भीगी हुई आँखों का ऐ मंज़र न मिलेगा
घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा

फिर याद बहुत आएगी जुल्फों कि घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा

आँसू को कभी ओस का कतरा न समझाना
ऐसा तुम्हें चाहत का समंदर न मिलेगा

इस ख्वाब के माहौल में बे-ख्वाब हैं आँखें
बाज़ार में ऐसा कोई जेवर न मिलेगा


ये सोच लो अब आखिरी साया हैं मोहब्बत
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा।

1 Comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत उम्दा रचना है।बहुत बढिया!!

ये सोच लो अब आखिरी साया हैं मोहब्बत
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा।