सुनसान सड़क पर
वो अकेली खड़ी थी
खामोश और गुमसुम बड़ी थी
हर सू पहलू बदल रही थी
दिल में उसके छटपटाहट बड़ी थी
आंखों में उसके वीरानी घनी थी
घबराई सी एक और देख रही थी
और भय से थरथर काँप रही थी
मेने पूछा - क्या हुआ ?
वो बोली- अभी वो आने वाला है
और आते ही मुझे निगल जाएगा
मेने कहा - तुम चली क्यों नही जाती?
रुआंसी सी वह बोली
हमेशा कोशिश करती हूँ बचने की
पर
हमेशा वह मुझे अपनी ग्रिफ्त में ले लेता है
मेने पूछा कौन , वह बोली सूरज ........
उसकी आंच से मैं पिघल पिघल जाती हूँ.....
मैं मुस्कुराया --- वो अंधियारी काली रात थी।
अगर आप मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान, तो जानें कैसे
मिलेगा आराम
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मौजूदा भागमभाग वाली जिंदगी में पता नहीं कब शरीर के किसी भाग का दर्द हमारी
दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है, इसका हमें पता भी नहीं चलता। सुबह उठने के बाद
अक्सर...
5 years ago
4 Comments:
कविता है या फिल्म.
चौकाना खूब भाया
बहुत सुन्दर जी..क्या कल्पना है..छायावाद की याद दिला दी आपने...अच्छा लगा..
दृश्य बडी तेजी से बदल रहे है .....कविता मे चित्रात्मकता है .......सुन्दर भाव
wah ...bahut khoob
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