आपसे कभी मिल न पाये हम
फिर बिछड़ने का डर कैसा
मेरी हर धड़कन में आप हो शामिल
फिर आपकी जुदाई का ग़म कैसा

दीदार-ऐ-यार की खातिर जी रहे हैं हम
उनकी तलाश हैं अब हर तरफ़
उम्र-ऐ-तमाम किसीके नाम कर दिया हमने
अब मौत के भी आने का डर कैसा

आपकी याद यूँ जिंदगी को महका दे
बहार बनकर फिजा में रंग भर दे
संवारा है मुझे आपने इस कदर
कि मेरे ख़्वाबों में भी अब पतझर कैसा...?

2 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

SACH KAHA RAVI JI........JUDAAI TO MILAN KE BAAD HI AATI HAI..LAJAWAAB

संजीव गौतम said...

achchhee rachanaa hai. aapa background colour thoda dark kare^ to padhane jyaadaa sahooliyat ho.