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कट रही है आजकल कुछ ऐसी दुश्वारी के साथ
यार भी मिलते हैं अब तो अजब अय्यारी के साथ
झूठ क्या है और सच क्या है तय नही कर पाये हम
उम्र सारी कट गई गफलत की बीमारी के साथ
मुझको सीने से लगा जो मेरी जेब काट ली उसने
जब मिला वो शख्स तो ऐसी ही दिलदारी के साथ
एक घर की आग थी और सारी बस्ती जल गई
मैं मना करता रहा मत खेल चिंगारी के साथ
जंग हारी है तो हारी, हौसले जांबाज़ हैं
फ़िर पलट कर आयेंगे हम पूरी तैयारी के साथ
4 Comments:
बहुत बढिया गज़ल है।बधाई स्वीकारें।
एक घर की आग थी और सारी बस्ती जल गई
मैं मना करता रहा मत खेल चिंगारी के साथ
सुंदर गजल, ओज से परिपूर्ण।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut bahiya likha hai.
बहुत बेहतरीन गजल है
पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
वीनस केसरी
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