अगर आप मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान, तो जानें कैसे
मिलेगा आराम
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मौजूदा भागमभाग वाली जिंदगी में पता नहीं कब शरीर के किसी भाग का दर्द हमारी
दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है, इसका हमें पता भी नहीं चलता। सुबह उठने के बाद
अक्सर...
5 years ago
6 Comments:
हम तो लाये थे जलती मशालों की लौ ढूँढकर
कर डाला अँधेरा मशालों को बुझा दिया तुमने
वाह रवि जी सुन्दर लिखा है......KUCH दोस्त तो होते ही ऐसे हैं...
sahee hai bejabaan banaa diyaa tumane.....aisee shaayari kari ki diwana kahane ko machal utha.....waah waah waah
मौसम की तरह रंग बदलते रहे......!प्यार में ऐसे नहीं होता...प्यार तो समर्पण का दूसरा नाम है...!अच्छी रचना के लिए बधाई...
मौसम की तरह रंग बदलते रहे तुम बार बार
जब भी जानना चाहा चेहरा लगा दिया तुमने
तुम्हारा हर गुनाह छुपा लिया दोस्त बनकर
कहें किससे, हमारी वफ़ा का अच्छा सिला दिया तुमने
waah kya gehre jazbaat bayan kiye hai,bahut sunder.
रवि जी बहुत ख़ूब
bahut hi dardbhari rachna.
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