घायल हुआ चाँद रात
चाँदनी पीली ज़र्द हुई
ओह!ये कैसी हवा चली
बगिया सारी उजड़ गई
पलभर में ये कैसा भंवर उठा
ख्वाबों की दुनिया बिखर गई
गाने को थी गीत प्यार का
वीणा की तारें टूट गई
देखती रही राह सजन की
आए ना वो, हाय!
ये कैसी अभागी रात हुई

2 Comments:

रश्मि प्रभा... said...

बहुत सहज वर्णन विरह की रात का......

vandana gupta said...

bahut bhavpoorn kavita.