प्यार एक अजय किंतु सुकोमल भावना है जो जन जन में व्यापक रूप से रची बसी है। पशु पक्षियों में भी प्यार की भावना हिलोरें लेती है। प्यार की भावना को रिश्तों और संबंधों के अनुसार परिलक्षित किया जा सकता है। हम कह सकते हैं की प्यारसे सब कुछ सुलझाया जा सकता है किंतु मेरी दृष्टि में स्वार्थ सिद्धि के लिए किया गया प्यार प्यार नही है। क्योंकि किसी प्रयोजन सिद्धि या स्वार्थ सिद्धि के लिए प्यार करना अभिशाप बन जाता है। वो फ़िर प्यार नही चालाकी है।

प्यार तो हमेशा निस्वार्थ और निश्छल होता है।

माँ बाप का प्यार अद्वित्य और अतुलनीय होता है। माँ बाप का प्यार उनके त्याग के रूप में होता है। बालक को कब क्या चाहिए, जो चाहिए , जैसा चाहिए , माँ में सब कुछ वैसा करने की सामर्थ्य और शक्ति पैदा हो जाती है...प्यार की खातिर।

एक बच्चे के प्रति प्यार उसकी सुरक्षा और उसके पालन पोषण के रूप में प्रर्दशित होता है। अपनी बाहें फैला कर बच्चे को अपने पास बुलाना, अपने सीने से लगाना, अपनी बाहों में झुलाना -- प्यार का अवर्णीयऔर आनंदप्रद रूप है।

प्यार को और गहरे से यूँ समझें--बच्चा अगर शैतान होता है तो भी माँ के दिल में उसके प्रति प्यार ही रहता है। ऊपर से भले ही उसे डांटे डपटे या थप्पड़ भी मार दे। तो भी उसके भीतर के प्यार में कमी नही होती।

बच्चे के प्रति पिता का प्यार झलकता है - उसके लिए सुख सुविधाओं के साधन जुटाने में , उसकी शिक्षा दीक्षा , लालन पालन में । यद्यपि कई बार हमें लगता है की पिता की भावनाएं अपने बच्चों के प्रति ठंडी हैं, किन्तू दिल में तो उसके प्यार का सागर उमड़ रहा होता है। यह उसके प्यार का एक तरीका है। चूंकि वेह अपने को बच्चे की हर चीज के लिए उत्तरदायी मानता है, इसलिए वह कमजोर भावना का प्रदर्शन नही करता। किंतु भीतर प्यार से भरा हुआ होता है।

मित्र के प्रति हमारा प्यार प्रर्दशित होता है उसके प्रति मैत्रिपूरन भावना में। उसके साथ हँसी खुशी के पल छीन बांटना भी प्यार का ही एक रूप है। प्रतिकूल परिस्थितियों में हम अपने मित्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उसका साथ देते हैं। तो यह भी हमारा उसके प्रति प्यार है।
हमारी जान पहचान तो बहुतों से होती है, पर क्या वहाँ प्यार होता है ? सच्चे मित्र तो एक दूसरे की भावनाओं की क़द्र करते हैं, एक दूसरे की कठिनायों को समझते हैं। एक दूसरे केप्रति विचारपूर्ण रहते हैं। और हर स्थिति में निष्ठा और वफादारी से रहते हैं। दुःख में साथ देना, सदा एक दूसरे की मदद के लिए तत्पर रहना, ये सब प्यार के ही रूप तो हैं। सच्चा मित्र सदा आपके साथ, आपके लिए है। उसे कोई शिकवा नही - शिकायत नही।

फ़िर प्यार का एक रूप है अपने जीवन साथी के साथ। अपने जीवन साथी के साथ प्यार का गहरा रिश्ता होता है। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक प्यार। यहाँ तक की दूर होने पर भी दिल से नज़दीक होते हैं... इस्सिलिये दो जिस्म एक जान होते हैं।

पति पत्नी की एक दूसरे के प्रति प्यार की सुकोमल भावनाएं इतनी प्रगाढ़ होती हैं की कालांतर में उनकी शक्लें भी मिलने लगती हैं। एक दूसरे को समझाने वाले, एक दूसरे के प्रति सहिष्णु, एक दूसरे की कोमल देखभाल, एक दूसरे की ज़रूरतों को समझना और पूरा करना। क्षमाशीलता और सहनशीलता। बीमारी में, स्वस्थ्य में, सभी दशाओं में एक दूसरे के प्रति प्रेमपूर्ण रहना भी प्यार के ही विभिन्न रूप हैं।

पशुओं को हम प्यार करें तो परिणामस्वरूप वे भी प्यार प्रर्दशित करते हैं। प्रतेक जानवर का प्यार उसकी आँखों से झलकता है। वेसे अपना प्यार प्रर्दशित करने के उनके अपने छोटे छोटे तरीके हैं-- अपनी पूँछ हिलाना, पाँव चाटना, ज़मीन पर लोटपोट हो जाना, हलकी हलकी आवाजे निकालनाआदि।

सबसे बढकर प्यार हम अपने परमात्मा से करते हैं। वह हम पर करूणा और प्यार की फुहार बरसाता है। हमारे प्रति सदैव क्षमाशील बना रहता है। हम अपने कृत्यों से, हाथों से, भावपूर्ण मुद्राओं से, शब्दों से, प्रार्थना से अपना प्यार परमात्मा के प्रति व्यक्त करते हैं। जब हम परमात्मा को हृदय से प्यार करते हैं तो बदले में हमें भी उसका प्यार मिलता है, तो खुशियाँ ले के आता है।

प्यारा की महिमा अपरम्पार है।

3 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा............ प्रभू श्री कृष्ण ने भी कहा है बस प्रेम करो,
"उद्धव गोपियाँ बस प्रेम करना जानती हैं....तभी वो हमेशा मेरे पास रहती हैं" ...........

संत कबीर (अगर मैं गलत नहीं हूँ) ने भी कहा है ...........
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए ............

vandana gupta said...

ji han pyar beshak anek roop rakhta ho magar bhav ek hi hota hai.
pyar sir pyar hota hai.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर पोस्ट लिखी है।बधाई स्वीकारें।