जो था, वो अब नहीं है


जो है, वो सब नहीं है


सबकी पसंद है वो


फिर भी वो रब नहीं है


उसकी वफ़ाएं – ख़ारिज


जिसमें, अदब नहीं है


वो , क्या करेगा हासिल


जिसमें - तलब नहीं है


ईमान का करें क्या?


ईनाम जब नहीं है


इस - भागते सफ़र में


कुछ भी अजब नहीं है

7 Comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मैं क्या कहूँ..... निशब्द कर दिया....

बहुत सुंदर रचना....

अनिल कान्त said...

aap achchha likhte hain

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सटीक और उम्दा रचना ,

राकेश 'सोहम' said...

इस कविता में तो गज़ब ही गज़ब है जी !

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

bahut hi achchhi rachnaa.....

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

bahut hi achchhi rachnaa.....

दिगम्बर नासवा said...

जो था, वो अब नहीं है
जो है, वो सब नहीं है ...

बहुत उम्दा लिखा है ..... लाजवाब