कागजों में ही खोजता रहा शुभ महूरत जीवन भर,
अन्तश्चेतना की मानव को कभी न आई ख़बर,
पंडित पुरोहितों से भी अपना भविष्य बंचवाया ,
जीवन में फ़िर भी कभी शुभ अवसर नही आया,
शुभ घड़ी शुभ अवसर की चाह ने मानव को पंगु बनाया
अपने पर तो मानव भरोसा कर ही न पाया,
शुभ मुहूर्त की बैसाखियों पर ही चित्त सदा अटकाया

कर्म योगी का कर्म करने में ही चित्त सदा हर्षाया,
तिथी दिन घड़ी महीने चोघडिये को उसने ठुकराया
शुभ घड़ी शुभ अवसर शुभ महूरत कागजों की है नैया
कब ये पार करा सकी मानव को बीच भंवर डुबोया ,

कर्म योगी की अन्तश्चेतना करती है सदा प्रेरणा
उठे जब शुभ भाव तत्काल अनुसरण कर लेना
दान करने का उठे संकल्प तो तुंरत कर देना
सेवा का हो भाव तो कल पर मत टाल देना
दर्दमंद का दर्द बांटने की इच्छा को थाम मत लेना
दवा किसी को दे न सको तो दुआ अवश्य कर देना
शुभ महूरत की इंतज़ार में कहीं शुभ को टाल मत देना,

जो उठे अशुभ भाव तो अवश्य टाल ही देना
क्रोध आए तो कल कर लेना, क्षमा तुंरत कर देना,
नफरत की चिंगारी को शोला मत बनने देना
रोक ही लेना गाली को क्षण भर मौन हो रहना
टाल ही देना इस अवसर को मीठे बैन बोल लेना
बन कर्म योगी तू आज में जी कर आनंद सदा ही लेना
शुभ घड़ी शुभ अवसर शुभ महूरत की फिक्र कभी न करना

4 Comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत ही प्रेरक कविता है शुभकामनायें आभार्

दिगम्बर नासवा said...

उम्मीद भरी है आपकी रचना.......प्रेरक, आशा का संचार कर

vandana gupta said...

aapne bilkul sahi farmaya.........bas thode chintan ki jaroorat hai.
bahut badhiya

Archana Gangwar said...

दर्दमंद का दर्द बांटने की इच्छा को थाम मत लेना
दवा किसी को दे न सको तो दुआ अवश्य कर देना

itne sunder shabdo mein ek margdarshak kavita parne ko mili....
sach hai ishwer kisi ko bhi itna garib nahi banata ki vo kisi ko kuch na de sake ....
kuch nahi tu duaye hi de sakta hai......