मैं अक्सर सोचता हूँ -देह त्यागने के बाद

कैसी होगी मेरी अन्नंत की यात्रा.........

ब्रहमांड के किस ओर किस छोर पर

आत्मारूपी पंछी अपना बसेरा बसायेगा

क्या मुडकर पीछे भी देखेगा

अपने बचे हुए निशाँ को ....?

अपने अब तक के सहयोगी तन को ?

और आसपास रोते हुए स्वजन को ?

या फ़िर निर्विकार घुल जाएगा

मिश्री की सी डली सा महासागर में

और महासागर ही हो जाएगा !

या बनकर हवा सब में समा जाएगा

और कण कण को महका जाएगा

या फ़िर फैलाकर अपने पंख

विराट विशाल निस्सम आकाश में

अकेला ही अपनी यात्रा का आनंद लेगा ?

कौन बतायेगा मुझे, यह कौन मुझे बताएगा ?

ka

1 Comments:

vandana gupta said...

anant ki yatra anant hi hoti hai......yeh batane ki nhi mehsoos ki hoti hai...........hamara kisi se koi rishta nhi hai ........hum sab apne anant ko us sukh ke mahasagar ko khoj rahe hain aur usi mein doobna chahte hain .....aur yeh sach hai jis din hhum use paa lenge apne ras ke mahasagar ko uske baad hamein yeh sochna nhi padega ki hamara kya hoga kyunki hum us mein sama chuke honge.