यौन शोषण- ऐसा विषय जिसके बारे में लोग अक्सर चर्चा करने से कतराते हैं और कुछ के लिए यह एक भयानक मुद्दा है। यौन शोषण के शिकार ऐसे लोग जिनकी धार्मिक आस्था काफी गहरी होती है वे शोषण करने वाले के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते हैं। कई महिलाओं का मानना है कि यौन हिंसा का प्रतिरोध वे इसी कारण नहीं कर पाईं क्योंकि उनका धर्म ऐसा करने से मना करता है।


इस साल केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि देश भर के 30 राज्यों के 5-18 आयु वर्ग के लगभग 50 फीसदी बच्चों का स्कूल में यौन शोषण होता है। 53 प्रतिशत ने माना कि स्कूल या अन्य जगहों पर उनके साथ यौन शोषण हुआ है। महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा देश भर में 12,447 बच्चों पर कराए गए एक सर्वेक्षण में 53.22 फीसदी बच्चों ने एक से ज्यादा बार यौन शोषण के शिकार होने की बात कबूली। (Source: Josh18)


आम धारणा के विपरीत भारत में उच्च और मध्यम आय वर्ग के परिवारों में बच्चों का यौन शोषण निम्न वर्ग के मुकाबले कहीं अधिक है। बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने वाली एक स्वंयसेवी संस्था की संयोजक ने बताया कि उच्च और मध्यम आय वर्ग के परिवारों में बच्चों का यौन शोषण कहीं ज्यादा है, लेकिन लिंग भेद और सामाजिक दबाव के चलते यह मामले सामने नहीं आते।


कई लोग सोचते हैं कि शारीरिक या मानसिक शोषण आपके आसपास नहीं हो सकता। लेकिन शायद इसका शिकार आपके बगल में रहने वाली बच्ची या आपका रिश्तेदार या कोई भी हो सकता है। अब, सवाल यह उठता है कि क्या इससे बचने का कोई पुख्ता रास्ता नहीं है. इस तरह की स्थिति से कैसे लड़ा जाए।

सलाहकारों के अनुसार आपको खुद में विश्वास रहना चाहिए। आपको खुद को समझाना होगा कि इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। चीजों को बांटने से परिस्थितियां आसान बनती हैं।” यौनशोषक घर में ही मौजूद कोई व्यक्ति या परिचित भी हो सकता है। ऐसे मामलों में माता-पिता की प्रतिक्रिया बहुत महत्वपूर्ण होती है। उन्हें अपने बच्चों पर पूरी तरह विश्वास करना चाहिए और इसके बाद शोषणकर्ता से सामना करना चाहिए ताकि इस तरह की हरकतों पर तुरंत रोक लगाई जा सके।

1 Comments:

Unknown said...

जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in