजुमन में आप का स्वागत है...
7 Comments:
मैं क्या कहूँ..... निशब्द कर दिया....
बहुत सुंदर रचना....
aap achchha likhte hain
बहुत सटीक और उम्दा रचना ,
इस कविता में तो गज़ब ही गज़ब है जी !
bahut hi achchhi rachnaa.....
bahut hi achchhi rachnaa.....
जो था, वो अब नहीं है
जो है, वो सब नहीं है ...
बहुत उम्दा लिखा है ..... लाजवाब
Post a Comment