बड़ी मुस्तैदी से, अनुशासित ......

वह रोज सुबह अपनी रक्ताभ

आभा लिए ड्यूटी पर बिना नागा आ जाता है

सबसे पहले लाल रंग से सभी दिशाओं को

संवार देता है, फ़िर

सोतों हुओंको जगा देता है

फूलों को खिला देता है

सोये हुए पक्षियों को भी

घोंसलों से उड़ा देता है,
दिन भर , अनवरत....
काम करने के बाद भी वह
कभी नही थकता,
मैंने पूछा - तुम्हारी ऊर्जा का राज?
तुम्हारी शक्ति का राज क्या है?
तुम ऊबते नही हो रोज एक ही काम को करते करते?
उसने खिलखिला कर कहा -
काम करने से जो ऊब गया ,
निश्चित जानो वो डूब गया,
इससे से पहले मै कुछ और पूछता!
वह सुनहरी चूनर वाली के साथ
इतराते हुए पर्वतों के पीछे कहीं
शोख्पूर्ण अदाओं से नज़रों से ओझल हो गया
वह सूरज था ...............




2 Comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत प्रेरक और सार्थक अभिव्यक्ति है धन्यवाद्

vandana gupta said...

bahut hi sashakt rachna