इतनी किसी की ज़िन्दगी गम से भरी न हो
वो मौत मांगता हो मगर मौत मिली न हो
खंजर के बदले फूल लिए आज वो मिले
डरते हैं कहीं चाल ये उसकी नयी न हो
वो मौत मांगता हो मगर मौत मिली न हो
खंजर के बदले फूल लिए आज वो मिले
डरते हैं कहीं चाल ये उसकी नयी न हो
बच्चों की मुफलिसी में ज़हर माँ ने दे दिया
अखबार में अब ऐसी ख़बर फ़िर छपी न हो
ऐसी शमा जलने का क्या फायदा
जो जल रही हो और कोई रौशनी न हो
हर पल ये सोच-सोच के नेकी किया करते
जो साँस ले रहा हूँ कही आखिरी न हो
क्यों ज़िन्दगी को गर्क किए हो जूनून में
रखो जूनून उतना कि वो ख़ुदकुशी न हो
इस बार जब भी धरती पे आना ऐ कृष्णा
दो चेक ले के आना भले हाथ में बांसुरी न हो
अखबार में अब ऐसी ख़बर फ़िर छपी न हो
ऐसी शमा जलने का क्या फायदा
जो जल रही हो और कोई रौशनी न हो
हर पल ये सोच-सोच के नेकी किया करते
जो साँस ले रहा हूँ कही आखिरी न हो
क्यों ज़िन्दगी को गर्क किए हो जूनून में
रखो जूनून उतना कि वो ख़ुदकुशी न हो
इस बार जब भी धरती पे आना ऐ कृष्णा
दो चेक ले के आना भले हाथ में बांसुरी न हो
6 Comments:
दो चेक ले के आना भले हाथ में बांसुरी न हो
वाह वा...क्या बात कही है आपने...बहुत खूब
नीरज
माँ की ज़िन्दगी गम से भरी होती है,वो अपनी बच्चो को जहर नही दे सकती है
kya khoob likha hai........shandaar.
कढ्वे सच को व्यान करती रचना ......आज की हकीकत ....बहुत उन्दा अभिव्यक्ति
क्यों ज़िन्दगी को गर्क किए हो जूनून में
रखो जूनून उतना कि वो ख़ुदकुशी न हो
बड़ा सच लिखा है.
मानना ही होगा.
.कविता जानदार है...
नीचे की लाय्नें कविता का वजन घटाती हैं.
शाहिद "अजनबी"
आज की सच्चाई की ओर इशारा करती रचना है।बधाई।
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